The lion the camel the jackal and the crow : शेर ऊंट सियार और कौवा – पंचतंत्र

The lion the camel: किसी वन में मदोत्कट नाम का एक शेर रहता था बाघ कौवा और सियार उनके तीन सेवक थे जो उनके मालिक शेर के लिए शिकार करके भोजन का प्रबंध करते थे.

किसी एक दिन भोजन की तलाश में घूमते हुए शेर और उसके नौकर बाघ कौवा और सियार एक ऊंट को देखा जो अपने साथियों से बिछड़ कर भटक गई थी. शेर के नौकरों ने शेर से कहा मालिक उधर देखो एक ऊंट राह चलती शायद भटक गयी है. आज हमारे भोजन का बंदोबस्त हो गया समझो.

The lion the camel the jackal and the crow : शेर ऊंट सियार और कौवा - पंचतंत्र
The lion the camel the jackal and the crow : शेर ऊंट सियार और कौवा – पंचतंत्र

शेर ने कहा पहले जाओ पता करो कि वह ऊंट जंगली है. या ग्रामीण की. अगर ग्रामीण कि होगी तो उनसे विनती करके मेरे पास लाना मैं उसे अभय दान दूंगा और अपनी पनाह में रखूंगा. उसके नौकर पूछने के लिए गये और उस ऊंट को सेर के पास ले आकर आये.

ऊंट ने अपनी सारी बात बताई कि मैं चलते-चलते अपने साथियों से बिछड़ गई हूँ.

शेर ने कहा अब गांव जाकर क्या करोगे यही हमारे पास इस जंगल में रहो कितना इंसानों के बोझ ढोते रहोगे यहां पर तुम्हे अच्छी-अछी घांस मिलेंगी. और तुम एकदम से तंदरुस्त हो जाओगे.

यह सुनकर ऊंट बेचारा उनकी बात मान गया और उनके साथ रहने लगा. एक दिन शेर किसी जंगली हांथी के साथ भयंकर घमासान युद्ध हुआ और उसमें हाथी के दांतों से शेर घायल हो गया वह शेर चलने-फिरने में असमर्थ हो गया. जिससे उनके साथी नौकर भूखे रहने लगे. जमीन पर पड़े-पड़े अधमरा शेर अपने नौकरों को बुलाकर उनको कहता है. कि जाओ कुछ ऐसे जानवर को पकड़कर लाओ जिसे मैं इस हालत में भी मार सकूं और अपना पेट भर सकूं उसके नौकर जंगल के चारों ओर घूमते रहे पर कही कोई शिकार नहीं मिल पाया. और हतास होकर वापिस शेर के पास लौट गए.

जब शेर ने पूछा कि क्या कुछ मिला. उनके नौकर बाघ. सियार और कौंवे बोले नहीं महराज कुछ नहीं मिला.सारा जंगल हमने छान लिया मगर कुछ नहीं मिला. अधमरा शेर उदास होकर चुप-चाप भूख से व्याकुल बैठा रहा.

तभी सियार और कौवें आपस में एक दुसरे के कान में कुछ-कुछ बडबडाने लगे कि क्यों न हम इस ऊंट को ही आज के लिए अपना शिकार बनाए.

उसकी खुस-फूसबांतो को सुनकर बोला क्या बोल रहे हो. तभी कौंवे ने धीमी आवाज से कहा महराज क्यों न आज की भोजन में इस ऊंट को बनाया जाये ?

शेर गुस्से में आकर कहा खामोश. क्या बक रहे हो हमने उस ऊंट को अपनी शरण दी है हम उसे कैसे मार सकते हैं. अगर दुबारा बोला तो तुम्हारी जान ले लूंगा.

कौंवे डर के मारे कहने लगा नहीं महराज मैं तो आप ही के लिए बोल रहा था. आप इतने दिनों से नहीं खाए हैं कितने दुबले पतले हो गए हैं. अगर आप को कुछ हो गया तो हमारा क्या होगा.

उसके बाद सियार ने भी कहा महराज अगर वह ऊंट खुद अपने मुह से कहे की मुझे मारकर खा जाओ तो इसमें कोई बुराई तो नहीं है. शेर भी भूखा प्यासा उसको कुछ समझ में नहीं आ रह था. वह बोल कि जाओ जैसे तुम्हारी इच्छा लगे वैसे करो.

वे दोनों कौवें और सियार ने सोचा कि एक तरकीब निकाला जाए जिससे कि ये ऊंट खुद अपनी जुबान से बोले की मुझे अपना भोजन बना लो. कुछ समय बाद कौवें ने कुछ तरकीब ढूंड ही ली. वे सारे नौकर बाघ कौवें और सियार एक साथ उस अधमरा शेर के पास गए.

उसके बाद कौवें ने कहा हे शेर महराज हमें आपकी ये दुरदशा देखी नहीं जाती इसलिए मुझे खा लो इससे आपको तृप्ति मिलेगी और मुझे स्वर्ग की प्राप्ति.

यह सुनकर सियार ने कहा अरे. तुम्हारा तो छोटा-सा शारीर है तुम्हें खाकर भी स्वामी की देह नहीं चल सकता और उन्हें दोष भी लगेगा. पर तूने जो अपनी अपनी स्वामी-भक्ति दिखाई है. उससे तू स्वामी के भोजन के ऋण से उऋण हो गया और दोनों लोकों में तेरी प्रशंसा होगी.

तू चल अब मैं स्वामी से विनती करता हूं और कहा हे शेर महराज यह कौवां तो इतना छोटा है की इससे तुम्हारी पेट क्या भरेगा. इसलिए मुझे खा कर अपना पेट भरे.

इतने में बाघ भी बोलने लगा. महराज यह सियार कुत्ते के समान दिखता है. इससे खाकर आप बेकार में बदनाम हो जायेंगे. वे सारे अपने प्लान के मुताबिक एक दुसरें में खामियां निकालते रहे.

तभी दूर में बैठा बेचारा ऊंट सोचने लगा कि वे सारे नौकर अपने मालिक के लिए अपनी जान दांव पर लगा रहें हैं तो मैं भी इनके लिए कुछ कर सकता हूँ.

इसके बाद वह ऊंट शेर के नजदीक गया और कहने लगा हे शेर महराज आप मुझे खा लो आपने मुझ पर जो उपकार किया और पनाह भी दिया इसके लिए मैं इतना तो कर ही सकता हूं.

इतना कहते ही बाघ और सियार उस पर झपट पड़े और उसका पेट चीरकर उसको सभी जानवर खाने लगे.

सिख:- धूर्त (मूर्ख) लोगों की संगति में हो तो सतर्क रहें उनकी मीठी-मीठी बातों में बिलकुल भी ना आयें क्योंकि वे अपना सगा देखते हैं न पराया कभी भी नुकसान पहुंचा सकते हैं.

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