the musical donkey: एक समय की बात है. किसी गांव में एक धोबी रहता था. जिसके पास एक उद्धत नाम का गधा था. वह धोबी उसे रोज दिन-रात कपड़े ढोने का काम करवाता रहता.
वह धोबी स्वभाव से ही बहुत कंजूस था जिसके कारण उसे ढंग से खाना-पीना तक नहीं देता था. और रात में ही कुछ समय के लिए उसे खेतों में खुला छोड़ दिया करता. वह गधा भरपेट चारा न मिलने पर बहुत ही कमजोर और दुबला-पतला हो गया था.
इसी तरह रोज रात को खाने के लिए दर-दर भटकता फिरता था. मगर एक दिन भी उसे ढंग से खाना नसीब नहीं होता था.
तभी एक दिन वह गधा हताश हुए चलते-चलते रात के समय में बहुत दूर जंगल की ओर पहुंच गया. उदास मन से बैठे गधे को एक गीदड़ ने देखा और कहा–“हे मित्र ! क्या हुआ ? बहुत उदास मालुम पड़ते हो. ”
गीदड़ ने दुखी मन से धीरे से जवाब दिया–” क्या करूं मित्र बहुत भूखा हूं. ऐसा लगता है मानों शरीर से प्राण निकला जा रहा है.
यह कहते हुए अपनी पूरी बात उस गीदड़ को बताई. ”
गीदड़ भी उसकी बात सुनकर बहुत दुखी हुआ और कहा–” मित्र ! अब तेरे दुःख के दिन बीत गए समझो. चलो मेरे साथ. ”
इस पर गधे ने कहा–” कहां जाना है मित्र. मेरा चलना मुस्श्किल हो गया है. ”
गीदड़ ने कहा–” मित्र ! मैंने एक ऐसी बाग़ देखी है जहां. अनेकों तरह के फलें और सब्जियां मौजूद हैं. मैंने एक छोटा सा गुप्त रास्ता बनाया हैं. जिसमें मैं रोज खाने के लिए चोरी-चुपके से उस बगिया में चला जाता हूँ और भरपेट खाना खाता हूं इसलिए मैं तंदरुस्त रहता हूं. ”
यह बात सुनकर उस गधे के शरीर में थोड़ी जान आई और उसके साथ पीछे-पीछे उस बाग़ की ओर चला गया.
कुछ समय पश्चात बाग़ में पहुचने पर गधे नें देखा की इतना सारा फल-मूल और सब्जियां उसको रहा न गया और उन सब्जियों पर खाने के लिए टूट पड़ा.
भरपेट खाने के बाद कहा–” मित्र ! आनंद आ गया बहुत दिनों के बाद इतने स्वादिष्ट-रसीले फल खाने को मिला हैं. मानों मेरी तो आत्मा तृप्त हो गई. ”
उसके बाद वे रात भर खाने के बाद सुबह होने से पहले ही वहां से निकल गए.
रोज इसी तरह दोनों एक जगह पर मिलते और उस बगीचे में जाकर रात भर भरपेट फल और सब्जियां खाकर वापिस चले जाते. इतने में गधे का रंग रूप निखर गया और उसकी चाल-ढाल भी बदल गई.
समय बीतता गया और उनका रोज का यही कारनामा चलता रहा.
और जब एक दिन रात के समय में दोनों बगीचे में सब्जियां खा रहे थे. तब वह गधा प्रसन्न मन से भरपेट फल खाकर चांदनी रात में जमींन पर लोटने लगा.
उसे देख गीदड़ ने कहा–” क्या हुआ मित्र ? तुम्हारी तबियत तो ठीक है न. यहां जमीन पर लेट कर क्या कर रहे हो ? ”
गधा–” अरे भाई ! देखो कितना अच्छा चांदनी रात हैं कितने तारे टिमटिमा रहें हैं ऐसा लगता है मानों मुझे ही देख रहें हैं. इसलिए मुझे गाना गाने का मन कर रहा है.
यह बात सुनकर गीदड़ बोला–” अरे भाई ! यह क्या बोल रहे हो ? हम चोरी से यहां इस बगीचे पर आयें अगर इसकी रखवाली करने वाले जाग गए तो हमें मार डालेंगे. इसलिए तुम गाना गाने के बारे में सोचना भी मत. ”
इस पर गधा बहुत गुस्सा हो गया और कहा–“अरे तुम जंगली के जंगली ही रहोगे. तुम क्या जानो संगीत किसे कहते हैं. हम गधों का ढेंचू गाना कितना सुरीला है जिसे लोग बड़े शौक से सुनते हैं. इसलिए मैं गाऊंगा जिसे रखवाले भी खुश होकर डंडे की जगह फूलों की हार लेकर मुझे पहनाएंगे. ”
गीदड़ उसकी मुर्खताभरी बातों को सुनकर सोचने लगा कि अब क्या किया जाए ?
तभी उसने कुछ तरकीब सोची और कहा–” ठीक है मित्र ! तुम्हे गाना है तो गाओ मैं क्या जानू गीत-संगीत के बारे में. इसलिए तुम कुछ देर बाद गाना. जिससे मैं तुम्हारे गाना ख़त्म होने के पहले ही तुम्हारे लिए फूलों की माला लेकर आ सकूं. ”
यह कहकर गीदड़ वहां से चला गया.
उसकी बात सुनकर गधा ख़ुशी से फुला नहीं समा रहा था. उसके जाने बाद गधा अपने बेसुरहा आवाज से रेंकने लगा. उसकी रेंकने की आवाज सुनकर कुछ ही समय में बगीचे के रखवाले जाग उठे और एक बड़ी सी लाठी पकड़कर उसकी ओर दौड़ने लगे. और पास जाकर देखा तो वह गधा खेतों में लेटकर मडराता हुआ अपनी ही धुन में गाना गाते फलें खा रहा था.
उसे देख बगिचे के रखवाले उसके चारों ओर फैलकर कहने लगे मारो इस गधे को जो रोज हमारे बगीचे के फल और सब्जियों को खाता जा रहा था. यह कहते हुए लाठी से उसकी इतनी पिटाई किये की वह मूर्छित होकर वही जमीन पर गिर पड़ा.
वह सियार दूर से ही देखते हुए कह रहा था–” इसलिए कोई भी व्यक्ति शुभचिंतक हो या भला चाहने वाला अगर उनकी बात न मानकर मुर्खतापूर्ण अपनी ही मनमानी करे तो उसका यही अंजाम होता है.
जैसे इस गधे का हुआ.
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