bandar aur magarmach ki kahani: एक समय की बात है किसी समुन्द्र के किनारे मीठे-मीठे स्वादिष्ट रसीले फलों से लदा हुआ एक जामुन का पेड़ था. जिसमें एक रक्तमुख नाम का बंदर रहता था.
वह बंदर रोज रसीले जामुन खाकर उनकी गुठलियों को पेड़ के नीचे फेंकता था. तभी एक मगर घूमते हुए उस समुंद्र से जामुन के पेड़ के पास आ पहूंचा,वह पेड़ के नीचे गिरे हुए जामुन की गुठलियों और कुछ बचे हुए जामुन के रसीले फलों के टुकड़े को देखकर चखने लगा वह जामुन इतना स्वादिष्ट था कि पेड़ पर चड़ने की सोचा. मगर चढ़ नहीं पाया.
तभी ऊपर से बंदर देखा की मगर जामुन खाने के लिए उत्सुक हो रहा है. उसे देखकर बंदर ने कहा–” मित्र ! क्या जामुन खाना चाहते हो ? ”
मगर ने कहा–” हां ! मित्र, यह जामुन इतने मीठे और रसीले हैं कि दिन भर खाता रहूं. ”
अब बंदर ने ऊपर से कुछ जामुन तोड़कर नीचे मगर के पास फेंका.
वह मगर जामुन को खूब खाया और कहा–” मित्र ! क्या आप मुझे रोज जामुन खिलाओगे. ”
बंदर ने कहा–” हाँ जरुर. अब तो तुम मेरे मित्र हो गए हो. ”
इसी तरह रोज मगर उस जामुन के पेड़ के पास आता और दोनों एक साथ जामुन खाते हुए अनेकों तरह के बाते करते रहते. इसी तरह दिन गुजरता गया और दोनों में गहरी दोस्ती हो गई.
और जब एक दिन मगर जामुन खाते-खाते सोचा कि क्यों न आज मैं थोड़ा सा जामुन अपनी पत्नी के लिए भी ले चलूँ. वो भी इस रसीले जामुन का स्वाद चखकर आनंद ले लेगी.
यह सोचकर उसने बंदर से कहा–” हे मित्र ! आज थोड़ा ज्यादा जामुन तोड़ के देना ताकि मेरी पत्नि को दे सकूं. जब भी मैं रोज घर जाता हूं. तब कहती हैं की मेरे लिए कुछ नहीं लाये.
बंदर ने कहा–” मित्र ! पहले से क्यों नहीं बताये की भाभी भी है,अच्छा लो और जामुन भाभी को दे देना. ”
वह मगर ढेर सारा जामुन पकड़ कर अपने गुफा की ओर चला गया,पहुंचते ही उसने जामुन को अपनी पत्नी को दिया. और वे दोनों जामुन को खूब मजे से खाने लगे. उसकी पत्नी पहली बार जामुन खाकर बहुत खुस हो गई. और कहने लगी इतने स्वादिष्ट जामुन तुम कहां से लाते हो.
मगर ने जवाब दिया–” प्रिये ! यह जामुन मेरा प्रिय मित्र रक्तमुख नाम के बन्दर ने दिया है. ”
पत्नी ने कहा–” स्वामी ! अगर यह जामुन इतना स्वादिष्ट है. तो सोचो. रोज मीठे रसीले जामुन खाने वाले उस बंदर का कलेजा कितना मीठा और स्वादिष्ट होगा ? ”
इस बात पर मगर बहुत गुस्सा हुआ और कहा–” अरे दुष्ट ! पापिनी यह तुम क्या कह रही हो. ओ मेरे मित्र हैं और फलदाता. आज उसी के वजह से हम इस मीठे जामुन को खा पाए हैं. इसलिए ऐसा मत कहो. ”
यह बात सुनकर मगर की पत्नी बहुत नाराज़ हो गई और कहने लगी–” ठीक है नहीं लाना है तो मत लाओ. मगर मेरी भी एक बात कान खोलकर सुन लो. जब तक तुम उसके कलेजे को लाकर नहीं देते. तब तक मैं अन्न का एक दाना भी नहीं खाऊँगी, और वह रूठ गई. ”
मगर करता तो क्या करता. फिर सोचा कि वह बंदर मेरा तो कुछ समय का साथी है किन्तु यह मेरी जन्म से मरण तक मेरी अर्धांगिनी है. इसलिये मुझे इसकी बात माननी ही पड़ेगी. ”
और कुछ समय बाद मगर अपनी पत्नी से कहता है–” ठीक है भग्यावान ! जैसे तुम चाहो. ”
और वह मगर सोचते हुए धीरे-धीरे अपने गुफा से समुन्द्र के रास्ते उस जामुन के पेड़ बंदर के पास पहुंचा. वह बंदर भी बहुत समय से उसका राह देख रहा था. कि आज कैसे मेरे मित्र आ नहीं रहे हैं.
जब उस मगर को आते देखा तो बहुत प्रसन्न हो गया और कहा–” मित्र ! आज तुमने आने में इतनी देरी क्यों कर दी. मैं कब से तेरी राह देख रहा था. ”
वह मगर मुह लटकाए बोला–” मित्र आज तुम्हारी भाभी से झगड़ा हो गया वह तुम्हे देखने की इच्छा जताई इसलिए देर हो गई. ”
बंदर ने कहा–” बस इतनी सी बात ! चला तो जाऊंगा. किन्तु मैं एक बंदर थल में रहने वाला तुम्हारे साथ पानी में कैसे जाऊंगा ? ”
मगर ने कहा–” मित्र ! तुम इसकी चिंता मत करो,मैं तुम्हे अपने पीठ पर बिठा कर ले जाऊंगा. ”
वह बंदर मान गया उसके पीठ पर बैठ गया और मगर तेजी से अपने गुफा की ओर चलने लगा.
जाते-जाते मगर सोचा कि–“क्यों न इसको सच्चाई बता दूं.अब तो यह समुद्र के बीच भी आ गया है. और भाग भी नहीं सकता. यह सोचकर वह मूर्ख मगर अपने मित्र बंदर को बता दिया–” मित्र ! तुम बुरा मत मानना. तुम्हारा कलेजा खाने के लिए मेरे पत्नी ने इच्छा जाहिर की है इसलिए तुम्हे उसी के पास ले जा रहा हूं. ”
यह सुनकर बंदर डर से कांपने लगा और उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाये. किन्तु बंदर था बहुत होशियार उसने तुरंत एक युक्ति सूझी और उपाय निकाला.
और उसने मगर से कहा–” मित्र ! क्या तुम भी. बेवकूफों जैसे बात करते हो. पहले बताना चाहिए न. अगर यही बात है तो चलो उस जामुन के पेड़ के पास. क्योंकि मैं हमेशा अपना कलेजा उसी पेड़ पर लटका कर रखता हूँ.
वह मूर्ख मगर उसकी बातो को सच समझ कर वापिस जामुन पेड़ के पास आ गया. मगर जैसे ही किनारे पहुंचा वह बंदर तुरंत उछलकर उस पेड़ पर चढ़ गया. और हसने लगा.
वह मगर कहता है,मित्र कहा हैं,तुम्हारा कलेजा और हंसते क्यो हो ?
बंदर कहा–” अरे मूर्ख ! मैं तुम्हे अपना सच्चा मित्र समझता था. किन्तु तुम धोकेबाज और मक्कार निकले. भला कोई अपना कलेजा के बिना जिन्दा रह सकता है क्या ? ” मैंने तुम्हे मूर्ख बनाया , कोई कलेजा नहीं है पेड़ पर . यहां से चले जाओ तुम और कभी दोबारा मत दिखना. आज से तेरी और मेरी मित्रता ख़त्म हो गई.
अब वह मगर अपनी मुर्खतापूर्ण कार्य को सोच कर शर्म से झुककर अपने गुफा की ओर चला गया.
सिख: – इस कहानी से हमें यह सिख मिलती है कि. संकट चाहे कितनी बड़ी क्यों न हो. उसको अपनी बुद्धि और चतुराई से हल किया जा सकता है.
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