raja rani story : एक समय की बात है. एक नगर का राजा एक बार शिकार करने के लिए अपने सैनिकों के साथ जंगल गया हुआ था.
बहुत देर हो गई थी मगर एक भी शिकार हाथ न आया ,चलते-चलते सैनिक बहुत थक चुके थे.
इसलिए उन्होंने राजा से कहा–” हे महराज ! आप तो घोड़े में हैं इसलिए आप ज्यादा थके नहीं होगे. किन्तु हम लोगों के पैर दुखने लगे हैं. और पानी प्यास से व्याकुल हो रहें हैं. ”
इस पर महराज कहते हैं–” ठीक है ! तुम लोग वापिस राजमहल लौट सकते हो. मैं तो शिकार किये बिना वापस नहीं लौटूंगा. ”
महराज के आदेश पर सभी सैनिक वापिस राजमहल लौट गए. अब महराज अकेले जंगल में शिकार की तलाश में घूमता फिरता रहा. बहुत समय हो गया था. मगर एक भी शिकार दिखाई नहीं दिया. रात हो गई थी.
चलते हुए महराज को एक तलाब दिखाई दिया.
उन्होंने सोचा की थोड़ा सा पानी पी लेना चाहिए . महराज पानी पीने के लिए अपने घोड़े से उतरकर जब पानी पी रहे थे.
तभी तलाब के दुसरे छोर में एकसुन्दर सी कन्या पानी लेने के लिए आई. महराज उसे देख मन्त्रमुग्ध हो गए . महराज पहले नज़र में ही उस कन्या से प्रेम कर बैठे , वह कन्या अपनी मटकी में पानी भरकर वहां से जाने लगी.
महराज भी उसके पीछे-पीछे जाने लगा , मगर कुछ ही दुरी पर वह कन्या गायब हो गई , महराज को समझ नहीं आया कि , आंखिर वह कन्या गई तो गई कहां ?
महराज अपनी सुध बुध खोकर पागलों की तरह उस कन्या को पूरे जंगल में ढूढ़ते फिरते रहे , मगर वह कन्या कहीं मिली नहीं.
महराज उस अप्सरा रूपी कन्या को भुला नहीं पाते थे और वही तालाब के पास जाकर उसका इंतज़ार करते रहे ,और वहीं पर सो जाते,ताकि सुबह जब कन्या आये तो उनसे मिल सके.
महराज रात भर सो न सका , और सुबह का इंतज़ार करता रहा.
और जैसी ही सुबह हुआ , महराज उठा गया और कन्या की राह देखता रहा.
मगर वह कन्या दिन को कभी आई ही नहीं.
महराज सोचने लगा कि शायद वह कन्या शाम को ही आती होगी इसलिए उसने प्रतिक्षा करने की सोची.
और जब शाम हुआ वह कन्या पानी लेने के लिए , उस तालाब की ओर आई , और पानी भरने लगी , उसे देख महराज जल्दी से उसके पास चला गया.
और कहा–” हे अप्सरा रूपी कन्या ! तुम कौन हो ? कहां से आई हो ? ”
कन्या कुछ कहती नहीं है , महराज दुबारा उसे पूछता है,फिर भी कन्या चुप चाप पानी भरकर वहां से चली जाती है.
रोज इसी तरह से महराज वही पर रहकर उस कन्या से उसका नाम पूछता मगर कन्या जवाब न देती.
एक दिन राजकुमारी रात के पहले ही अपना चेहरा ढककर पानी लेने के लिए तालाब आती है. उस दिन महराज गुस्से में आकर उस कन्या के नजदीक चला जाता है .और कहता है–” हे अप्सरा रूपी कन्या मैं आपके प्रेम में विवश होकर कई दिनों से इस जंगल में भटक रहा हूं . अब तो अपना नाम बता दीजिये , मैं तुमसे बेइंतहा प्रेम करता हूं , आपसे विवाह कर अपने महल की रानी बनाना चाहता हूं. ”
हमेशा की तरह कन्या कुछ न कहकर अपने कुटिया की ओर जाने लगती है.
तभी महराज उसके हाथ को पकड़कर उसके चेहरे से नकाब को हटा देता है , जिससे उसकी बदसूरती दिख जाती है.
यह देख राजकुमार चौंक जाता है. फिर भी राजकुमार उनसे उतना ही प्रेम करता है और उस कन्या से कहता है. हे अप्सरा रूपी कन्या तुम्हारे इस चेहरे का राज क्या है ? मुझे तो मालुम नहीं , दिन में बदसूरत और रात को एक अप्सरा से भी ज्यादा सुंदर हो जाती हो ,मगर अब भी मैं तुम्हें उतना ही बेइंतिहा प्रेम करता हूं.
इस पर कन्या कहती है–” हे युवराज ! सुनना चाहते हैं तो सुनिए , एक बार जब मैं और मेरी सखियां अपने राजमहल के बगीचे में खेल रहे थे , तभी एक कुबड़ा ऋषि हमारे बगीचे में आ पहुंचा और मुझे खेलते देख मेरी सुन्दरता पर मोहित हो गया.
मुझसे विवाह करने का प्रस्ताव मेरे से रखा मगर मैंने उसे उपहास उड़ाते हुए कहा कि ,देखो यह एक कुबड़ा ऋषि मुझसे विवाह करना चाहता है , जो ढंग से खड़ा भी नहीं हो पा रहा है.
इस पर ऋषि ने मुझे श्राप देते हुए कहा कि–” अरे दुष्ट कन्या ! अगर किसी के प्रेम को ठुकरा दिया जाय ये तो ठीक है. मगर उसकी कमजोरी का उपहास उड़ाना ठीक नहीं है. इसलिए तुझे मैं श्राप देता हूँ.
जैसे-जैसे सुबह होगी तुम्हारी खूबसूरती बदसूरती में बदलती जायेगी ,और जब तुम अपने आप को देखोगी , तो तुम्हे घिन्न आने लगेगा. लोग तुमपे थूकेंगे | जैसे ही रात होगी तुम पुनः अपने असली रूप में आजाओगी. ”
राजकुमारी कहती है–” हे ऋषि ! मुझे क्षमा करें, मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई , मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए. ”
यह कहते हुए राजकुमारी उसके पैरों में गिर जाती है. और बार-बार क्षमा याचना करती है.
इस पर ऋषि को दया आ जाती है और कहते हैं तो ठीक है कन्या–” जब कोई राजकुमार तुम्हें तुम्हारी इस अवस्था में भी प्रेम करे तो तुम्हारी यह श्राप टूट जायेगी. ”
अब राजकुमार के प्रेम से उस राजकुमारी का श्राप भी टूट जाता है.
और दोनों एक दुसरे से विवाह कर अपने महल की ओर लौट जाते हैं.
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