shekh chilli ki kahani: कुछ दिनों से शेख के सपनों में बुरे-बुरे ख्याल आ रहा था . और अचानक रात को उठ जाता था.
तभी उसकी चिंतित माँ ने उससे एक सुबह पूछा –” बेटा शेख ! क्या तुमने दुबारा वही सपना देखा ? तुम पूरी रात बैचैन रहे और करवटें बदलते रहे. ”
शेख चिल्ली ने अपना सर हिलाया और फिर अपनी अम्मी के गोद में जा लिपटा. क्योंकि अम्मी ही उसका पूरा परिवार थी.
अम्मी ने कहा–” आज मैं तुम्हें हकिम के पास ले चलूंगी , इंशाअल्लाह वो तुम्हारे इन खराब सपनों का खात्मा कर देंगे. ”
हकिम ने बड़े धैर्य से शेख चिल्ली की कहानी को सुना. कई रातों से शेख चिल्ली को एक बुरा सपना सता रहा था जिसमें वो खुद चूहा होता था और गांव की सभी बिल्लियां उसका पीछा कर रही होती थी. जागने के बाद भी बड़ी मुश्किल से ही शेख चिल्ली अपने आपको यह समझा पाता था कि वो एक चूहा नहीं बल्कि एक इंसान हैं.
शेख की अम्मी ने हकीम से पूछा–” मेरे बच्चे को यह तकलीफ़ क्यों है ? कहीं वह बात तो नहीं जब शेख छोटा था तब एक जंगली बिल्ली ने मेरे बचाने से पहले , उसे जोर से नोचा था. ” क्या इसलिए वही सपने बार-बार देखता है ? ”
हकीम ने कहा–” शायद ! पर आप इसकी ज्यादा परवाह न करें. खराब सपनों की बिमारी जल्दी ही ठीक हो जायेगी. ”
बेटा शेख , आज से हर शाम को तुम मेरे पास दवा के लिए आ जाना. और यह मत भूलना कि तुम एक चूहा नहीं बल्कि एक खुबसूरत नौजवान हो. ”
यह सुनकर शेख का चेहरा मुस्कान से खिल उठा. हर शाम हकिम , बिना बाप के इस लड़के से कोई एक घंटा बातचीत करते थे. फिर उसे कोई अहानिकारक दवाई देकर घर भेज देते जिससे कि शेख को रात को अच्छी नींद आए. धीरे-धीरे शेख चिल्ली और हकीम एक अछे दोस्त बन गए. हकीम ने शेख को अच्छी सेहत और साफ़-सफाई के बारे में सरल बातें बतायी.
उन्होंने एक शाम को कहा–” बेटा शेख ! अगर मेरा एक कान गिर जाए तो क्या होगा ? ”
शेख ने हकीम के बड़े-बड़े कानों को घूरते हुए कहा–” हकीमजी ! तब आप आधे बहरे हो जायेंगे. ”
हकीमजी ने कहा–” ठीक फरमाया ! और अगर मेरा दूसरा कान भी गिर जाए तो ? ”
शेख ने कहा–” तो फिर आप अंधे हो जायेंगे. ”
घबराए हुए हकीमजी ने पूछा–” अंधा ? ”
शेख ने उत्तर दिया–” हां ! अगर आपके कान नहीं होंगे, तो फिर क्या आपका चश्मा नहीं गिरेगा ? ”
हकीमजी यह सुनकर ठाहाका मार कर हंसे. और कहा –” तुम ठीक कहते हो शेख बेटा ! इसके बारे में तो मैंने कभी सोचा ही नहीं था. ”
धीरे-धीरे शेख के खराब सपने बंद हो गए. कि वो एक चूहा है इस बात की सपने में उसने कल्पना करनी बंद कर दी.
एक दिन हकीम का एक पुराना दोस्त उनसे मिलने के लिए आया. शेख से बाज़ार से कुछ गर्म जलेबियां लाने के लिए कहा गया. वो बस निकल ही रहा था कि उसे कुछ फीट की दूरी पर एक बड़ी बिल्ली दिखाई दी.
शेख हकीमजी के पीछे छिपकर गिड़गिड़ाते हुए कहा–” हकीमजी ! मुझे बचाइए. ”
हकीम ने कहा–” मेरे बेटे ! अब तुम चूहा नहीं हो , क्या तुम्हें यह पता नहीं है ? ”
शेख–” मुझे अच्छी तरह से पता है हकीमजी. ”
पर शेख को अभी भी डर लग रहा था. पर क्या बिल्ली को यह बात किसी ने बताई है ? ”
अपनी मुस्कुराहट को दबाते हुए हकीम ने बिल्ली को भगा दिया. उसके बाद शेख को दिलासा दिलाने के बाद उन्होंने उसे जलेबियां लेने के लिए भेजा.
हकीमजी के मेहमान ने शेख चिल्ली के बारे में कुछ सुनने के बाद कहा–” मैं इस लड़के के पिता को अच्छी तरह से जानता था , मैं उसके घर जाकर उसकी मां से दुआ-सलाम करना चाहूंगा. ”
हकीमजी ने कहा– ” शेख आपको अपने घर ले जाएगा , कुछ करारी जलेबी खाने के बाद और कहवा पीने के बाद शेख और मेहमान . शेख के घर की ओर गए.
जाते समय मेहमान ने शेख से कहा– ” क्या यह सीधे तुम्हारे घर को जाती है ? ”
शेख ने कहा–” नहीं ! ”
मेहमान को कुछ आश्चर्य हुआ. और और कहा–” मुझे लगा यह जाती होगी. ”
शेख ने कहा–” नहीं ! यह सड़क मेरे घर नहीं जाती है. ”
मेहमान ने पूछा — ” फिर वो कहां जाती है ? ”
शेख ने शांत भाव से उत्तर दिया — ” वो कहीं भी नहीं जाती है. ”
मेहमान उसकी ओर घूरने लगा और कहा — ” बेटा इससे तुम्हारे क्या मतलब है ? ”
शेख ने शांति से कहा — ” जनाब ! सड़क भला कैसे जा सकती है ? उसके पैर तो होते नहीं हैं. सड़क तो एक बेजान चीज है. वो जहां पर है वहीं पड़ी रहती है.
परन्तु हम इस सड़क से मेरे घर तक जा सकते हैं. आपको मेहमानबाजी करके मुझे और अम्मी को बहुत ख़ुशी होगी. ”
शेख की निष्कपटता से उस उमर दराज इंसान का दिल पसीज गया.
और कुछ सालों के बाद शेख चिल्ली उसका दामाद बना.
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