two headed weaver : दो सिर वाला बुनकर – पंचतंत्र की कहानियां

do sir wala aadmi: किसी गांव में मंथरक नाम का एक बुनकर रहता था. कपड़े बुनते हुए किसी एक दिन उसकी बुनने की काठ लकड़ी होने की वजह से टूट जाती है.

वह बहुत निराश हो जाता है.  इसके लिए वह लकड़ी काटने के लिए एक कुल्हाड़ी पकड़कर जंगल की ओर चला जाता है.

बहुत समय तक ढूडने पर भी उसे एक अच्छा सा लकड़ी नहीं मिल पाया. जिससे कपड़ा बुनने का काठ बन सके. फिर भी उसने हार नहीं माना और प्रयास करता रहा.

तभी कुछ दूरी पर जाकर उसे एक बहुत ही बड़ा पेड़ दिखाई दिया. उसे देख मंथरक बहुत खुश हुआ. और उसे काटने के लिए जैसे ही अपनी कुल्हाड़ी उठाई.

तभी अचानक वहां एक देव प्रकट हो गए. और कहने लगे–” हे मानव ! यह क्या अनर्थ कर रहे ? एक बेजुबान पेड़ को क्यों कांटने चले हो ? ”

इस पर मंथरक ने कहा–” ! हे देव ! मुझे क्षमा करें ,मै मजबूर हूं इस पेड़ को काटने के लिए. ”

देव ने कहा–” बताओ ऐसी कौन सी मजबूरी है. जो तुम इस पेड़ को काटने चले हो. ”

मंथरक ने कहा–” हे देव ! मैं एक बुनकर हूं. कपडे बुनने का काम करता हूं. जो मेरी बुनने का यंत्र है वह एक लकड़ी का है. जो टूट गई है. इसलिए मैं लकड़ी काटने के लिए इस जंगल में आया हूं. बहुत ढूडने के बाद यह पेड़ मिला है इसलिए मज़बूरी में मुझे काटना ही होगा. ”

इस पर देव ने कहा–” नहीं वत्स ! ऐसा मत करो. मैं तुम्हारी बातों से प्रसन्न हूं. इस पेड़ के बदले एक वरदान मांग सकते हो. तुम्हे जो भी चाहिए मुझसे वरदान के रूप में मांग सकते हो. ”

यह सुन कर मंथरक कहा–” ठीक है देव ! अगर आप मुझे वरदान देना चाहते हो तो मैं इस पेड़ को नहीं काटूंगा. मगर मुझे थोड़े समय दीजिये जिससे मैं अपने मित्र और पत्नी से सलाह करने के बाद ही वरदान मांग सकता हूं.

यह कहकर मंथरक अपने गांव की ओर लौट गया. ”

जाते हुए उसने रास्ते में ही अपने मित्र नाई को देखा उसके पास जाकर उससे पूछा–” मित्र ! मुझसे एक देव प्रसन्न है और मुझे वे इच्छापूर्वक वरदान देना चाहते हैं. इसलिए तुम ही बताओ मुझे वरदान में क्या मांगना चाहिए ? ”

इस पर नाई ने कहा–” मित्र ! तुम्हे एक राज्य मांगना चाहिए. जिसका तुम राजा रहोगे और मैं तुम्हारा मंत्री. जिससे हमारा पूरा जीवन सुखमय बीत सके. ”

मंथरक ने कहा–” मित्र ! तुम ठीक ही कहते हो. किन्तु एक बार मैं अपनी पत्नी को भी पूछ लूं . आंखिर वो मेरी जीवन संगिनी है. इस बात पर नाई थोडा नाराज हुआ और कहा–” मित्र ! बुरा मत मानना एक बात कहूं. ”

मंथरक–” कहो न मित्र ! भला तुमसे क्यों बुरा मानूं ? ”

नाई–” मित्र औरते हमेशा अपनी ही फायदे के बारे में सोचती हैं. उन्हें किसी की परवाह नहीं होती. इलसिए मेरी सलाह मानों अपनी पत्नी से इस बारे में बात मत करना. ”

यह सुनकर बुनकर अपने घर चला गया.

अपने मित्र की बातों को ध्यान न देते हुए अपनी पत्नी के प्रेम में विवश मंथरक उससे पूछा–” प्रिये ! मुझसे एक देव प्रसन्न हैं और उन्होंने मनइच्छा वरदान मांगने का वचन दिया है. इसलिए तुम ही बताओ मुझे वरदान में क्या मांगना चाहिये ? ”

पत्नी सुनते ही बहुत खुश हो गई और अपनी राय बताने लगी–” हे पतिदेव ! तुम सिर्फ दो हांथ से काम करते-करते बहुत थक जाते हो. जिससे कुछ ही धन मिलता है वह भी सिर्फ घर के खाने खर्चे में ही निकल जाता है.

इसलिए तुम्हे देव से दो हांथ और एक सर मांगना जिससे तुम्हारे चार हांथ और दो सर हो जायंगे और तुम दोनों तरफ से काम कर सकोगे. जिससे हमारी आमदनी भी दुगुना हो जायेगी और तुम्हारी पुरी दुनिया में वाहवाही होगी. ”

मंथरक अपनी पत्नी की बात सुनकर तुरंत उस जंगल की ओर चला गया.

कुछ समय चलने के बाद वह उस पेड़ के पास पहुंच गया. वह देव उसे देख दोबारा प्रकट हो गया और अपने वचनुसार उसे वरदान के लिए पूछा ?

उसने कहा– ” हे देव ! मुझे वरदान में आप एक सर और दो हांथ दीजिये. ”

देव–” तथास्तु ! कहकर वहां से अदृश्य हो गया. ”

अब वह बुनकर दो सर और चार हांथ वाला हो गया. और ख़ुशी-ख़ुशी से अपने घर की ओर लौटने लगा.

गांव के किनारे जैसे ही पहुंचा उसे देख खेलते हुए गांव के बच्चे राक्षस समझ कर डर से अपने-अपने घर की ओर चले गए.

बच्चों को इस तरह भागते देख जब गांव के लोग उस तरफ गये तो देखे कि चार पैर और दो सर वाला कोई राक्षस जैसे गांव की ओर आ रहा है. बिना देरी किये उसे मारने के लिए किसी ने हाथ में लाठी पकड़ कर और किसी ने पथरों से उस पर हमला कर दिया.

वह बुनकर अपने आप को बचा न सका और वहीं अपना जान गवां बैठा .

सिख:- इसलिए सही कहते हैं. अपने हितैषी मित्रों की बात ना मानने वाले अक्सर इस बुनकर की तरह ही किसी बड़ी मुसीबत में पड़ जाते हैं और अपनी जान गवां बैठते हैं.

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