The hermit and the mouse : साधू और चूहा – पंचतंत्र

The hermit and the mouse : किसी नगर के एक मंदिर में साधू रहता था. वह रोज उस मंदिर में पूजा पाठ करता और जब भी भक्त लोग आते तो उनको  कथा भजन सुनाता था.

सभी भक्तजन उस साधू को कुछ न कुछ दान-दाक्षिणा देकर जाते थे. साधू के पास आवश्यकता से ज्यादा भोजन इकठ्ठा हो जाता था. जितना जरुरत पड़ता उतना भोजन को खाकर साधू . बांकी भोजन को अपने पोटली में रख कर दीवार पर गड़ी एक खूंटी में टांगकर मंदिरों की साफ़ सफाई में लग जाता था. और रात को थक कर सो जाता था. जब भी साधू की आँख लग जाती.

उसके बाद एक बदमाश चूहा उसके भोजन  को ले जाकर अपने बिल में रख देता था. और जब साधू सुबह उठकर भोजन बनाने के लिए उस पोटली को देखता तो वह पोटली खाली पाता था. साधू बेचारा भूख से तड़पता उदास हो जाता था.
और सोचता था कि  आंखिर मेरा पोटली में रखा भोजन गया तो गया कहां ? किसने चुराया होगा ? 

कुछ समय तक दुखी होने के बाद  बैठ जाता. और सोचता कि इस पोटली को थोड़ी ऊपर रखा जाए जिससे कोई चुरा न सके. साधू के उस पोटली को ऊपर रखने के बाद भी चोरी हो जाता  है. इसलिए वह अब की बार दरवाजे के पीछे  छिपकर देखन चाहता था कि पोटली में रखे भोजन को कौन चोरी करता है. जब साधू चुपके से दरवाजे के पीछे छुपकर देख रहा था.

तभी घर के पीछे से एक छोटा सा चूहा आता है और उस पोटली के पास जाकर कर उसका सारा भोजन धीरे-धीरे ले जाने का काम करता है.
साधू देख कर अचंभित हो जाता था और बहुत गुस्सा भी. जब साधू उस चूहा को  मारने के लिए पास जाता है तो वह चूहा भाग जाता है.

अब साधू अपने पास एक बड़ी से  छड़ी लेकर सोता था. और हमेशा उस छड़ी को बजाता था ताकि चूहा उस पोटली के नजदीक ना आये.
रात भर वह साधु सो नहीं पाता था. और दिन का उसका सारा काम भी अधूरा ही रहता था. दुसरे दिन साधू के यहां उसका एक परम मित्र अथिति के रूप में आता है.

उसको देखकर साधू सत्कार के साथ स्वागत करता है. और पानी के लिए पूछता है. उसके बाद दोनों बैठ जाते हैं. मगर साधू का ध्यान उसी पोटली की ओर लगा रहता था. कि कब चूहा आये और उसका भोजन ले जाए इसी डर से साधू अपने मित्र की ओर ध्यान भी नहीं दे पाता. इस पर साधू का मित्र बहुत गुस्सा होता है.

और कहता है कि मेरा अपमान हो रहा है. अब मुझे एक क्षण भी नहीं रहना तुम्हारे इस मंदिर में किसी दुसरे के मंदिर में जाकर रहूँगा.
तुम ये एक मंदिर पाकर बहुत घमंड करते हो न इसलिए मेरे बातों पर कोई ध्यान नहीं देते.

अपने मित्र की रूठी भरी बातों को सुनकर साधू अपनी पूरी बात बताता है.

साधू के बात को सुनकर साधू का मित्र कहता है ! कि ऐसा क्या है ? उस चूहे के पास जो इतना आत्मविश्वासी है ! और पूछता है ! मित्र…उस चूहे का बिल कहा हैं.

साधू कहता है ठीक-ठीक से मुझे नहीं पता है. लेकिन इस मंदिर के पीछे से रोज आता है,इतना कहकर वे दोनों मंदिर के पीछे चले जाते हैं और अंतत: उस चूहे का बिल मिल जाता है.

और जब साधू और उसके मित्र उस बिल को खोदकर देखते हैं. तो उसमें से ढेर सारा भोजन पड़ा मिलता है ,उसका मित्र कहता है.
यही कारण है. उस चूहे का आत्मविश्वास ! दोनो ने सारे भोजन को वहा से हटाकर किसी दुसरे जगह पर रख देते हैं. और अपने मंदिर में चले जाते हैं.
जब चूहा वापिस आकर देखता है कि उसका सारा भोजन खाली रहता है. वह दुखी हो जाता है. और सोचता है कि भोजन दोबारा चुरा लूँगा.
यही सोच कर जब चूहा दोबारा चोरी करने आता है तो एक बार में उस पोटली तक नहीं पहुँच पाता क्योंकि उसका बिल से भोजन नहीं रहने के कारण उसका आत्मविश्वास कमजोर हो जाता है.

और जब वह दोबारा उस पोटली के पास जाने की कोशिश करता है तो नीचे जमीन पर गिर जाता है. उसी समय पास में छुपे साधू और उसके मित्र एक बड़ी सी छड़ी को पकड़ कर आते हैं. और उस चूहे पर भारी जोर से प्रहार करते है. जिससे चूहा मर जाता है.

सिख:- सही कहा गया है. संसाधनों के आभाव से आत्मविश्वास की कमी हो जाती है. इसलिए अपने पास जितना भी संसाधन हो उसे संभाल कर रखना चाहिए.

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