Mitra droh ka phal: एक समय की बात है किसी गांव में धर्म बुद्धि और पाप बुद्धि नाम के दो मित्र रहते थे. वे दोनों एक साथ गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त किये थे. मगर पापबुद्धी अपने बुरे कर्मों और अनुशासन का पालन नहीं करने की वजह से पापबुद्धी नाम का भागीदार बना.

और धर्म बुद्धि अपने अच्छे कार्यों के कारण उन्हें धर्म बुद्धि के नाम से जाने जाना लगा. धर्म बुद्धि को गांव से लेकर कसबे के लोग भी सम्मान करते.
पापबुद्धी इसी बात का फायदा उठाते हुए कि धर्म बुद्धि का इतना सम्मान हैं. तो क्यों न इसका सहारा लेकर कहीं दूर कसबे में जाकर ढेर सारा धन अर्जित किया जाए. यह सोचकर पाप बुद्धि अपने प्रिय मित्र धर्म बुद्धि को अपने बातों से धन की लालच में किसी भी तरह से मना लिया.
अब वे दोनों अगले सुबह ही शहर की ओर प्रस्थान हो गए. कुछ दिनों तक रहकर बहुत सारा धन अर्जित कर लिए. धर्म बुद्धि ने कहा कि हे मित्र हमें घर लौटना चाहिए क्योंकि इतना धन काफी हैं हमारे लिए.

यह कहकर दोनों अपने घर की ओर प्रस्थान करने लगे. घर के निकट पहुंचते ही उस पाप बुद्धि के मन में एक ख्याल आया की की क्यों न मैं सारे धन को अकेले ही ही हड़प लूं . मगर कैसे ? कुछ समय के बाद उसको एक युक्ति सूझ गई. और अपने मित्र से कहने लगे हे मित्र अगर हम सभी धन को अपने गांव घर ले गए तो गांव वाले और रिश्तेदारों की नज़र हमपे पड़ जायेगी हमसे इर्ष्या द्वेष करने लगेंगें यह सब मुझे ठीक नहीं लगता यह कहकर अपने मित्र को अपने बातों से उलझा लिया.
उसकी बात सुन कर धर्म बुद्धि बोला मित्र तो अब हमें क्या करना चाहिए.
पाप बुद्धि ने कहा मित्र अगर तुम्हें सही लगे तो हमें इस धन को यही जंगल में गाड़ देना चाहिए. और जब जरुरत पड़े तो हम दुबारा इस धन को खोदकर ले जायेंगे.

धर्म बुद्धि ने कहा चलो ठीक है मित्र तुम्हे जो तुम्हें सही लगे.
उसके बाद दोनों कुछ धन निकालकर बांकी धन को वही पर गाड़ कर अपने-अपने घर के लिए रवाना हो गए. ठीक उसी रात लोभ के लालच से पाप बुद्धि उस धन को निकालने के लिए चले गया और सारा धन निकालकर दुसरे जगह में गाड़ दिया. जिससे धर्म बुद्धि को इसका आभास भी न हो.
दुसरे दिन धर्म बुद्धि को कुछ धन की आवश्यकता होने लगे तो वह अपने मित्र पाप बुद्धि के पास गए और कहने लगे की हे मित्र मुझे कुछ धन की आवश्यकता है क्योंकि मुझे मेरी बेटी का विवाह करना. पाप बुद्धि ने कहा चलो ठीक है.
यह कहकर दोनों जंगल की ओर धन लेने चले गए. कुछ समय बाद उस जगह पहुंचे जहां धन को गाड़ा गया था. उन्होंने उस जगह को खोदना शुरू किया कुछ समय खोदने के बाद जब वहां खाली मिट्टी के आलावा कुछ नहीं मिला.
यह देख कर वह फरेब पाप पुद्धि अपना सर पकड़ रोने लगा और अपने ही मित्र पर उस चोरी का लांछन लगाया की चोरी तुमने की है. इस पर धर्म बुद्धि कहते हैं मित्र मैं कैसे चोरी कर सकता हूं. मैं तो धर्म बुद्धि हूं जो सदैव धर्म के राह पर चला हूं.
पाप बुद्धि ने कहा यह सब ढोंग मेरे साथ नहीं चलेगा. अब तो तुम्हें गाँव के मुखिया के पास ही ले जाना पड़ेगा. यह कहकर दोनों मुखिया के पास चले गए जहां दोनों अपनी-अपनी पक्ष की सारी बात मुखिया को बतायी गई.
अब मुखिया दोनों के लिए सच का प्रामण निकालने के लिए अनेकों तरह के परीक्षाओं की तैयारी करने को अपने पांचो से कहा.
उसी समय पाप बुद्धि ने कुछ बहाना बनाकर कहा. हे मुखिया जी इससे सत्य का प्रमाण नहीं निकलेगा वही उस वन पर एक पेड़ हैं जो साक्षी होगा कि चोरी किसने की है. इसलिए हे मुखिया मैं आपसे विनती करता हूं. हम दोनों को उस वन के पास ले चलें जहां वह पेड़ हैं.
उसकी बातों को सुनकर मुखिया ने कहा शायद तुम सही कह रहे हो. कल ही उस वन की ओर प्रथान करेंगे.
यह कह कर मुखिया पंचायत सभा का स्थगित किया. घर लौटते ही पाप बुद्धि अपने बूड़े पिता को कहा पिता जी मैंने धर्म बुद्धि का सारा धन चुराया है जिसका प्रामाण निकालने के लिए कल वन में हम दोनों को मुखिया ले जाएगा. इसलिए तुम उस पेड़ में एक बड़ी खोखली है अतएव तुम उस पेड़ की खोखली में समां जाना और जब मुखिया जी पेड़ को प्रश्न पूछेंगे तो तुम कह देना की चोरी धर्म बुद्धि ने की है.
अगले सुबह ही मुखिया अपने पंचों के साथ उन दोनों को भी उस पेड़ के पास ले जाया गया. पेड़ के पास पहुंचते के बाद मुखिया उस पेड़ से पूछते हैं. ” हे पेड़ ! यहां पर गाड़ा हुआ धन किसने चुराया है. ”
यह बात सुन कर पाप बुद्धि के पिता बोलने लगते हैं कि उस धन को धर्म बुद्धि ने चुराया है वह एक चोर है. धर्म बुद्धि तो ज्ञानवान थे तभी उनको शक हुआ कि यह एक सुखा पेड़ कैसे बोल सकता है. उनको एक युक्ति सूझी वे पता करने लगे की आंखिर पेड़ कैसे बोल सकता है. उनको कुछ आभास होता है कि उस पेड़ के खोखले में कोई तो जरुर है.

इसको बहार निकलने का एक ही तरीका है यह सोच कर धर्म बुद्धि उस पेड़ के चारों ओर से आग जला देते हैं जिससे पेड़ की साथ वह बूड़ा व्यक्ति (पाप बुद्धि का पिता ) भी झुलसते हुए उस पेड़ के खोखले से बाहर निकलता है. उसे देखकर मुखिया और सभी लोग आश्चर्य चकित हो जाते हैं. और जब पूछा जाता है तो वह व्यक्ति अपनी सारी बात बताता है.
सभी बातों को सुनकर मुखिया उस पाप बुद्धि को उसी पेड़ पर लटकाने का आदेश देता है और वह मर जाता है. और सारा धन धर्म बुद्धि को वापिस मिल जाती है.
सिख:-बुरे कर्मों का नतीजा हमेशा बुरा ही होता है.
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