mastak par chakra : मस्तक पर चक्र – पंचतंत्र की कहानियां

char brahman: किसी नगर में चार ब्राम्हणों के पुत्र रहते थे. उनमें बचपन से ही गहरी मित्रता थी. वे गरीबी से परेशान होकर आपस में सलाह करने लगे कि–” यह गरीबी जीवन भी क्या जीवन है ? धिक्कार है ऐसे जीवन पर. “

इसलिए धन उपार्जन के लिए हमें विदेश जाना चाहिए.

यह सलाह करने के बाद वे चारों अपने नगर. भाई-बंधुओं से भरे अपने घर को छोड़ कर चल पड़े.

इस तरह घूमते हुए वह अवंती पहुंच गए. वहां सिप्रा नदी के जल में स्नान कर और महाकाल को प्राणाम करके जब वे चारों लौट रहे थे तभी अचानक भैरवानंद नामक सिद्ध योगी उनके सामने आ गए. वे चारों ब्राम्हण-विधि से उनका सम्मान करके उनके साथ आश्रम चले गए.

वहां उन्होंने उनसे पूछा–” वत्स ! तुम सब कहां से आ रहे हो ? कहां जा रहे हो ? और तुम्हारा आने का प्रयोजन क्या है ?

उन सबने कहा–” हे सिद्ध-पुरुष हम सब सिद्धियात्रिक हैं. हमारा सिर्फ एक ही संकल्प है किहम वहीं जायेंगे जहां या तो धन मिलेगा या मौत. “

इसलिए आप हमें धन पाने का कोई उपाय बताईये. सुना गया है कि आप में अपूर्व शक्ति है. भैरवानंद ने भी उनकी सफलता के लिए अनेक उपायों से चार सिद्ध बत्तियां बनाकर उन्हें दी और कहा–“हिमालय की ओर जाओ. वहां पहुंच-कर जहां बत्ती गिरे वहां बिना शक ख़जाना मिलेगा. वहां खोदकर तथा गड़ा धन लेकर सीधे वापस लौट आना. और धन की इच्छा मत करना. “

यह सुनकर वे चारों ब्राम्हण-पुत्र हिमालय की ओर चल पड़े.

जाते हुए कुछ दुरी पर उनमें से एक के हांथ से बत्ती गिर गई. उस जगह को खोदने से तांबे का खान मिला.

इस पर उसने अपने साथियों से कहा–“यहां से भरपूर तांबा ले लो और वापस चलो. “

दुसरे ने कहा–” अरे मूर्ख ! इससे क्या होगा ? बहुत सा तांबा भी हमारी गरीबी दूर नहीं कर सकेगा | इसलिए उठ हम आगे चलें. “

उसने कहा–” तुम सब जाओ मैं तो इतने से तांबे में ही खुश हूं. “

यह कहकर भरपूर मात्र में तांबा लेकर वापिस लौट गया.

और तीनो आगे चले.

थोड़ी दूर जाकर उनमें से एक और साथी के हाथ से बत्ती गिर गई. वहां पर खोदने से चांदी की खान मिली. वह प्रसन्न हो गया और अपने साथियों से कहा–” अरे ! यहां से ढेर सारा चांदी लेकर हमें लौट जाना चाहिए. “

इस पर उन दोनों ने कहा–” अरे तुम भी मुर्ख हो क्या ? पहले तांबे की खान मिली. और दूसरा चांदी की. क्या पता आगे सोने की खान मिले जिससे पाकर हमारी गरीबी हमेशा-हमेशा के लिए दूर हो जायेगी. “

उसने कहा–” जाना है तो तुम लोग जाओ. मैं तो यही चांदी को लेकर वापिस लौट जाऊंगा. यह कहकर वापिस लौट गया.

और वे दोनों आगे की ओर बड़ने लगे.

और थोड़ी ही देर में एक और के हाथ से बत्ती गिर गई. उसे खोदकर देखा तो उसमें ढेर सारा सोना पड़ा था. उसने सोने को देखकर अपने साथी से कहा–” यहां से भरपूर मात्रा में सोना ले लो. सोने से अच्छी कौन सी चीज हो सकती है ? “

उसके साथी ने कहा–“अरे मूर्ख ! क्या तू नहीं जानता कि पहले तांबा. दूसरा चांदी. और तीसरा सोंना मिला है. क्या पता आगे हीरे की खान मिल जाये जिससे हम पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा धनवान बन जायेंगे. इसलिए उठो और मेरे साथ चलो. “

उसके साथी ने कहा–” तुम जाना है तो जाओ मैं यही ढेर सारा सोना लेकर वापिस लौटता हूं. “

यह कहने के बाद उसका साथी वापिस लौट गया.

और वह अकेला आगे की ओर बड़ता चला गया. जाते-जाते बहुत दूर सूरज की गर्मी में तपते. पानी-प्यास से व्याकुल चलते जा रहा था. तभी कुछ दूर पर जाकर उसनें एक लहुलुहान शरीर वाले एक आदमीं को जिसके सर पर चक्र घूम रहा था. उसे देखा.

उसने जल्दी से उसके पास जाकर उससे पूछा–हे मित्र ! तू कौन है ? तेरे सर पर यह चक्र कैसा है जो गोल-गोल घूम रहा है. अगर कहीं पर पानी है तो बता. मुझे बहुत प्यास लगी है. “

उसके ऐसा कहने के तुरंत ही वह चक्र उसके सर को छोड़कर ब्राम्हण के सर पर आ गया.

ब्राम्हण ने कहा–” यह क्या हुआ ? ” उसने जवाब दिया–” मेरे सर पर भी वह ऐसे ही सवार हो गया था. “

ब्राम्हण ने कहा–” फिर यह मेरे सर से कैसे उतरेगा , मुझे बड़ी तखलीफ़ हो रही है. “

उसने जवाब दिया–” तेरी तरह जब कोई दूसरा सिध्दिवर्ति लेकर यहां आकर तुझसे बात करेगा तो उसके सर पर चला जाएगा. “

ब्राम्हण ने कहा–” तू यहां कितने दिनों तक था ? “

उसने जवाब दिया–“इस समय दुनिया में कौन राजा है ? “

ब्राम्हण ने कहा–” वीणावत्स राजा. “

उसने कहा–” कालसंख्या तो मैं नहीं जानता. पर जिस समय राम राज्य कर रहे थे उसी समय गरीबी से परेशान होकर सिद्धिवर्ति लेकर मैं इस रास्ते से आया था. वहां एक दुसरे आदमीं को सर पर चक्र लिए देखकर मैंने पूछा और इसीलिए मेरी यह दुर्दशा हुई थी.

ब्राम्हण ने कहा–” मित्र ! इस हालात में तुझे खाना-पीना कैसे मिलता था ? “

उसने कहा–” मित्र ! कुबेर देव ने अपना खजाना गायब होते देखकर सिद्धों को यह श्राप दी थी,इसलिए यहां कोई सिध्द नहीं आता. जो कभी आ जाता है तो वह भूख, प्यास, नींद, बुड़ापे और मृत्यु से अलग होकर केवल इसी तरह दुःख उठाता है. “

मित्र अब मुझे आज्ञा दीजिये मैं वर्षों के बाद छूट गया हूं. अब मैं अपने घर जाऊंगा.

यह कहकर वह चला गया.

और वह लालची ब्राम्हण वहीं कष्ट भोगने के लिए रह गया .

सिख-: लालच से मनुष्य अपने ही जीवन पर दुर्भाग्य को निमंत्रण देते हैं. जिससे अनेकों कष्ट का सामना करना पड़ता है. इसलिए हमें लालच कभी नहीं करनी चाहिए.

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