the blind man and the Hunchback : अंधा कुबड़ा और त्रिस्तनी – पंचतंत्र

the blind man and the Hunchback: एक समय की बात है. जब उत्तरापथ के मधुपुर नामक नगर में मधुसेन नाम का एक राजा रहता था. उसे विषय सुख करते हुए एक त्रिस्तनी कन्या  उत्पन्न हुई. पैदा होने की खबर जब राजा तक पहुंची.

तो उसने तुरंत अपने सैनिकों को बुलाकर कहा–” अरे ! इस त्रिस्तनी कन्या को ले जाकर किसी वन में छोड़ आओ. और किसी को पता भी न चले. ”

यह सुनकर सैनिकों ने कहा–” हे महराज ! यद्यपि यह त्रिस्तनी कन्या अनिष्ट करने वाली होती है. फिर भी एक बार किसी ब्राम्हण को बुलवाकर पूछ लेना चाहिए. ताकि लोक-परलोक में आपकी निंदा न कर सके. जैसे–” जो दुसरे से बराबर पूछता है. सुनता है और हमेशा उसकी याद रखता है. उसकी बुद्धि सूर्य की किरणों से कमलिनी की तरह बदती है. ”

राजा ने कहा , यह कैसे ? ”

उसने कहा—

राक्षसराज द्वारा पकडे गए ब्राम्हण की कथा—-

” हे महराज ! किसी जंगल में चंडकर्मा नामक राक्षस रहता था. वह जंगल में घूमते हुए उसे एक ब्राम्हण मिला. राक्षस उसके कंधो पर चड़कर कहा–” अरे ! आगे चल. ”

ब्राम्हण भी उस राक्षस के डर से चुप-चाप बिना कुछ कहे आगे की ओर चलते गया..कमल और मुलायम जैसे उसके पैर देखकर ब्राम्हण ने राक्षस से पूछा—” हे राक्षस ! तुम्हारे पैर इतने मुलायम कैसे हैं ? ”

राक्षस ने कहा–” अरे ब्राम्हण ! मेरा यह प्रण है कि मैं गीले पैर में जमींन पर नहीं चलूंगा. ”

यह सुनकर अपने छुटकारे का उपाय सोचता हुआ वह ब्राम्हण एक तलाब पर पहुंचा.

वहां राक्षस ने कहा–” जब तक मैं उस तलाब से स्नान कर नहीं आ जाता तब तक तुम यहीं मेरा राह देखना.

यह कहकर राक्षस स्नान करने तलाब की ओर चला गया.

उसके जाने के बाद ब्राम्हण सोचा–” अरे ! जरुर पूजा-पाठ के बाद वह मुझे खा जाएगा. इसलिए मुझे बिना देरी किये यहां से भाग जाना चाहिए. और वह गिले पैर मेरा पीछा भी न कर सके.

अब वह ब्राम्हण वहां से भाग निकला. व्रत टूटने के डर से राक्षस भी उसके पीछे नहीं गया. इसलिए लोग सही कहते हैं कि. जानकार आदमी को भी दुसरे से पूछते रहना चाहिए. बड़े राक्षस से भी पकड़े जाने पर सवाल पूछने से ब्राम्हण छुट गया. ”

उसकी बात सुनकर राजा ने ब्राम्हणों को बुलाकर पूछा — ” हे ब्राम्हणों ! मेरे यहां त्रिस्तनी कन्या का जन्म हुआ है. इसकी शांति का कोई उपाय है नहीं ? ”

ब्राम्हणों ने कहा–” हे राजन ! सुनिए… ” मनुष्य के यहां कम अथवा अधिक अंगो वाली जो कन्या पैदा होती है. वह अपने पति और शील का नाश अवश्य करती है. ” इनमें से भी अगर तीन स्तनों वाली कन्या अपने पिता की नज़र पड़े. तो वह तुरंत अप्पने पिता का नाश कर देती है. इसमें कोई संदेह नहीं. इसलिए इस लड़की को आपको नहीं देखना चाहिए. अगर कोई इस कन्या के साथ विवाह करे तो उसे इस कन्या को देकर इस नगर से बाहर भेजवा दीजिये. ऐसा करने से आपके दोनों लोक सुधरेंगे. ”

ब्राम्हणों की बात सुनकर राजा ने डंके की चोट से पुरे राज्य में मुनादी करवा दी कि– ” लोगो ! इस त्रिस्तनी कन्या के साथ जो कोई भी विवाह करेगा. उसे एक लाख की स्वर्ण मुद्राएँ मिलेगा और उसे इस नगर को छोड़ना पड़ेगा. ”

मुनादी किये हुए बहुत दिन बीत गए. मगर एक भी उस कन्या को लेने कोई तैयार नहीं हुआ. उसे एक गुप्त कक्ष में ही रखकर जवान होने तक पलती रही और बड़ी हो गई.

उसी नगर में कोई अंधा व्यक्ति रहता था. उसका मंथरक नाम का एक कुबड़ा उसके आगे लकड़ी पकड़ने वाला था. उन दोनों ने डुग्गी सुनकर आपस में विचार किया की. ” भाग्यवश कन्या मिलती हो तो डुग्गी रोकनी चाहिए. जिससे सोना मिले और उसके मिलने से हमारी जिन्दगी सुख से कट सके. उस कन्या के दोष से कहीं मैं मर गया तो भी दरिद्रता से पैदा हुई उस तकलीफ़ से तो छुटकारा मिल जाएगा.

यह कहकर उस अंधे ने मुनादी करने वाले को रोक दिया और कहा–” मैं उस राजकन्या से विवाह करूंगा. यदि राजा मुझे उसे देगा. ”

यह बात राजा तक पहुंचाई गई.

राजा ने अपने सैनिकों को कहा–” अंधा. बहरा. कोढ़ी और अन्त्यज जो कोई भी विदेश जाने को तैयार हो, एक लाख स्वर्ण मुहरों के साथ इस कन्या को ग्रहण कर सकता है. ”

राजा की आज्ञा से उस त्रिस्तनी कन्या को एक नदी के किनारे ले जाकर एक लाख स्वर्ण मुद्रों के साथ उसे अंधे को देकर एक नाव में बैठाकर कुबड़े के साथ तीनों को विदेश भेज दिया. ”

अब वह तीनों अपने नगर से दूर जाकर मिली हुई स्वर्ण मुद्राओं से एक महल खरीद कर अन्यत्र जगह पर सुख से रहने लगे.

अंधा केवल पलंग पर पड़ा रहता था. और घर का सारा काम कुबड़ा करता था.

कुछ समय बीतने पर त्रिस्तनी का कुबड़े के साथ सम्बंध हो गया.

तभी एक दिन त्रिस्तनी ने कुबड़े से कहा–” हे पुरुष ! यदि यह अंधा किसी तरह मार दिया जाय तो हम दोनों का समय सुखमय से कट सके. इसलिए कहीं से ज़हर की खोज कर. जिससे देकर मैं सुखी हो जाऊं. ”

उस कुबड़े को घूमते-घूमते एक मरा सांप दिखलाई दिया. उसे देखकर ख़ुशी-ख़ुशी घर लाकर वह त्रिस्तनी से कहने लगा–” प्रिये ! यह काला सांप मिला है. इसकी टुकड़े-टुकड़े कर सोंठ इत्यादि मशाले मिलाकर और पकाकर मछली का मांस कहकर उस अंधे को दे देना. ”

यह कहकर कुबड़ा किसी काम के लिए बाहर चला गया.

घर के काम में व्यस्त उसने भी आग जलाकर काले सांप की टुकड़े को उसे मठ्ठे में मिलाया और अंधे से विनयपूर्वक कहा–” हे स्वामी ! आपका मनचाहा मछली का मांस. जिसे आप हमेशा मांगते रहते हैं. मैं लाई हूं. आप कड़छल से उसे चला दीजिये. ”

यह सुनकर वह भी ख़ुशी-ख़ुशी मुंह चाटता हुआ जल्दी से उठकर कड़छल से उसे चलाने लगा. मछली समझकर सांप के मांस को चलाते हुए उसकी विषैली भाप से उसके आंख के माड़े गल गए. इससे बहुत फायदा मानकर वह अंधा अपनी आंखो पर बराबर उसका भाप लेता रहा.

कुछ समय में नज़र लौट आने पर उसे वहां केवल सांप के टुकड़े ही दीख पड़े. फिर उसने सोचा–” अरे ! यह क्या बात है ? उसने तो मुझसे मछली का मांस कहा था. पर यह तो सांप के टुकड़े हैं. इसलिए मैं त्रिस्तनी का चाल-चलन दरयाफ्त करूं जिससे यह पता लगे कि मुझे मारने की साजिश उस कुबड़े की है या किसी और की. ”

यह सोचकर और अपना भाव छिपाकर वह पहले से ही अंधे की तरह काम करने लगा.

उसी समय कुबड़ा आकर बेधड़क उस त्रिस्तनी से लिपट कर आलिंगन करने लगा. जब अंधे ने यह देखा तो उसे कोई हथियार मारने के लिए नहीं मिला. और क्रोध से व्याकुल होकर उसने पहले की तरह आग के पास जाकर कुबड़े के पैर पकड़कर अपने सर पर जोरों से घुमाते हुए त्रिस्तनी की छाती पर पटक दिया.

जिससे कुबड़े के गिरने से स्त्री का तीसरा स्तन छाती में घुस गया और जोर से घुमाए जाने से कुबड़ा भी सीधा हो गया.

इसलिए मैं कहता हूं कि– ” अंधा, कुबड़ा तथा त्रिस्तनी राजकन्या इन तीनों के काम भाग्य के अनुकूल होने से अन्याय से सिद्ध हुए.

अर्थात भाग्य अगर अनुकूल हो तो सब काम बनता है . ”  

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