nani ki kahani : nani maa ki kahani – नाना-नानी की कहानियां

nani ki kahani: दोस्तों आज हम प्रसिद्ध लेख़क श्री अनिल कुमार जी की नाना-नानी वाली शिक्षाप्रद एवं मनोरंजक कहानियां लेकर आयें हैं।

जो पढ़ने में मनोरंजन के साथ-साथ हमें कुछ सिखा कर भी जाती है।

दोस्तों आपको याद तो होगा ही जब हम बचपन में गर्मियों की मौसम में स्कुल से छुट्टी होने के बाद अपने नाना-नानी के घर जाते थे,

और जब शाम होती तो उनसे अनेको तरह की किस्से-कहानियां जैसे राजा-रानी , परियां , अलादीन का चिराग , विक्रम-बेताल आदि जैसे कहानियां सुना करते थे, और सुनते-सुनते एक अलग ही दुनियां में खो जाते थे. मजा आ जाता था।

और कहानी के अंत में जो शिक्षा मिलती उससे हम काफी प्रभावित होते थे।

हालांकि कहानियों का सिलसिला बहुत पुराना हो गया है. मगर आज भी कहीं न कहीं हमारे ज़हन में मौजूद है. आज हम यही पुरानी यादगार को तरोताजा करने के लिए कुछ कहानी प्रस्तुत करने जा रहें हैं।

नाना-नानी की कहानियां :

१. टर्राना और फुंसफुंसाना : 
किसी तालाब में एक सांप रहता था. उसे अपनी जागीर जैसा समझता था. और ठीक उसी तलाब के बगल में एक विषैला सांप रहता था. जो रोज पानी पीने उस तालाब में जाता और उस तालाब को अपना हक़ समझता था।

तभी एक दिन पानी में रहने वाला सांप ने उस विषैले सांप को चुनौती दी और कहा कि — ” यह सिर्फ मेरा तलाब है ! इसमें तुम्हारा कोई हक़ नहीं है। “

उस जमीन में रहने वाला सांप भी बड़े गुस्से से कहा कि — ” चलो आज फैसला हो जाए कि तलाब किसका है ? “

और इस तरह से दोनों आपस में भीड़ गए. बगल में रहने वाले मेढक भी जमींन में रहने वाले सांप का साथ दिया क्यों पहले से पानी वाले सांप और मेढको की जमती नहीं थी।

और आंखिरकार अंत में ऊपर जमींन में रहने वाले सांप की जीत हुई. जीतने के बाद जब मेढको ने अपना हक़ उस जमीन वाले सांप से मांगा तो फुंसफुंसाने लगा।

इस पर मेढकों ने आश्चर्य से उसे पूछा — ” कि ऐसा क्यों कर रहे हो ? “

जवाब में सांप ने कहा — ” जिस तरह टर्राकर तुमने मेरा साथ दिया था , ठीक उसी तरह मैंने फूंफकारकर मैं तेरा बदला चूका रहा हूं। “

२. घोड़े की दुलती :
किसी जंगल में एक भेड़ीयें ने घोड़े को घास चरते हुए देखा तो उसके मन में एक ख्याल आना शुरू हुआ और सोचने लगा — ” चलो आज मुझे एक शिकार मिला है. समझो आज तो मेरी दावत है।”

उअही सोचकर भेड़िया घोड़े को ओर बड़ने लगा. भेड़ीयें को अपनी ओर आते देख घोड़ा समझ गया कि भेड़िया मुझे अपना निवाला ज़रूर बनाएगा।

तभी उसने अपने पैरों में चोट लगने का बहाना करने लगा. उसे इस तरह से देख भेड़िया ने भी छलपूर्वक पूछा — ” भाई ! तुम्हें कोई तखलीफ़ है क्या।”

घोड़ा ने कहा — ” क्या बताऊं भाई ! जब मैं जंगल की शैर कर रहा था , तभी मेरे खूर में कांच के टुकड़े से चोट लग गई है. ज़रा देखोगे क्या कहीं कांच अंदर में तो फंसा नहीं है ? “

भेड़िया भी लोभवश उसकी बात मानकर कहा — ” ओह बहुत दर्द हो रहा है क्या ? बता भाई ! ज़रा देखूं तो कितनी चोट पहुंची है।”

नाना-नानी की कहानियां :

घोड़े ने कहा — ” हां-हां क्यों नहीं, ज़रूर देखो। “

और जैसे ही भेड़िया घोड़े के खूर को देखने के लिए नीचे झुका घोड़े ने अपने पीछे दोनों पैरों से इतनी जोर से दुलती मारी की भेड़िया हवा में जा गिरा. और जब ज़मिन में वापस आया तो उसके पैरों के हड्डियां टूट गई।

कुछ दिन तक वह चलने में असमर्थ था. और जब थोडा-मोड़ा लंगड़ाकर चलने लायक हुआ तो धीरे-धीरे करके जंगल की ओर चला गया।

और वह सोचने लगा कि वह कैसा मूर्ख है , जो घोड़े को आसान शिकार समझ रहा था कि यूं मारा और चट गया. लेकिन उसे तो लेने के देने पड़ गए।

3. ऊपर ही नहीं नीचे भी : 
किसी नगर में एक ज्योतिष रहता था. वह रोज पूजा-पाठ कर जब घर आता तो उसके आते-आते रात हो जाती. उसकी एक आदत थी कि वह जब भी आता रास्ते को छोड़कर ऊपर आसमान की ओर तारे गिनते हुए आता।

तभी एक दिन जब ज्योतिष तारों को निहारता हुआ आ रहा था कि अचानक उसका पैर फिसला और एक गड्डे पर जा गिरा और जोर-जोर से चिल्लाने लगा।

उसकी चीखने की आवाज सुनकर गांव के कुछ किसान भागते हुए चले आये और उसे उस गड्डे से बाहर निकालने लगे।

तभी उसमें से एक किसान ने कहा — ” अरे भाई ! जब तुम्हें यही नहीं पता कि तुम्हारी नाक के नीचे क्या है , तो ऊपर आकाश में क्या ख़ाक ढूंड पाओगे। “

यह सुनकर ज्योतिष को वास्तविकता का आभास हुआ।

आज भी ऐसे अनेकों लोग है , जो इस ज्योतिष की तरह ही करते हैं और खतरा मोल लेते हैं —-अपनी इच्छा , आकांक्षओं को जल्द पूरा करने के लिए।

अनिल कुमार 

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