shekh chilli ki kahani : सिपाही और शेख कुएं में – शेख चिल्ली की कहानियां

shekh chilli ki kahani: एक समय जब शेख अपने पैरों को ध्यानमग्न होकर देख रहा था कि वो सीधे एक पेड़ से जा टकराया.
वह अपनी दुखती नाक को रगड़ते हुए चिल्लाया–” अरे ! यह पेड़ भला सड़क के बीच में खड़ा क्या कर रहा है ?

अम्मी ने उसे दर्जी की दुकान पर जाने को और सड़क के बीचो-बीच चलने को कहा था कि–” बेटा ! अच्छे से ध्यान रखना , इधर-उधर देखना मत जैसे की तुम्हारी आदत है. नहीं तो तुम कभी भी अपने मंजिल तक पहुँच नहीं पाओगे. और अपनी नज़र सीधे सड़क पर गड़ाए रखना. ”

उन्होंने ने यह तो नहीं कहा था कि –” पेड़ से जा टकराना ! फिर वो टकराया क्यों ? क्योंकि वो उस समय एक खेत के बीचो-बीच था. जहां तक सड़क की बात थी वो दूर-दूर तक दिखलाई नहीं पढ़ती थी.

उसके पैर एक दिशा में पाए होंगे और सड़क कही दूसरी ओर होगी. शेख ने अपने पैरों को गुस्से से देखा परन्तु उससे कुछ फायदा हुआ नहीं. अच्छा ! चलो जब पेड़ उसके सामने है तो जनाब पेड़ पर चड़कर देख ही लेते हैं कि कहीं वो नदारद सड़क , जिस पर उसे होना चाहिए था ,दिख जाए.

सड़क काफी दूर, दाये ओर को थी. शेख पेड़ की एक निचली वाली टहनी को पकड़ कर बस कूदने ही वाला था तब उसे अपने ठीक नीचे एक कुवां दिखाई दिया. कुएं की गहराई में झिलमिलाता हुआ पानी बड़ा सुन्दर दिखाई पड़ रहा था.

शेख टहनी से एक सूखी इमली की भांति लटका और झूलता रहा. उसने अपनी आँखे बंद कर ली और कल्पना करने लगा कि वो हवा में अपनी प्रिय पतंग पर बैठकर हवा की शैर कर रहा हो.

ढुक ! धड़ाक ! ढुक ! धड़ाक !

उसका पालतू हाथी नीचे पगडंडी पर दौड़ा जा रहा था और अम्मी उसकी पीठ पर बैठी थी. वह लाल रेशमी के कपड़े पहने थी बिलकुल वैसे ही जैसे सुलतान शेख चिल्ली की माँ को पहनने चाहिए थे.

ढुक ! धड़ाक ! ढुक ! धड़ाक !

शेख ने अपनी आँखे खोली ! उसे दूर-दूर तक कोई हाथी का नामोनिशान नहीं नज़र आ रहा था. वह अभी भी कुएं के ऊपर लटका हुआ था.

परंतु खेत में से गुजरती कई पगडंडियों में से एक पर , घोड़े पर सवार एक सिपाही उसकी तरफ आ रहा था.

सिपाही चिल्लाया — ” घबराओ मत ! मैं तुम्हें बचा लूँगा , घबराओ मत !

घोड़े से उतरते सिपाही को शेख ने काफी रूची से देखा. सिपाही की बहुत सुंदर मूंछे थी. मूंछे सिरों पर मुड़ी हुई थी. सिपाही का पूरा शरीर पगड़ी से लेकर जूतियों तक धूल से सना हुआ था.

सिपाही ने कहा–” शांत रहो ! और मेरी बात को ध्यान से सुनो. मेरा घोड़ा कुएं के उस पार से छलांग लगाएगा. तुम्हारे नीचे पहुंचते ही मैं तुम्हारे पैर पकड़ लूंगा. ठीक उसी समय में तुम पेड़ की टहनी को छोड़ देना. इस तरह तुम मेरे साथ घोड़े पर सुरक्षित रहोगे. समझ गए मेरी बात को ? ”

” शेख ने जोर से अपना सर हिलाया ”

सिपाही अपने घोड़े पर चढ़ा और घोड़े को कुछ कदम पीछे की ओर लिया और फिर कुएं की ओर तेजी से अपने घोड़े को दौड़ाया. शेख के नीचे आते ही सिपाही ने उसके पैरों को पकड़ लिया. परन्तु शेख ने जिस टहनी को पकड़ा था उसे छोड़ नहीं पाया और उसी टहनी में लटका ही रहा. घोड़ा तो छलांग लगाकर कुएं के उस पार पहुँच गया परंतु उसका मालिक शेख के पैरों से लटका रहा.

सिपाही ने गुस्सा से कड़क आवाज में कहा–” तुमने टहनी क्यों नहीं छोड़ी ? ”

फिर उसने अपनी गर्दन उठाकर शेख को देखने की कोशिश की. ”

शेख को भी काफी आश्चर्य हुआ और कहा–” मैं माफ़ी चाहता हूं ! ऐसा मैंने क्यों किया यह मुझे भी नहीं पता. ”

उसने अपना आश्चर्य जताने के लिए अपने दोनों हाथ पसारे जिससे उसका नतीजा यह हुआ कि वो और सिपाही दोनों ही सीधे कुएं में जा गिरे.

जोर से आवाज आई —  धड़ाम ! घोड़े को आवाज से कुछ खतरे का महसूस हुआ और वो वहां से भाग निकला !

पास के खेत पर काम करते कुछ किसान घोड़े को वापिस लाये और उन्होंने शेख और गुस्से में आए सिपाही को कुएं से बाहर निकाला. शेख खुशनसीब निकला क्योंकि जब वो मिटटी से सना और गीला , दर्जी को बिना खबर पहुंचाए वापिस घर पहुंचा तो उसकी अम्मी बिलकुल भी नाराज़ नहीं हुई.

उसे इस हालत में देख अम्मी ने कहा–” अच्छा ही हुआ कि तुम दर्जी के घर गए नहीं , क्योंकि वो तो मुझे यहीं पर मिल गया. पर उसके घर के पास तो कोई कुआं है नहीं , फिर तुम कैसे…. ”

शेख ने कहा–” अम्मी ! कुआं न जाने कहां से आ गया था , फिर शेख को याद आया और साथ में वो पेड़ और घोड़े पर सवार सिपाही भी. कितना रोमांचक अनुभव था. शेख मन ही मन मुस्कुराया और फिर उसने अपनी प्रिय पतंग उठाई.

छत की ओर दौड़ते हुए उसने कहा–” अम्मीजान ! जब ,मैं बड़ा होऊंगा तो मैं अपनी मूँछो को इतना बढ़ाऊंगा कि आप उन्हें देखकर दंग रह जाएंगी.

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