shekh chilli ki kahani : तेल का गिलास – शेख चिल्ली की कहानियां

shekh chilli ki kahani: एक समय जब शेख अपने घर के छत पर पतंगेबाजी कर रहा था. और आसमान में रंग बिरंगे पतंगों के उड़ने का मजा ले रहा था. शेख की कल्पना भी उड़ान भरने लगी थी.

वह सोचने लगा कि–” काश मैं इतना छोटा होता कि पतंग पर बैठ कर हवा में शैर कर पाता. ”

इतना सोच ही रहा था कि अचानक उसकी अम्मी ने उसे अवाज लगाया–” बेटा शेख ! कहां हो तुम ? ” यह कहते हुए शेख की माँ कड़ी धुप में अपने हाथों से आँखों को बचाते हुए छत की ओर देखती हुई कही. ”

शेख ने कहा–” अम्मी ! बस अभी आया. ”

शेख बहुत दुखी होते हुए अपनी आसमान में उड़ती हुई पतंग को जमींन पर उतारा और फिर दौड़ता हुआ नीचे अपनी अम्मी के पास गया. शेख अपनी माँ का एकलौता औलाद था. पति के मरने के बाद शेख ही उसका एकमात्र सहारा था. इसलिए अम्मी शेख को बहुत प्यार करती थी.

अम्मी ने कहा–” बेटा शेख ! झट से इसमें आठ आने का तेल ले आओ. ” और अठन्नी के साथ-साथ शेख को एक गिलास भी दिया और कहा–” बेटा ज़रा सावधानी से लाना और जल्दी से वापिस आ जाना. रास्ते में कहीं सपने देखने नहीं लग जाना ,क्या तुम मेरी बात को सुन रहे हो ? ”

शेख ने कहा–” हां अम्मी ! आप बिलकुल भी चिंता न करें. जब आप मेरी फ़िक्र करती हैं तब आप कम सुन्दर लगती हैं. ”

उसकी माँ ने उदास मन से कहा–” बेटा ! मेरे पास सुंदर लगने के लिए पैसे और वक्त ही कहां हैं ? अच्छा , अब चापलूसी बंद करो. और फटाफट बाज़ार से तेल लेकर आओ. ”

अम्मी की बात मानकर शेख दौड़ता हुआ बाज़ार की ओर चला गया. वैसे शेख किसी भी काम को काफी आराम से करता है. मगर अम्मी की आज्ञा से वह दौड़ते हुए बाज़ार गया.

बाज़ार पहुचने के बाद शेख दुकानदार से कहता है–” सेठ ! आठ आने का सरसों का तेल चाहिए. ”

यह कहकर शेख दुकानदार को गिलास और पैसे को दिया. दुकानदार ने एक बड़े से पीपे में से आठ आने का सरसों का तेल नापा और फिर उसे गिलास में डालने लगा. गिलास पूरा भर गया.

सेठ ने कहा–” बेटा ! इस गिलास में तो सिर्फ सात आने का ही तेल आएगा. मैं बांकी का क्या करूँ ? क्या तुम्हारे पास कोई दूसरा बर्तन है ? जिससे बांकी तेल को उसमें डाल सकूँ. या फिर मैं तुम्हें एक आना वापिस लौटा दूँ. ”

शेख दुविधा में पड़ गया उसकी अम्मी ने उसे न तो दूसरा कोई बर्तन दिया था और न ही पैसे वापिस लाने को कहा था. वो अब करे तो करे क्या ?

तभी उसे एक तरकीब समझ आई. गिलास के नीचे की तरफ एक छोटा गड्डा था छोटी सी कटोरी की तरह. जिसमें बांकी तेल आसानी से समां जाए. उसने ख़ुशी-ख़ुशी तेल से भरे गिलास को उल्टा कर दिया. जिससे सारा तेल नीचे बह गया और फिर गिलास के नीचे कटोरी की ओर इशारा किया और कहा–” बांकी तेल यहां डाल दो. ”

सेठजी शेख की बेवकूफी पर यकीन नहीं हुआ. उन्होंने सर हिलाते हुए शेख की आज्ञा का पालन किया. शेख गिलास को सावधानीपूर्वक उठाया और फिर अपने घर की ओर चला गया.

इस घटना पर लोगों ने शेख के उपर बहुत उपहास वाली बातें कहीं. और जब वो तेल को लेकर घर पहुंचा तब उसकी माँ कपड़े धो रही थी.

उसकी अम्मी ने गिलास के नीचे कटोरी में तेल को देखकर पूछा–” बांकी तेल कहां है ? ”

शेख ने गिलास को सीधा करने की कोशिश की ओर ऐसा करने के दौरान बचा-खुचा तेल भी बहा दिया.

और कहा–” अम्मी ! बांकी तेल यहां था , मैं सच कह रहा हूँ. मैंने सेठ जी को इसमें तेल डालते हुए देखा था. पता नहीं वह कहां चला गया ? ”

उसकी माँ ने गुस्से में कहा–” जमीन के अंदर ! तुम्हारी बेवकूफी के साथ-साथ , क्या तुम्हारी बेवकूफी का कोई अंत भी है ? ”

शेख ने खुद को बहुत अपमानित महसूस किया और कहा–” अम्मी जान ! मैंने बिलकुल वही किया जो आपने मुझसे कहा था. ” आपने मुझसे इस गिलास में आठ आने का तेल लाने को कहा था . और मैंने वही किया.

गिलास छोटा होने पर मुझे क्या करना है , यह आपने मुझे नहीं बताया था और अब आप मुझ पर नाराज़ हो रही हैं. आप गुस्सा न करें अम्मी. जब आप गुस्सा करती हैं तब आप…..”

अम्मी ने कहा–” अगर तुम यहां से तुरंत गए नहीं हुए तो तुम्हारें चेहरे को खुबसूरत बना दूंगी. ”

यह कहते हुए अम्मी ने पास में पड़ी एक झाडू को उठाते हुए कहा–” मेरी सहनशक्ति की भी एक सीमा है , जबकि तुम्हारी बेवकूफी असीमित है. ”

यह सुनकर शेख अपनी पतंग को लेकर छत पर गया. माँ दुखी होकर दुबारा कपड़े धोने लगी. उन्हें तेल लाने के लिए खुद सेठ जी के दूकान पर जाना पड़ेगा.

शेख ने बहुमूल्य समय के साथ-साथ बेशकीमती पैसों को भी गवां दिया. उसके बावजूद उनका मानना था कि उनका बेटा बहुत ही समझदार , आज्ञाकारी और प्यारा बेटा है.

तभी सेठजी का छोटा लड़का तेल की बोतल लिए बाहर से दरवाजे को खटखटाया और कहा–” बुआजी ! यह आपके लिए हैं , मेरे पिताजी ने इसे भेजा है. जब शेख भैया ने तेल से भरे गिलास को उल्टा किया तो किस्मत से सारा तेल वापिस पीपे में जा गिरा. ”

और कहा–” बुआजी ! भैया कहां है ? उन्होंने ने मुझे पतंग उड़ाना सिखाने का वादा किया था. ”

वो ऊपर है ! बेटा तुम छत पर चले जाओ ,”

शेख की माँ ने तेल लेते हुए और उस छोटे से लड़के के गालों को थपथपाते हुए कहा.

फिर वो मुस्कुराती हुई दुबारा अपने काम में जूट गई.

यह भी पढ़ें

Leave a Comment