kekda aur kisan ki kahani: बहुत समय की बात है. एक किसान का बेटा कुछ काम से दुसरे गाँव जा रहा था. उस निर्जन रास्ते में अकेले कैसे चला जाये यह सोचकर उसने एक मटकी को एक लाठी में बांधकर अपने साथ ले चला.
जाते हुए कुछ दूरी पर उसे बीच रास्ते में एक केकड़ा दिखा. वह केकड़ा उस किसान के बेटे के पीछे-पीछे कर-कर करता हुआ उसके पीछे चला जा रहा था.
तभी किसान का बेटा उस केकड़े को कुछ दूरी पर रखकर उसे कहा–” हे केकड़े भाई ! तू मेरे साथ कहां जाएगा. मैं बहुत दूर जा रहा हूँ. तू थक जाएगा. इसलिए तू यहीं पर ठहर. ”
यह कहकर वह अपने रास्ते चला गया.
इस पर केकड़ा बोला–” हे मित्र ! राह में कोई साथी हो तो,राह आसानी से कट जाती है. इसलिए मुझे तू साथ ले चला. ”
उसकी बातों को सुनकर किसान का बेटा भी उसे मना नहीं कर पाया और कहा. चलो ठीक है आज इसे ही अपना साथी मानकर अपने साथ ले चलता हूँ.
यह कहकर उस केकड़े को अपने मटकी में रखकर आगे की ओर चला जाता है. निर्जन कठोर कांटो से भरे रास्ते में अपने पैर को बचते बचाते आगे की ओर चलता गया.
और कुछ ही समय में एक बड़ी सी जंगल में पहुँच गया. जहां एक सांप और कौआं का राज चलता था. जो भी इस जंगल में आता वह कभी वापिस नहीं लौटता था. वह सांप और कौआं उनको मारकर खा जाता था. इलसिए राजा ने पुरे राज्य में इसकी मुनादी करवायी थी कि कोई भी इस कौवें और सांप को मारेगा उसे अपनी राजपुत्री से विवाह कराएग. और साथ ही साथ राज्य के आधे हिस्से का मालिक भी बना देगा.
किसान के बेटे ने सोचा–” चलते-चलते मैं बहुत थक चूका हूँ इसलिए यहीं किसी पेड़ के नीचे विश्राम कर लेता हूँ. ”
यह सोचकर एक पेड़ के नीचे थोड़ी देर के लिए विश्राम करने लगा. और कब उसकी आँख लगी उसे पता ही नहीं चला. और ठीक उसी पेड़ पर उस सांप और कौवें का बसेरा था. किसान के बेटे को गहरी नींद में सोते देख सांप उसके पास गया और उसके पैर को काट दिया. जिससे उसकी तुरंत ही मौत हो गई.
कौआं भी पेड़ से उतरा और सांप से कहा–” सांप भाई ! तूने इसके पैरों को काँटा है. इसलिए पैरों की तरफ का हिस्सा तेरा होगा. और इसके सर की तरफ का हिस्सा मेरा होगा. ”
वह केकड़ा मटकी के अंदर से सांप और कौवें की बातें सुन रहा था. समयानुकूल देखकर केकड़ा मटकी से बाहर निकलकर सांप के गर्दन को धर दबोचा और कहा–” अरे दुष्ट सांप ! मेरे मित्र को तूने मारकर ठीक नहीं किया है. अगर अपनी जान बचाना चाहता है तो. शीघ्र मेरे मित्र को जीवित कर नहीं तो तू अपनी जान से हाथ धो बैठेगा. ”
सांप छटपटाने लगा उसकी एक भी न चली. यह देख कौवें का मुख सूख गया. किसान का लाठी भी मौका देख उस कौवें पर पड़ा जिससे कौवां अधमरा हो गया. तब सांप और कौवां उस केकड़े से विनती करने लगे कि,हे केकड़े भाई हमें क्षमा कर दो आज के बाद ऐसी गलती कभी नहीं करेंगे.
केकड़े ने कहा–” अरे दुष्टों ! जब अपनी प्राण संकट पे आती है तभी अपने रिश्ते-नाते याद आते हैं. तुझे क्षमा तब करूँगा जब तू मेरे मित्र को जीवित करेगा. ”
अपने प्राण संकट में देख सांप ने उसकी शर्ते को मंजूर किया. और तुरंत ही उसके शरीर से विष को बाहर निकाल दिया.
जैसे ही विष बाहर निकला किसान का बेटा जीवित हो गया.
और उठने के बाद कहा –” केकड़ा भाई मैंने सोते हुए बहुत देर कर दी चलो अब चलते हैं. ”
केकड़ा सारी बात किसान के बेटे को बताया.
इस पर उसने कहा–” केकड़ा भाई ! दुशमन को कैसी माफ़ी यह कहके सांप और कौवें को मारकर दोनों के सर को अपने गमछे में लपेट कर वहां से निकल पड़ा. उसी पास में गाय चराते हुए एक चरवाहा यह सब देख रहा था. और जैसे ही किसान का बेटा वहां से निकला. वह चरवाहा मृत सांप और कौवें को उठाकर राजा के पास राज दरबार चला गया.
और कहा–” हे महराज ! मैंने उस दुष्ट सांप और कौवें को मार दिया है.
यह कहकर उसने मृत सांप और कौवें को महराज के सामने रख देता है. ”
यह बात सुनकर पूरे राज-दरबार में उत्साह के बादल छा गया. कि आज उस अत्याचारी सांप और कौवां से मुक्ति मिल गई.
राजा ने कहा–” हमारी घोषणा का पालन हो ! राजकुमारी का विवाह इस वीर-पुरुष से करवा दी जाए. ”
राजा के हुक्म से राजकुमारी के विवाह की तैयारी शुरू कर दी गई. एक तो उस दुष्ट सांप और कौवां के मुक्ति से और दूसरी राजकुमारी के विवाह से पुरे राज्य में यह खबर आग की तरह फ़ैल गई. चारों तरफ ख़ुशी से उत्सव मनाने लगे. उस चरवाहे का गुणगान होने लगा. कि उसका विवाह एक राजकुमारी के साथ होगा. अब वह राजा का दमांद बन जाएगा. और आधा राज्य का मालिक भी. अब तो मानो उसके दुःख के दिन बीत गए. पूरे राज्य के छोटे-बड़े सभी लोग राजकुमारी के विवाह स्सम्मेलन में शामिल होने के लिए राजदरबार पहुँचने लगे.
घूमते-घूमते किसान का बेटा भी उस राज दरबार पर पहुँच गया. राज्य में हर्ष-उल्लास को देखकर उसने कुछ लोगों से पूछा कि यह कौन सा उत्सव मनाया जा रहा है ? सभी वही एक ही बात कह कह रहे थे. उस दुष्ट सांप और कौवें को उस चरवाहे ने मार डाला. इसलिए राजा की आज्ञानुसार राजकुमारी का विवाह उस चरवाहे के साथ होने की तैयारी हो रही है.
यह बात सुनकर किसान का बेटा आश्चर्य रह गया. कि सांप और कौवें को तो मैंने मारा है. फिर ये चरवाहा को कैसे पता चला.
फिर उसने कहा–” अरे भाई ! सांप और कौवें को तो मैंने मारा है. वह चरवाहा झूठ बोल रहा है. ”
यह बात एक कान से दुसरे कान तक होकर राज दरबार पहुँच गया. मंत्री ने राजा को बताया कि. एक परदेशी द्वार पर आया है. और कह रहा है. सांप और कौवें को मैंने मारा है.
राजा ने कहा–” अगर ऐसी बात है तो उस परदेशी को राज दरबार में हाजिर किया जाये और उस चरवाहे को भी बुलाया जाए.
राजा के आज्ञा से किसान के बेटे को और उस चरवाहे को भी राज दरबार में पेश किया गया.
राजा ने किसान के बेटे से कहा–” अगर तूने सांप और कौवें को मारा है तो सबूत पेश कर. ”
किसान का बेटा अपने गमछे में बंधे उस सांप और कौवें के सर को निकाल कर सामने रख दिया. उसे देखकर अब राजा भी अचंभित हो गया. कि सांप और कौवें को किसान के बेटे ने मारा है या चरवाहा.
अब राजा कुछ विचार-विमर्श करने लगा. और कहा–” मैं कैसे मान लूँ , की तूने ही मारा है , इसलिए कुछ गवाही पेश कर. ”
अब किसान का बेटा कहता है–” हे महराज ! इसका मेरे पास एक गवाह है. यह कहकर उसने अपने मटके से उस केकड़े को निकालता है और बगल में अपनी लाठी को रखता है.
उसकी गवाही देख राज-दरबार में सभी के सभी हंस पड़े. दरबार में सभी को हँसते देख केकड़े ने बारी-बारी से सभी बात बताई. केकड़ा की बात को सुनकर राजा का विश्वाश पक्का हो गया.
राजा ने अपने मंत्रियों से पूछा–” अब इस चरवाहे का क्या किया जाय ?
मंत्रियों ने कहा—” हे राजन ! इस चरवाहे को भी बोलने का मौका दिया जाए.
किन्तु चरवाहे के मुख से कुछ शब्द निकलता ही नहीं. क्योंकि जब सामने ही दूध का दूध और पानी का पानी हो गया. एक अपराधी की तरह सर नीचा करके चुपचाप खड़ा रहा.
यह देख राजा बिना कुछ कहे समझ जाता है. कि कौन सच है और कौन झूठ ?
और कहा–” इस चरवाहे ने हमसे धोखा किया है ,इसकी सजा इसे मिलनी चाहिए.
यह कहकर उस चरवाहे को बंदी बनाकर कारावास में डाल दिया गया. और किसान के बेटे को राजकुमारी के साथ विवाह कर आधे राज्य का मालिक बना दिया.
अब किसान का बेटा राजा का दमांद बनकर वहीँ राजमहल में रहने लगा. वहां की सुख सुविधा से उसे बिलकुल ही अच्छा नहीं लगता था. चोबीस घंटे बैठे-बैठे परेशान हो जाता था.
तभी उसने राजकुमारी से कहा–” मेरे पिताजी , कहते थे कि. हमेशा मेहनत करते हुए जीवन बिताना,बिना मेहनत करे भोजन नहीं करना. क्योंकि बिना मेहनत के भोजन करना पाप के बराबर होता है.
यह कहकर किसान का बेटा राजा के खेतों में काम करने के लिए चला गया. उसे खेतों में काम करते देख कुछ लोगों ने उसकी हंसी उड़ाने लगे. और कुछ लोग कहने लगे कि. मजदुर का बेटा है तो मजदूरी ही करेगा. यह बात राजा के पास पहुँच गई.
इस पर राजा ने उसे बुलाकर कहा–” पुत्र ! अब तू किसान का बेटा नहीं है. एक राजा का दमांद है. यह काम करना अब तुझे सोभा नहीं देता है. प्रजा जन इस बात पर तेरी उपहास उड़ाते हैं.
यह बात सुनकर किसान का बेटा कहता है–” हे महराज ! मुझे क्षमा करें. काम करना कोई अपराध नहीं है. मैं अपने खेत में मेहनत कर रहा हूँ. जब मैं राजा का दमांद होकर खेतों में काम करूँगा. तो प्रजा के मन में काम के प्रति आदर का भाव जगेगा. और कोई भी काम को छोटा-बड़ा नहीं समझेंगे. हमारे राज्य में धन दिन दुगुनी और रात चौगिनी हो जायेगी.
” और जिस राज्य के राजा मेहनत करते हैं , उस राज्य में कभी भूखमरी और आकाल नहीं होती है . “
अपने दमांद के विचारों को सुनकर राजा का मन प्रसन्न हो गया. और उसे अपने पूरे राज्य का उत्तराधिकारी बना दिया.
यह भी पढ़ें :
thanks for visit my site..