the tale of two fishes and a frog: किसी तालाब में शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि नाम के दो मछलियाँ रहती थी. एकबुद्धि नाम का एक मेढक उनका मित्र था. वे तीनों रोज आपस में बातें करते जल में घूमते-फिरते एक साथ समय व्यतीत करते थे.
तभी एक दिन संध्याकाल में मछुवारों की टोली वहां आई जिन्होंने हांथ में जाल और कंधे पर कुछ मछली पकड़ कर उस तालाब के किनारे खड़े होकर बातें कर रहे थे –” अरे ! यहां देखो इस तलाब में बहुत सारे मछलियों का झुण्ड है और इसमें पानी भी बहुत कम है. इसलिए हम कल ही सुबह इस तालाब की मछलियों को पकड़ने आयेंगे. ”
यह कहकर मछुवारे वहां से चले गए. दोनों मछलियाँ और मेढक चुपके से उनकी बातें सुन रहे थे. और सभी आपस में सलाह करने लगे.
इस पर मेढक ने कहा–” अरे शतबुद्धि ! क्या तूने उन मछुवारों की बात सुनी ? ” अब हमें क्या करना चाहिए. भागना चाहिए या ठहरना ? ”
यह सुनकर सहस्त्रबुद्धि ने हंसकर कहा–” अरे मित्रों ! डरो मत , सिर्फ बात करने से कोई नहीं आ जात. वो लोग यहां कभी नहीं आयेंगे. अगर आ भी गए तो मेरी बुद्धि और चतुराई से सबको बचा लूंगी. क्योंकि मैं तरह-तरह से पानी की चालें जानती हूँ जिससे वह हमें कभी भी पकड़ नहीं पायेंगे. ”
इस बात पर शतबुद्धि ने भी सहमती जताई और कही–” सहस्त्रबुद्धि सही कह रही है. और ऐसे भी हमें अपने पूर्वजों के घर को जो सैकड़ों वर्षों से रह रहे हैं उसे छोड़ कर कदापि नहीं जाना चाहिए.
उसकी बातों को सुनकर सभी मछलियां उन पर विश्वाश करने लगी. ”
यह बात सुनकर मेढक ने कहा–” हे मित्रों ! मुझे यह बात उचित नहीं लगता कहीं वे मछुवारे सचमुच कल सवेरे आ जायेंगे तो. इसलिए भागने में ही हमारी भलाई होगी अगर तुममे से कोई मेरे साथ जाना चाहता है तो चलों किसी अन्य जलाशय में वहीं जाकर हम अपने प्राणों की रक्षा कर सकते हैं. ”
उसकी बातों पर किसी ने भी ध्यान नहीं दिया.
इसलिए मेढक अकेले अपनी मेढकी को लेकर किसी दुसरे जलाशय में चला गया. ”
वह मछुवारे जैसे ही सुबह हुआ. अपने जाल को पकड़ कर उस तालाब में आ गए और वहां अपनी जाल बिछाना शुरू कर दिया.
कुछ समय में बहुत से मछलियां , केकड़े , कछुए इत्यादि पकड़ लिए.
इतने में सहस्त्रबुद्धि और शतबुद्धि ने उन मछुवारों से बचने के लिए अनेकों तरह के चाले चली. मगर उनका एक भी चाल न चला,और अंत में वे दोनों भी अपने परिवार सहित मछुवारों के जाल में फंस गई.
दोपहर के समय वे सभी मछलियों को पकड़ कर ख़ुशी-ख़ुशी से घर की ओर लौटने लगे.
सहस्त्रबुद्धि और शतबुद्धि मछलियां भारी होने से मछुवारे उन्हें एक को अपने कंधे में और दुसरे को अपने बाजुवों में पकड़ कर ले गए.
बगल के छोटे से जलाशय से वह मेढक उन मछुवारों को ले जाते देख बहुत दुखी हुआ और अपनी मेढकी से कहा–“हे प्रिये ! देख सौ अक्ल वाला कंधे पर चड़ा है और हजार अक्ल वाला बाजुवों में कैसे लटका हुआ लिया जा रहा है . और मैं एकबुद्धि वाला आनंद से इस स्वच्छ जल में विहार कर रहा हूं . ”
सिख: – इसलिए बुद्धि का अभिमान नहीं करना चाहिए. क्योंकि अभिमानवश सहस्त्रबुद्धि भी एक बुद्धि के समक्ष व्यर्थ है. अर्थात घमंड करने से हजार बुद्धि वाला भी एक समझदार बुद्धि वाले को परास्त नहीं कर सकता.
यह भी पढ़ें –