shekh chilli ki kahani: एक दिन शेख चिल्ली की माँ ने शाम के वक्त खाना परोसते हुए शेख से कहा — ” बेटा शेख ! अब तुम कोई काम धंधा ढूंढ लो , क्योंकि तुम अब बड़े हो गए हो. जल्द ही तुम्हारे लिए एक पत्नी की तलाश करनी होगी.
परन्तु जो आदमी कुछ कमाता ही न हो उसे भला कौन अपनी लड़की देगा ? अब जाकर कोई अच्छी , पक्की नौकरी ढूँढो. अब मैं बूढी हो रही हूं. कब तक अकेले दोनों के लिए कमी करती रहूंगी ? ”
शेख ने प्यार से कहा — ” ज्यादा देर तक नहीं अम्मी ! बस तुम थोड़ा सा और इंतजार करो | कल शाम तक मेरी नौकरी लग गई होगी. ”
अम्मी ने काफी भावुकता से कहा — ” बेटा ! ऐसा ही हो ! ” कहना तो आसान था परन्तु नौकरी मिलना एक कठिन काम था. वो किसके पास जाए इस बारे में शेख सोचने लगा.
गांव में कई लोगों ने उसे पहले नौकरी पर रखा था. परन्तु कोई भी नौकरी कुछ हफ़्तों से अधिक टिकता नहीं था.
अगली सुबह उसने लाला तेलीराम से पूछने का निश्चय किया कि उन्हें एक और नौकर चाहिए ? पहले एक बार लालाजी के काम पर जाते समय शेख चिल्ली एक नमक का बोरा लेकर किसी तालाब में जा गिरा था.
पर शेख यह उम्मीद लगाए बैठा थ कि शायद लालाजी उस बात को अब तक भूल गए होंगे. आखिर वो सारा नमक कहां गया ?
शेख इस सोच में इतना गहरा डूबा था कि वो सामने से आते दो भाइयों से टकरा गया. जिन कुछ सालों के लिए शेख गांव के स्कुल में पढ़ा था उस समय यह दोनों भाई उसकी ही कक्षा में थे.
तभी बड़े भाई ने पूछा — ” मियां ! आप फिर दिन में सपने देख रहे हैं ? तभी तो मौलवी साहब ने स्कूल से निकाल दिया था. ”
शेख ने कहा — ” अम्मी का कहना है कि अगर मेरी नौकरी नहीं लगेगी तो कोई मुझसे शादी नहीं करेगा. ”
यह सुनकर दोनों भाई हसने लगे. उनका कहना बिलकुल ठीक है.
एक ने कहा– “और हम अभी तुम्हें एक नौकरी सुझा सकते हैं , परन्तु काम इतना आसान न होगा. तुम्हें एक बेहद कंजूस काजी के लिए काम करना होगा. वो तुम्हें महीने के बीस रूपये पगार देगा. साथ में मुफ़्त खाना और रहने का स्थान भी मिलेगा. परन्तु फिर वो तुम्हारी जान हराम कर डालेगा और तुम झक मारकर नौकरी छोड़ने को मजबूर हो जाओगे.
जब तुम नौकरी छोड़ोगे तो तुम्हें उस महीने का पगार नहीं मिलेगी और साथ में काजी तुम्हारे कान का थोड़ा सा टुकड़ा भी कुतर लेगा. हमारे साथ-साथ उस काजी ने और बहुत से लोगों के भी कान कुतरे हैं. उसका आखिरी नौकर अभी दो दिन पहले ही , रोता हुआ वापिस आया था. ”
शेख ने पूछा — ” अगर नौकर ने नौकरी छोड़ने की जगह काजी खुद नौकर को निकालता है तो ? ”
( दुसरे को ) उसे वो बहुत सारे मालिक का याद आया जिन्होंने उसे निकाला. ”
और सोचा — ” क्या फिर काज़ी खुद अपना कान कुतारवाने को राजी होगा ? ”
और फिर उसने शेख से कहा — ” ऐसा आज तक तो हुआ नहीं है और न ही इसके होने की गुंजाइश है. तुम थोड़े सावधान रहना शेख मियां. काज़ी साहब बहुत ही चालाक आदमी है. ”
शेख चिल्ली ने कहा — ” मुझे उनका पूरा नाम और पता दो ! मैंने अम्मी से वायदा किया है कि आज शाम तक मैं कोई नौकरी ढूँढ़ निकालूंगा. ”
शेख कई मील चलकर उस शहर में पहुंचा जहां काजी साहब रहते थे. काज़ी तभी कचहरी से वापिस लौट रहे थे. उसे देखकर शेख ने कहा — ” सलाम सरकार ! मैं आपके लिए काम करने आया हूँ. ”
काजी ने शेख के भले चेहरे को देखा , और मन ही मन सोचा चलो एक और बकरा फंसा. यह भी ज्यादा दिन तक नहीं टिकेगा.
और उन्होंने जोर से कहा — ” क्या तुम्हे नौकरी की शर्ते पता है क्या ? ”
शेख ने अपना सर हिलाते हुए कहा — ” जी सरकार ! बीस रूपये महीने का पगार और साथ में मुफ़्त खाना और सोने की जगह. ”
काजी ने कड़े शब्दों से कहा — ” इसके बदले में तुम्हे जो भी काम दिया जाएगा उसे तुम्हें करना होगा , मैं तुम्हें नौकरी से नहीं निकालूंगा. परन्तु अगर तुमने नौकरी छोड़ी तो तुम्हें उस महीने की पगार नहीं मिलेगी. साथ में मैं तुम्हारा थोड़ा सा कान भी कुतरूंगा जो तुम्हें सारी ज़िन्दगी तुम्हारे बेकार काम की याद की याद दिलाएगा. आई बात समझ में ? क्या तुम्हारे कोई सवाल है ? ”
शेख ने कहा — ” सिर्फ एक सरकार ! अगर आप मुझे नौकरी से निकालेंगे , तो…. ”
काजी ने उसकी बात को बीच में काटते हुए कहा — ” वो कभी नहीं आएगा. ”
लेकिन अगर ऐसा हुआ तो मैं आपसे एक साल की पगार लूंगा और साथ में आपके कान का थोडा सा टुकड़ा भी कुतरूंगा ! ”
यह बात सुनकर काजी का मुह लटक गया और मन ही मन सोचने लगा — ” किसी ने भी आज तक उनसे इस तरह की बात कहने की हिम्मत नहीं करि थी. यह लड़का सच में बिलकुल ही बेवकूफ होगा. ”
उन्होंने रुखाई से कहा — ” चलो ठीक है ! मुझे तुम्हारी शर्ते मंजूर है. अब अंदर जाओ. बेगम साहिबा तुम्हें काम के बारे में बता देंगी. ”
शेख को इस नौकरी में लगभग सभी काम करने थे — घर की झाडू और सफाई , कपडे धोना , बर्तन धोना , बाज़ार जाना और काजी के तीन साल के बेटे की देखभाल करना. शेख हर आदेश का मुस्कुराते हुए अपनी धीमी गति से पालन करता.
उसका नतीजा यह होता कि कभी , कोई भी काम पूरा नहीं होता था. जब काजी की पत्नी उसे बर्तन मांझने के लिए बुलाती तो वो अधूरे धुले कपड़े छोड़कर वहां चला जाता. वो बर्तन भी आधे छोड़ देता क्योंकि तब तक बाज़ार जाने का वक्त हो जाता.
काजी की पत्नी शिकायत के लहजे में कहती थी — ” इस बार तुमने कितने बड़े बेवकूफ को पकड़ा है , एक भी काम ऐसा नहीं है जो वो ठीक से करता हो. ”
काजी जवाब में कहते — ” शीख जाएगा ! या फिर वो काम छोड़ देगा. बस थोड़ा धैर्य रखो और उससे जी-तोड़ काम लो. ”
रात होने तक शेख थककर चूर-चूर हो जाता. एक रात जब शेख सपने में दूल्हा बना हुआ था तभी ने आकर उसे झकझोर कर जगाया.
काजी ने कहा — ” देखो , ज़रा बच्चे को पेशाब कराना है ! उसे बाहर ले जाकर घर के पीछे नाली के ऊपर बैठा दो. ”
शेख को अपने अपने सुहाने सपने में दखल डालने पर बड़ा गुस्सा आया. परन्तु वो उठा और काजी के बेटे को बाहर ले गया. बाहर अंधेरा था और तेज हवा चल रही थी. बच्चा शेख से कसकर चिपट गया.
शेख ने लड़के से पूछा — ” क्या तुमने कभी भूत देखा है ? ”
यह सुनकर लड़का शेख से और जोर से चिपट गया.
शेख ने उससे कहा — ” घबराओ मत ! मुझे नाली में कुछ तैरता नज़र आ रहा है. परन्तु वो भूत नहीं हो सकता. क्योंकि भूतों को तैरना आता नहीं. ”
यह सुनकर लड़का दहाड़े मार कर रोता हुआ वापिस घर में अपनी मां के पास भागा. शेख फिर से उस सपने का मज़ा लेने लगा जिसमें वो एक दिन दूल्हा बना था.
इस बीच में काजी के बेटे ने अपनी मां के बिस्तर को गीला ही कर दिया. बेगम तो आग-बबूला हो उठी.
उन्होंने अगले दिन सुबह के समय अपने पति से कहा — ” इस बेवकूफ से मेरा पिंड छुड़ाओ. ” यह आदमी तो बच्चे को रात को पेशाब कराने जैसे सरल काम भी नहीं कर सकता है. ”
काजी ने बड़ी गंभीरता से कहा — ” मैं उसे नौकरी से नहीं निकाल सकता , परन्तु मैं उसे एक ऐसा सबक सिखाऊंगा जिसे वो ज़िन्दगी भर नहीं भूलेगा. ”
उन्होंने शेख चिल्ली को और कहा — ” शहर के बाहर जंगल केर पास मेरी १० बीघा जमीन है . तुम अभी वहां पर जाओ. मेरे हल-बैल मेरे पड़ौसी के पास है. तुम जाकर उस १० बीघा जमीन को हल से जोतकर आओ. और हां जुताई अच्छी तरह से करना. जो कुछ तुमने किया है उसका मैं कल आकर मुआयना करूंगा. और घर वापिस आने से पहले तुम्हें यह दो काम और करने हैं. एक मोटा सा खरगोश पकड़ कर लाना. मुझे आज रात को खाने के लिए स्वादिष्ट गोष्ट चाहिए. हां , और आते समय अपने सर पर कुछ जलाऊ लकड़ी का गठ्ठा भी रखकर लाना मत भूलना. औए शाम को मेरे कचहरी से लौटकर आने से पहले ही घर वापिस आ जाना. अच्छा , अब तुम जाओ. ”
काजी के बेगम ने फर्माया — ” मैंने आज सुबह इस बेवकूफ को कुछ खाने-पीने को भी नहीं दिया है . ” इसे ज़रा भूखे पेट मेहनत-मशक्कत करने दो. ”
काजी ने एक कड़वी हंसी के साथ कहा — ” तुम आज रात को उसे कुछ हड्डियां चूसने को दे देना ! ” मुझे तो लगता है कि इतनी कड़ी मेहनत से वो पहले ही भाग लेगा और खाना देने की नौबत ही नहीं आएगी. ”
शेख चिल्ली की जेब में जो सिक्के थे उससे उसने चने ख़रीदे , पानी पिया और फिर वो काजी की ज़मीन की ओर चला. उसने हल-बैल से काजी के खेत को दोपहर होने तक जोता.
अचानक उसे बाकी दो और काम याद आये. और वो जलाऊ लकड़ी ढूँढने लगा. काटने लायक लकड़ी के सभी पेड़ या तो बहुत बड़े थे या फिर वे बहुत दूर थे. फिर उसकी नज़र हल के ऊपर पड़ी. उसने आश्चर्यचकित राम सिंह से कुल्हाड़ी मांगी और बैलों को रिहा करने के बाद हल के कुल्हाड़ी से टुकड़े-टुकड़े कर डाले.
अब काज़ी के रात के भोजन के लिए उसे सिर्फ एक खरगोश पकड़ना बाकी था. खरगोश की तो बात दूर की रही , शेख को खेतों में एक चूहा तक नहीं दिखा था. परंतु उसे सड़क पर एक मरा हुआ कुत्ता ज़रूर दिखा था. वो शाम को काज़ी के घर वापिस लौट. उसके सर पर हल के टुकड़ों का गठ्ठा था और वो एक मरे हुए कुत्ते की पूंछ खींच कर ला रहा था.
उसने मुस्कुराते हुए कहा — ” सरकार ! यह कुत्ता किसी भी खरगोश से बड़ा है. इससे आपके भोजन के लिए बढ़िया गोस्ट बनेगा. और मैं बहुत सारी जलाऊ लकड़ी लाया हूं , जिसके लिए हल की लकड़ी मेरे बहुत काम आई. ”
यह सुनकर काज़ी आग-बबूला हो गया था. और गुस्से से चिल्लाते हुए कहा — ” अरे बेवकूफ ! अभी मेरे सामने से दफा हो जाओ ! ”
” मैं तुमसे बाद में निबटूंगा … ”
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