stri ka vishwas : स्त्री का विश्वास – पंचतंत्र की कहानियां

stri ka vishwas: किसी नगर में एक ब्राम्हण रहता था. उसे अपनी पत्नी प्राणों से भी प्यारी थी. किन्तु उस ब्राम्हणी का व्यवहार ब्राम्हण के परिवार वालों के साथ बनती नहीं थी. दिन-रात लड़ाई-झगड़ा होती रहती थी.

उसके यही लड़ाई से परेशान होकर ब्राम्हण अपनी पत्नी के प्रेमवश अपने परिवार को छोड़कर किसी दुसरे नगर में जाकर रहने का निश्चय किया.

और अगले ही दिन सुबह होने से पहले अपने परिवार को छोड़कर अपनी पत्नी के साथ उस नगर को छोड़कर चला गया. जाते हुए बीच में जंगल का रास्ता पड़ा. यात्रा लम्बी तय करनी थी.

तभी ब्राम्हणी अपने ब्राम्हण से कहने लगी–” हे स्वामी ! प्यास से गला सुखा जा रहा है. अतएव आप कहीं से पानी लेकर आईये. ”

अब ब्राम्हण उस जंगल में पानी की तालाश करते-करते बहुत दूर चला गया और आने में भी बहुत देर हो गई. जब पानी लेकर अपनी ब्राम्हणी के पास आया तो उसने देखा की ब्राम्हणी मरी हुई थी.

वह ब्राम्हण प्रेमभावना से विहीन शोक करता हुआ रो रहा था और भगवान से प्राथना कर रहा था कि.

अचानक आकाश से उसे यह बात सुनाई दी–” हे ब्राम्हण ! अगर तुम अपनी पत्नी को जीवित देखना चाहते हो तो अपने प्राणों का आधा हिस्सा उसे देना होगा. ब्राम्हण दुःख विलाप करते हुए अपने प्राणों का आधा हिस्सा देने के लिए अपनी वाणीं से तीन बार जैसे ही कहा. उसकी पत्नी जीवित हो उठी. और वे दोनों नगर की ओर चले गए.

इस तरह घूमते-फिरते नगर के निकट आने पर वहां एक बगीचा था वहीं पर रूककर.

ब्राम्हण अपनी पत्नी से कहा–हे प्रिये ! तुम यही रुकना मैं पास के गांव से कुछ खाने का ले आता हूं.

यह कहकर वह गांव की ओर चला गया. वहीं बगीचे के पास एक कुंवा था. उस कुंवे में रहट घुमाते हुए एक लंगड़े को ब्राम्हणी ने देखा. वह लंगड़ा जरुर था. मगर सुन्दर हष्ट पुष्ट था. जिससे मोहित होकर ब्राम्हणी मुस्कुराते हुए उससे बात करने लगी वह लंगडा भी उसके बातों पर मोहित होकर उससे बातें करने लगा और वे दोनों एक-दुसरे से प्रेम करने लगे. और साथ-साथ जीने मरने का प्रण भी कर लिया.

कुछ समय पश्चात ब्राम्हण खाना ले कर आ गया. उसने ब्राम्हणी को दिया और खुद भी खाने लगा. ब्राम्हणी कहती कि. यह लंगड़ा बहुत भूखा लगता है. इसलिए इसके लिए भी कुछ दे दो. वह ब्राम्हण दया भावना से उस लंगड़े को भी थोड़ा सा भोजन दिया.

भोजन करने के बाद ब्राम्हण ने कहा–” चलो प्रिये ! अब चलते हैं. रास्ता बहुत लम्बा है हमें शीघ्र ही निकलना होगा. ”

इस बात पर ब्राम्हणी कहती है-” हे स्वामी ! अगर आपको बुरा नहीं लगे तो. इस लंगड़े को भी साथ ले चलते हैं. आप जब भी मेरे पास नहीं रहते हैं. तो बात करने को कोई नहीं होता. यह लंगड़ा होगा तो कुछ न कुछ बातें करके समय बिता लूंगी. ”

ब्राम्हण–” हम अपने ही बोझ संभाल नहीं पा रहे हैं तो इस लंगड़े को कैसे ले जाए ? ”

ब्राम्हणी –” इसे इस पिटारे में भरकर कर ले जायेंगे. ”

ब्राम्हण अपनी पत्नी की बात टाल न सका और कहा–“ठीक है ! जैसी तुम्हारी मर्जी. ”

यह कहने के बाद नगर की ओर चल पड़े. मौका मिलते ही बीच रास्ते में उस ब्राम्हण को ब्राम्हणी ने एक कुंवे में धक्का दे दिया. वह समझी कि की अब तो ब्राम्हण मर ही गया होगा.

अब ब्राम्हणी उस पिटारी को पकड़कर नगर की ओर चली गई. जैसे ही नगर के निकट पहुंची. नगर के सैनकों ने उस ब्राम्हणी को देखकर उसका पिटारा उसके हाथ से छिनकर खोला. उसमें से वह लंगड़ा व्यक्ति निकला. उसे राजदरबार ले जाकर राजा को यह बात बताई.

राजा ने पूछा–हे स्त्री ! यह लंगड़ा व्यक्ति कौन हैं ? जो तुम इसे एक पिटारे में बंद करके रखी थी. ”

ब्राम्हणी–” हे महराज ! ये मेरे बिमार पति हैं. जिससे अपने ही परिवार वाले छोड़ दिए हैं. इसलिए मैं इन्हें इस पिटारे में भरकर इधर-उधर भटक रही हूं. ”

राजा ने कहा –” ठीक है. सैनिकों इस अबला नारी को एक गांव देकर रहने की व्यवस्था कर दो. ताकि अपनी जीवन अपने पति के साथ सुख से भोग सकें. ”

ठीक उसी समय भाग्यवश किसी के हांथो से बचकर ब्राम्हण उस राज दरबार में पहुंच गया.

वह दुष्ट स्त्री उसे देखकर चौंक गई, और राजा से कहने लगी–” हे महराज ! यह मेरा पति का दुश्मन है. इसलिए इसे आप इस राज्य से निकाल दीजिये. अन्यथा मृत्यु दंड दे दीजिये. ”

राजा ने वैसा ही किया–” मंत्रियों ! इस दुष्ट को मृत्यु दंड दी जाए. ”

इस पर ब्राम्हण भरी राज दरबार में फ़रियाद किया और कहा–” हे महराज ! आप सच्चे न्याय करता हैं. तो इस स्त्री से मेरा दिया हुआ एक चीज लौटाने को कहें. उसके बाद आप जो चाहे वो दंड दे सकते हैं. ”

राजा–” हे स्त्री ! तुमने जो इससे लिया है उसे लौटा दो. ”

ब्राम्हणी–नहीं महराज ! मैंने कुछ भी नहीं लिया है. ”

ब्राम्हण–हे महराज ! अगर मैं याद दिलाऊं की इस स्त्री को मैंने अपने प्राणों का आधा हिस्सा दिया है. वहीं मुझे लौटा दे. ”

ब्राम्हणी भी उस ब्राम्हण से छुटकारा पाने के लिए तीन बार कह दी कि ठीक है. तुमारा प्राण लौटाती हूं.

यह कहते ही ब्राम्हणी तुरंत मर गई.

यह देख राजा और सभी मंत्री-गण आश्चर्यचकित रह गए.

बाद में ब्राम्हण ने सारी बात राजा को बताई.

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