shekh chilli ki kahani : काज़ी की परेशान पत्नी ने रात को उनसे पूछा — ” तुमने इस आदमी को नौकरी से क्यों नहीं निकाला ? ”
काज़ी साहब ने जवाब दिया — ” मैं अपना कान कुतरवाऊं और इस हरामखोर को एक साल की पगार भी दूंगा और साथ में पूरे शहर का मज़ाक भी बनूं . मैं ऐसा कभी नहीं करूंगा. ”
बिवि ने गुस्से में कहा — ” तब तुम एक काम करो , एक और नौकर ढूँढ़ो और इस बेशकीमती शेख चिल्ली को तुम सिर्फ अपने काम के लिए रखो. ”
काज़ी ने कहा — ” बहुत अच्छा ! तुम शेख चिल्ली को अब से कम-से-कम खाना देना. बस इतना खाना देना कि वो मरे नहीं. मैं उसे रोज़ाना अपने साथ कचहरी ले जाया करूंगा. देखते हैं कि वो बिना काम और भोजन के कितने दिन जिंदा रह पाता है. ”
परंतु काज़ी को जल्दी ही अपनी गलती का अहसास हो गया. शेख कचहरी के बाहर बैठे-बैठे , दिन में सपने देखता या फिर और लोगों से गप्पे लगाने में काफी खुश था. जब लोगों को यह पता चला कि उसे इतना कम खाना मिलता है तो लोगों ने खुद उसे अपना भोजन देना शुरू कर दिया.
एक दिन काज़ी की पत्नी ने नए नौकर के हाथ कचहरी में काज़ी के लिए संदेश भेजा. उन्हें आटा खरीदने के लिए तुरंत कुछ पैसों की ज़रूरत थी. दरबान ने नौकर को कचहरी के अंदर घुसने नहीं दिया.
यह देख शेख ने कहा — ” मैं तुम्हारी मदद करूंगा. और वो कचहरी के दरवाजे पर खड़ा होकर चिल्लाया , सरकार ! घर में न तो पैसे हैं और न ही आटा ! आप जल्दी कुछ करें. ”
काज़ी को यह सुनकर बहुत शर्म आई और गुस्से से कहा — ” अरे बेवकूफ ! ”
उन्होंने बाद में शेख को डांटा. खबरदार जो आज तुमने दुबारा कचहरी में इस तरह का अडंगा डाला ”
इसके कुछ दिनों के बाद काज़ी के घर में आग लग गई. बेगम का नया नौकर दौड़ता हुआ कचहरी में काज़ी को इसकी सूचना देने के लिए आया.
शेख ने उसे कहा — ” तुम घर जाकर मदद करो , मैं काज़ी साहब को इसके बारे में बता दूंगा. ”
क्योंकि शेख को कचहरी के समय काज़ी साहब के काम में अड़ंगा डालने के लिए सख्ती से मना किया गया था. इसलिए वो शाम तक धैर्य से इंतज़ार करता रहा. तब तक काज़ी का आधे से ज्यादा घर जलकर राख हो चूका था.
काज़ी की पत्नी एक रईस व्यवसायिक परिवार की थी. काज़ी ने घर को दुबारा बनाने के लिए कर्ज की मांग के लिए अपनी ससुराल जाने की ठानी. उन्होंने शैतानी से दूर रखने के लिए शेख चिल्ली को भी घोड़े पर अपने साथ ले लिया. काज़ी की ससुराल कोई पचास मील दूर होगी. बीच में काज़ी को दस्त लगे और उन्हें शौच के लिए जंगल में जाना पड़ा. तभी सड़क पर से एक काफिला गुजरा. वो शेख चिल्ली को ही घोड़े का असली मालिक समझ बैठे.
उन्होंने उससे कहा — ” हम तुम्हें इस घोड़े के लिए २०० रूपये देंगे , क्या तुम इतने में उसे बेचोगे ? ”
शेख ने कहा — ” हां ” उसने पैसों को रखा और घोड़े की थोड़ी सी पूंछ काटी और फिर ज़मीन में एक गढ्ढा करके उसने पूंछ के बालों को उसमें गाढ़ दिया.
वो काज़ी को आते देखकर जोर से चिल्लाया — ” सरकार ज़रा जल्दी कीजिये ! अभी-अभी घोड़े को खींचकर इस चूहे के बिल में ले जाया गया है. अगर आप मेरी मदद करेंगे तो हम उसे खींचकर बाहर निकाल देंगे. ”
काज़ी को कुछ समझ नहीं आया फिर भी वो शेख को पकड़े रहे. और शेख ज़मीन में गाढ़ी घोड़े की पूंछ को खींचता रहा. अंत में पूंछ बाहर निकल आई परंतु शेख और काज़ी दोनों धड़ाम से ज़मीन पर जाकर गिरे.
शेख ने दुखी अंदाज़ में कहा — ” चूहे हमसे ताकतवर निकले ! घोड़ा सीधा ज़मीन के अंदर चला गया है. अब हमें उसे बाहर निकालने के लिए फावड़े के साथ खुदाई करने वाले ताकतवर लोग चाहिए होंगे. ”
काज़ी साहब गुस्से में चिल्लाए — ” तुम यह क्या बकवास बक रहे हो , भला एक घोड़ा किसी चूहे के बिल में कैसे घुस सकता है ? नमकहराम जल्दी से बताओ कि तुमने मेरे घोड़े का क्या किया है ? घोड़ा कहीं खो गया है या तुमने उसे बेच डाला है ? अब हम आगे का सफ़र कैसे करेंगे ? पैदल ? ”
शेख ने कहा — ” सरकार ! पास ही में एक गांव है जहां आपको एक नया घोड़ा मिल सकता है , एक घोड़े के गम जाने से आप जैसे रईस आदमी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा. ”
बड़बड़ाते हुए काज़ी ने अगले गांव से एक और घोड़ा खरीदा और उसे एक पल पल के लिए भी अपनी आंखों से ओझल नहीं होने दिया. उन्होंने खुद तो घोड़े पर बैठकर यात्रा की और शेख को पहला घोड़ा खोने की सज़ा में पैदल दौड़ाया, रात को वे एक समय में रूके.
काज़ी ने वहां खाना खाया और उसके बाद शेख की ओर कुछ सुखी रोटी फेंकते हुए कहा — ” तुम रात भर उस घोड़े के साथ ही रहना. तुम उसकी मालिश करते रहना और खबरदार जो तुमने उसे अपनी आंखो के सामने से ओझल होने दिया. क्या तुम मेरी बात समझे ? ”
शेख ने अपनी जंभाई को छिपाते हुए बड़े ही भीरु भाव में कहा — ” जी सरकार. ”
दिन भर चलने की थकान के बाद वो घोड़े के पास ही बैठ गया और धीरे-धीरे उसकी मालिश करने लगा. शेख को कब नींद आई और कब कोई घोड़े को चुरकार ले गया इसका उसे पता ही नहीं चला. वो जब सुबह उठा तो उसने घोड़े को नदारद पाया. शेख ने उसे चारों और ढूँढ़ा. अगर उसने घोड़े को जल्दी नहीं खोजा तो काज़ी उसकी चमड़ी उधेड़ कर रख देगा. फिर उसे घास के ढेर में जिसे घोड़ा खा रहा था दो लंबे कान नज़र आए.
शेख ने कानो को पकड़ते हुए कहा — ” वाह ! तो तुम यहां छिपे हुए थे , वो कान एक खरगोश के थे. शेख जब उन्हें निहार रहा था तभी काज़ी भी वहां पहुंचे.
काज़ी ने कड़कदार आवाज में पूछा — ” घोड़ा कहां है ? “शेख ने झट से उत्तर दिया — ” यह रहा सरकार. ”
अबे गधे , यह तो खरगोश है , घोड़ा नहीं. ”
सरकार यह सच में घोड़ा है. मैंने घोड़े को इतनी कसकर मालिश की कि वो छोटा होकर खरगोश बन गया. मैंने उसके कानों की मालिश नहीं की . आप देखिये , वे अभी भी घोड़े के नाप के हैं. ”
काज़ी ने कहा — ” तुम दुनिया के सबसे बड़े बेवकूफ हो. ”
यह कहते हुए काज़ी की आवाज गुस्से से लड़खड़ाने लगी. ” और मैं दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बेवकूफ हूं कि मैंने तुम्हें नौकरी पर रखा. चलो अब तैयार हो क्योंकि अब चलने का वक्त हो गया है. ”
वो बाकी रास्ते पैदल ही चलकर गए. ससुराल पहुंचने के बाद उनका काफी आदर-सत्कार हुआ. काज़ी की सास शेख को अलग ले गयी. ”
उन्होंने कहा — ” तुम्हारे मालिक की तबियत कुछ ठीक नहीं लगती है. मुझे लगता है कि लंबे सफ़र के कारण उन्हें कुछ थकान हो गई है. ”
शेख ने कहा — ” उनका पेट ख़राब है ” बूढ़ी औरत ने कहा — ” फिर मैं उनके लिए कुछ खिचड़ी बना देती हूँ ” शेख ने कहा — ” पर आप उसे खूब चटपटा बनाएं. उन्हें चटपटा खाना बहुत पसंद हैं. ”
रात को भोजन के समय शेख चिल्ली को सबसे स्वादिष्ट बिरयानी , मटन-करी , सब्जियां और खीर परोसी गई. और काज़ी को केवल एक कटोरा भर मसालेदार खिचड़ी ही खाने को मिली. काज़ी को इतनी भूख लगी थी कि वो सब खिचड़ी खा गए. रात को उनके पेट में दर्द हुआ और उन्हें तुरंत शौच के लिए जाना पड़ा.
उन्होंने ने शेख से कहा — ” मुझे बाहर जाना है ! तुम भी मेरे साथ चलो. ”
शेख ने कहा — ” सरकार ! वहां कोने में एक मिटटी का मटका रखा है. आप उसका प्रयोग क्यों नहीं करते ? सुबह उसे खाली कर देंगे. ”
काज़ी को रात में कई बार शौच जाना पड़ा. सुबह तक वो मटका आधा भर चूका था. उन्होंने शेख को आदेश दिया — ” इसे बाहर फेंक कर आओ . ”
शेख ने कहा — ” मैं यह काम नहीं करूँगा ! मैं मेहतर नहीं हूं. ”
काज़ी को कुछ समझ में नहीं आया. गुस्से में आकर उन्होंने मटका उठाया और उसे जंगल में फेंकने चल पड़े. उनका साला उनके पीछे-पीछे दौड़ता हुआ आया. उसे आते हुए देख काज़ी ने शर्म के मारे अपनी रफ़्तार बढ़ा दी. परंतु उनका साला तेजी से दौड़कर उनके पास पहुंच गया.
और कहा — ” भाईजान ! आप अपने सर पर यह बोझ लाद कर कहां जा रहे हैं ? लाईये , मैं आपकी मदद करता हूं. ”
काज़ी ने विरोध किया — ” नहीं ! नहीं ! नहीं ठीक है. ” और काज़ी ने मटके को कसकर पकड़ने की कोशिश की. परंतु मटका उसके हाथों से फिसल कर उन दोनों के बीच में जाकर गिरा जिससे दोनों लोग गंदगी से पूरी तरह सन गए. शेख इस पुरे नज़ारे को खिड़की में से देख रहा था.
शेख काज़ी की ओर दौड़ता हुआ चिल्लाया — ” सरकार ! कहीं आपको चोट तो नहीं आई ? ”
काज़ी ने विनम्र भाव से अपने दोनों हाथ जोड़े. और कहा — ” मैं तुमसे विनती करता हूं शेख चिल्ली , तुम मुझे अकेला छोड़ दो ! ” मैंने तुम्हें बहुत झेला है और बर्दाश्त किया है. तुम जीते और मैं हारा. मैं तुम्हें फ़ौरन नौकरी से निकालता हूं. तुम पूरे साल की पगार ले लो और मेरे दोनों कान भी कुतर लो. परंतु मेरी निगाह के सामने से सदा के लिए चले जाओ. ”
शेख ने कहा — ” आप अपने कान अपने पास ही रखें ! हां , यह रहे वो दो सौ रूपये जो मुझे आपका पहला घोड़ा बेचकर मिला था. मुझे अफ़सोस है कि दूसरा घोड़ा खरगोश में बदल गया. उस रात आपने घोड़े की मालिश करने के लिए कह कर भारी गलती की. ”
एक साल की पूरी पगार जेब में रखे शेख चिल्ली बड़ी जीत हासिल करके शान से घर लौटा .
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