rath yatra: रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ जी का (जो भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं ) पूजा किया जाता है और साथ ही साथ उनकी बहन सुभद्रा , उनके भाई बलभद्र जी की भी पूजा की जाती है.
यह पावन पर्व (jagannath rath yatra) भारत के पूर्वी क्षेत्र तटवर्ति इलाका उड़ीसा राज्य के पुरी नामक शहर में किया जाता है.
इसके अलावा कई गांवों में भी इसी तरह का पर्व मनाया जाता है.
हालाँकि पूरी ( उड़ीसा ) जैसा बड़ा पर्व नहीं होता, मगर भक्त श्रध्दा से भगवान जगन्नाथ की पूजा पाठ करते हैं और गांवों में छोटा-छोटा मेला भी लगा रहता है ,जिससे सभी हर्ष और उल्लास से भगवान की पूजा करके प्रसाद ग्रहण कर मेले का आनंद लेते हैं.
हिन्दू धर्म में इस पावन पर्व ( ratha yatra ) को बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है.
इसे देखने के लिए लोगों की बड़ी मात्रा में भीड़ उमड़ती है | भगवान जगन्नाथ जी का दर्शन करने के लिए श्रद्धालु भक्त देश विदेश से आते हैं.
हिन्दू धर्म में यह जगन्नाथ पुरी धाम चार धामों में से एक धाम कहलाता है जो लोग अक्सर जाना चाहते हैं.
यह पर्व प्रतिवर्ष आषाढ़ शुक्ल की द्वितीया को आरंभ होती है.
इस वर्ष रथ यात्रा की प्रारंभ की तिथि 12 जुलाई 2021 को है____
1. रथ यात्रा की तिथि : 12 जुलाई 2021 को है.
2. रथ यात्रा क्यों मनाई जाती है :
इसके पीछे अनेकों तथ्य सामने आती है , मगर उनमें से कुछ तथ्यों को हम यहां पर बताने की कोशिश किये हैं,
(1) सबसे पहले ऐसा माना जाता है, भगवान की बहन सुभद्रा ने नगर भ्रमण करने की इच्छा व्यक्त की थी जिसके कारण भगवान जगन्नाथ सहित सुभद्रा और उनके बढ़े भाई बलभद्र नगर में भ्रमण के लिए निकल पढ़े.
तीनों अलग-अलग रथ में सवार होकर एक साथ पूरे नगर में भ्रमण करने लगे तभी से रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है.
(2) दूसरी बात यह कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण अपने शय्या में सोते हुए अचानक बोल पढ़े कि ” हे राधे ” उनकी बात सुनकर उनकी पत्नी रुक्मिणी और अन्य महारानियाँ आश्चर्य में पढ़ गई और बाद में वे सभी महारानियाँ एक दुसरे से वार्तालाप करने लगी कि हमने इतने प्रेम किये इनकी इतना सेवा किये फिर भी राधा नाम की एक गोपकुमारी को श्रीकृष्ण अभी तक भुला नहीं पाए हैं.
राधा और श्रीकृष्ण की रहस्यमयी लीलाओं को माता रोहिणी भली-भांति जानती थी. उनसे दोनों की प्रेम लीलाओं को जानने के लिए सभी महारानियों ने प्रेम पूर्वक माता रोहिणी से विनती की अनुनय करने लगी.
उनके बार-बार विनती करने पर माता रोहिणी ने उनकी रहस्यमयी रास लीलाओं को बताने के लिए राजी हो गई. मगर उससे पहले कक्ष के बाहर कृष्ण की बहन सुभद्रा को पहरे देने के लिए रख दिए ताकि कोई अंदर आ न पाए चाहे श्रीकृष्ण और बलराम क्यों न हो.
माता रोहिणी कथा सुनाने लगी ,
तभी कुछ समय में श्रीकृष्ण और बालराम आने लगे.
उन्हें आते देखकर सुभद्रा देवी माता रोहिणी के आदेशानुसार द्वार पर ही उन्हें रोक दिया. द्वार से ही श्रीकृष्ण और राधा के रासलीला की बाते सुनाई देने लगी यह सुनकर श्रीकृष्ण और बलराम मन से हर्षित होकर मंत्रमुग्ध हो गए , और अंग-अंग अद्भुत प्रेम रस का उद्धव होने लगा.
साथ ही साथ देवी सुभद्रा भी भाव विहीन होने लगी और सुदर्शन चक्र भी , चक्र एक लम्बा सा आकार ग्रहण कर लिया.
ठीक उसी समय नारद मुनि वहां पहुंचे और कहने लगे हे भगवन आप चारों के जिस महाभाव में लीन मुर्थित रूप में दर्शन मैंने किये हैं , इसलिए हे भगवन यह सामान्य जनों के दर्शन हेतु पृथ्वी लोक पर सदैव सुसोभित रहे.
भगवान श्रीकृष्ण ने तथास्तु कह दिया.
(3) कहा जाता है इन्द्रद्युम्न नाम का राजा , जो अपने पूरे परिवार के साथ भारत के पूर्वी तटवर्ती इलाके समुन्द्र के किनारे उड़ीसा राज्य में रहते थे , जब राजा रात के समय सोये हुए थे.
तभी उन्होंने सपने में देखा कि समुन्द्र में एक बहुत बढ़ा काष्ठ था , जिससे उन्होंने ने एक विष्णु मूर्ति का निर्माण करने का निश्चय किया.
तभी दुसरे दिन एक वृद्ध बढ़ई के रुप में स्वयं भगवान विश्वकर्मा जी प्रस्तुत हुए और उन्होंने यह शर्त रखा कि मूर्ति को मैं एक बंद कमरे में बनाऊंगा और इस बीच मुझे कोई बात नहीं करेगा और कक्ष में कोई आएगा भी नहीं.
राजा ने यह शर्त स्वीकार कर लिया.
भगवान विश्वकर्मा अपने काम में जुट गए , कुछ दिन इसी तरह चलता रहा.
तभी एक दिन महरानी राजा से कही महराज वह बूढ़ा बढ़ई बहुत दिनों से अंदर में काम कर रहा है पता नहीं कुछ खाया भी होगा कि नहीं उसे कुछ हो तो नहीं गया होगा.
यही शंका दूर करने के लिए महराज भी रानी की बातों को मानकर उस कक्ष में चला गया जैसे ही गया भगवान विश्वकर्मा तीनों (श्रीकृष्ण,सुभद्रा और बलराम ) की अर्धनिर्मित मूर्ति को छोड़कर गायब हो गए.
यह देख राजा बहुत निराश हो गया.
फिर भी उतने ही आधे-अधूरे मूर्ति को पवित्र कर विधि से स्थापित कर पूजन किया.
3.रथ यात्रा कैसे मनाया जाता है :
रथ यात्रा के दिन तीनों रथ को पूरी तरह से सुसोभित सजाकर सबसे आगे में श्री बलराम जी का रथ ,उसके पीछे पद्म ध्वज नाम के रथ पर सुभद्रा देवी व सुदर्शन चक्र और अंत में जगन्नाथ जी को गरुण ध्वज पर या नंदीघोष नाम के रथ पर बिठाया जाता है.
और तीनों को गुंडीचा मंदिर की ओर ले जाया जाता है रथ को सैकड़ों श्रद्धालु भक्त श्रद्धापूर्वक खीचतें हैं.
वहां पहुंचने के बाद पूरे नौ दिन वहीँ पर रहकर अगले दसवें दिन में वापिस लाया जाता है. जिसे छत्तीसगढ़ी में फिरती रथ ( यानी लौटने के समय को ) भी कहा जाता है.
फिर पूजा अर्चना करने के बाद भगवान को प्रसाद का भोग लगाकर भक्तों में वितरण किया जाता है.
इस तरह से रथ की यात्रा समाप्त होती है.
4. रथ यात्रा का महत्त्व :
रथ यात्रा के दिन श्रद्धालु भक्त भगवान की पूजा जोरों शोरों से करते हैं , लोग अपनी मनोकामनाएं लेकर भगवान के पास जाते हैं.
पुराणों के अनुसार यात्रा में जो भी व्यक्ति श्री जगन्नाथ भगवान का दर्शन करते हुए , उनको प्राणाम कर धूल-कीचड़ आदि में लोटते हुए जाते हैं.
ऐसा माना जाता है ऐसा करने से सीधे भगवान विष्णु के उत्तम धाम को जाते हैं, और जो भी भक्त रथ में विराजमान भगवान कृष्ण ,देवी सुभद्रा और बलराम तीनों को दक्षिण दिशा को आते हुए दर्शन करते हैं तो वे मोक्ष को प्राप्त करते हैं.
और बहुत से श्रद्धालु भक्त भगवान की रथ खीचने में अपनी सौभाग्य मानकर उनकी सेवा करते हैं , ताकि भगवान उनके सारे दुःख परेशानियों को दूर कर सके.
जो भी भक्त श्रद्धा भाव से भगवान की पूजा करते हैं उनकी सारी परेशानियां और कष्टों को श्री हरि हर लेते हैं.
5. जगन्नाथ भगवान की पूजन विधि :
(1) सबसे पहले पीले वस्त्र धारण करें और भगवान जगन्नाथ का पूजा करें.
(2) भगवान जगन्नाथ ,सुभद्रा और बलभद्र के चित्र या मूर्ति की स्थापना करें.
(3) उसके बाद उनको चन्दन लगायें ,विभिन्न भोग प्रसाद और तुलसीदल अर्पित करें.
(4) उनको फूलों और फूलों की माला से सजाकर उनके समक्ष घी का दीपक जलाएं.
(5) फिर गजेन्द्र मोक्ष का पाठ करें , या गीता के ग्यारहवें अध्याय का पाठ कर सकते हैं.
(6) उसके बाद सभी लोग मिलकर ” हरि बोल-हरि बोल ” का कीर्तन करें.
(7) और फिर अंतिम में भगवान जगन्नाथ जी के लिए प्रसाद चढ़ाकर सभी लोग मिलकर प्रसाद ग्रहण करें.
दोस्तों मुझे उम्मीद है कि यह आर्टिकल rath yatra,jagannath rath yatra ( रथ यात्रा कब क्यों और कैसे मनाया जाता है और इसका महत्त्व क्या है ? और जगन्नाथ भगवान की पूजन विधि ) अच्छी लगी होगी.
दोस्तों मैंने बहुत कोशिश की है अच्छे से अच्छे सरल शब्दों में लिखने की ताकि आप अच्छे से समझ सके,हमारी भारतीय संस्कृति की प्रमुख त्योहारों में से एक यह त्यौहार रथ यात्रा को.
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