the brahmani and the mongoose : ब्राह्मणी और नेवला – पंचतंत्र

the brahmani and the mongoose: किसी नगर में देवशर्मा नाम का एक ब्राम्हण रहता था. उसकी पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया.

ठीक उसी दिन उसके घर में रहने वाली नेवली ने एक नेवला बच्चे को जन्म देकर मर गई.

वह ब्राम्हणी उस नेवली के पुत्र को अपने पुत्र के समान मानकर उसको भी दूध पिलाकर कर उस नेवले को अपने बच्चे की तरह पाला-पोसा. वह उसके जानवर स्वभाव के होने से डरती थी कि. कहीं यह मेरे बच्चे को कांट न ले.

एक दिन ब्राम्हणी अपने बच्चे को खाट पर सुलाकर अपने पति से कहा–” स्वामी ! मैं जल लेने के लिए पास के तालाब में जा रही हूं. जब तक मैं न आऊं. तुम यहीं रहकर इस नेवले से बच्चे को बचाना , कहीं चोट न पहुंचा दे. ”

यह कहने के बाद ब्राम्हणी जल लेने के लिए तलाब चली गई.

उसके जाने के बाद वह ब्राम्हण लोभ वश भिक्षा मांगने के लिए घर को सुना ही छोड़कर चला गया.

ठीक उसके बाद दुर्भाग्य-वश एक काला सांप उस बच्चे की ओर आ रहा था. वह नेवला सोचा कि कहीं यह मेरे भाई को कांट न ले. इससे पहले नेवला उस सांप के पास जाकर उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिया. और उसका मुंह लहुलुहान हो गया. और वह अपनी बहादुरी बताने के लिए अपनी माँ के पास उस तालाब की ओर चला गया.

जब ब्राम्हणी ने उस नेवले को लहू से सना मुंह को देखा तो वह डर गई. और शंका से सोचने लगी कहीं इसने मेरे बच्चे को कांट नलिया होगा.

वह गुस्से से सर पर रखी पानी के बर्तन को उस नेवले के सर पर पटक दी जिससे नेवला बेचारा वहीं तड़प-तड़प कर मर गया. और वह ब्राम्हणी दौड़ती रोती-विलक्ति हुई घर की ओर चली गई. वहां जाकर देखा कि बच्चा सुरक्षित खाट पर सोया हुआ है.

और कुछ दुरी पर सांप के टुकड़े बिखरे हुए थे. वह समझ गई की नेवले ने सांप से बच्चे को बचाया है.

उसको देखकर अपने बच्चे के मरने जैसे अफ़सोस से रोती हुई अपना सर पीटने लगी.

इसके बाद जब ब्राम्हण दान-दक्षिणा लेकर वापस घर लौटा तो उसे देखकर पुत्र-शोक से दुखी ब्राम्हणी कहने लगी–” अरे लालची ! लालच के मारे तूने मेरा कहना नहीं माना.

इसलिए आज मेरा एक पुत्र मृत्यु की गोद में चला गया .

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