the brahmin thief and the demon: किसी नगर में द्रोण नाम का एक गरीब ब्राम्हण रहता था. वह दान दक्षिणा न मिलने के कारण. उसने अपना बाल. दाढ़ी. और नाख़ून बढ़ाकर गर्मी. ठंडक और बरसात से अपना शरीर सूखाता हुआ रहता था.
किसी यजमान ने उसे देखा तो उसके मन में दया आ गई. और उसने उस ब्राम्हण को दो छोटी-छोटी बछड़े दे दी ताकि उसको पाल-पोशकर अपना जीवन व्यतीत करे. वह ब्राम्हण पड़ोसियों से कुछ न कुछ मांगकर और हरी-हरी घांस खिलाकर उन बछड़ो को मोटा तगड़ा बना दिया.
तभी घूमते हुए एक चोर नें एकाएक उस बछड़े को देखा. वह चोर उस बछड़े को चुराने की सोची, ऐसा निश्चय करके बांधने की रस्सी लेकर वह चोर उस ब्राम्हण के घर के तरफ चला गया. अचानक रास्ते में एक बहुत बड़ा. आदमी दिखाई दिया जिसके बड़े-बड़े लाल आँख, बड़े-बड़े दांत और आग की तरह लाल दाढ़ी.
उसे देखकर चोर घबरा गया और डर से कांपते हुए पूछा. ” हे भयंकर शरीर धारण करने वाले पुरुष ! आप कौन है ? ”
उसने जवाब दिया मैं ब्रम्हराक्षस हूं. और तुम कौन हो ?
उसने जवाब दिया मैं एक कूरकर्म चोर हूं. एक गरीब ब्राम्हण के बैल के जोड़े चुराने के लिए जा रहा हूं. ”
विशवास हो जाने के बाद ब्रम्हराक्षस ने कहां. ” मित्र ? मैं बहुत भूखा हूं. कई दिनों से कुछ नहीं खाया हूं. इसलिए उस ब्राम्हण को मैं खाऊंगा. बड़ी अच्छी बात है कि हम दोनों का एक ही मकसद है. ”
दोनों वहां से ब्रम्हाण के घर की ओर चले गए.
दोनों ब्राम्हण की सोने की प्रतीक्षा करने लगे.
और जब रात के अंधरे में खाना खाकर ब्रम्हाण सोने लगा तब रात के दुसरे पहर में चोर और राक्षस चुपके से उसके घर में घुस गये. सोये हुए ब्राम्हण और उसको खाने के लिए तैयार राक्षस को देखकर चोर ने कहा–” मित्र ! यह न्याय नहीं है. मेरे बैल चुराने के बाद ही तुम उस ब्राम्हण को खाना.
इस बात पर राक्षस गुस्से से कहने लगा नहीं अगर बैलों के हंकारने से ब्राम्हण उठ गया तो इसलिए पहले मैं खाऊंगा बाद में तुम बैल चुरा लेना. ”
चोर ने भी कहा– ” तेरे खाने की तैयारी में अगर जरा सी भी देर हुई तो बैल के जोड़े नहीं चुरा सकूंगा. ” इसलिए पहले बैलों की जोड़ी चुरा लेने दे. बाद में तू खाना. ”
आपस में इसी तरह दोनों में तू-तू मैं-मैहोने लगा. उन दोनों की आवाज सुनकर ब्राम्हण उठ गया.
ब्राम्हण को देखकर चोर ने कहा– ” हे ब्रम्हाण देव यह राक्षस तुम्हे खाना चाहता था. मैंने आपकी जान बचाई.
उसके बाद राक्षस ने कहा– ” नहीं-नहीं ब्रम्हाण देव ! यह चोर है और तुम्हारे बैल को चुराने आया.
दोनों की बाते सुनकर ब्राम्हण समझ गया कि. दोनों ही मेरे दुश्मन है. ब्राम्हण ने झट से अपने कुछ मन्त्र और अपने लाठी से उन दोनों को किसी तरह से भगा दिया.
सिख:- आपस में लड़ने वाले को कभी भी फल की प्राप्ति नहीं होती है.
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