vishnu puran: यदि अथिति आ जाय तो उसका स्वगादि से तथा आसन देकर और चरण धोकर सत्कार करे.
फिर श्रद्धापूर्वक भोजन कराकर मधुर वाणीं से प्रश्नोत्तर करके तथा उसके जाने के समय पीछे-पीछे जाकर उसको प्रसन्न करें.
हालाँकि हर अतिथि को भगवान का रूप माना जाता है, हर अतिथि को सर्व सम्मान करना चाहिए.
परन्तु आज हम विष्णु पुराण में बताये गए नियमों के अनुसार कुछ इस तरह के अतिथि का सम्मान करें तो उत्तम फल की प्राप्ति होती है.
१. जिसके कुल और नाम का कोई पता न हो तथा अन्य देश से आया हो उसी अतिथि का सत्कार करें.
२. अपने ही गांव में रहने वाले पुरुष की अतिथि रूप से पूजा करनी उचित नहीं है.
३. जिसके पास कोई सामग्री न हो , जिससे कोई सम्बंध न हो ,जिसके कुल-शील का कोई पता न हो, और जो भोजन करना चाहता हो उस अतिथि का सत्कार किये बिना भोजन करने से मनुष्य अधोगति को प्राप्त होता है.
४. गृहस्थ पुरुष को कि आये हुए अतिथि के अध्ययन, गोत्र , आचरण और कुल आदि के विषय में कुछ भी न पूछकर हिरण्यगर्भ-बुद्धि से उसकी पूजा करें.
५. अतिथि सत्कार के अनंतर अपने ही देश के एक और पाश्चयाज्ञिक ब्राम्हण को जिसके आचार और कुल आदि का ज्ञान हो पितृगण के लिए भोजन करावे.
मनुष्ययज्ञ की विधि से ” मनुष्येभ्वो हंत ” इत्यादि मंतोचारणपूर्वक पहले ही निकालकर अलग रखे हुए हन्तकार नामक अन्न से उस क्षेत्रीय ब्राम्हण को भोजन करावें.
इस प्रकार [ देवता.अतिथि और ब्राम्हण को ] ये तीन भिक्षाएँ देकर ,यदि सामर्थ्य हो तो परिव्राजक और ब्रम्हाचारियों को भी बिना लौटाए हुए इछ्नुसार भिक्षा दे.
तीन पहले तथा भिक्षुकगण–ये चारों अतिथि कहलाते हैं.
इन चारों का पूजन करने से मनुष्य समस्त पापों से मुक्त हो जाता है.
और जिसके घर से अतिथि निराश होकर लौट जाता है, उसे वह अपने पाप देकर उसके शुभकर्मों को ले जाता है.
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