Hindi Kahani Sachhe Nyay Ki : सच्चे न्याय की कहानी हिन्दी में

Hindi Kahani: एक दिन काशी नरेश की महारानी अपनी दासियों के साथ वरुणा स्नान करने के लिए गयी थी. राजा की आज्ञानुसार उस समय नदी के तट पर किसी को जाने की अनुमति नहीं थी. नदी के पास जो झोपड़ियाँ थी. उनमें रहने वाले लोगों को भी राज-सेवकों ने वहां से हटा दिया था माघ का महीना था.

प्रातः काल नदी में स्नान करने के कारण रानी ठंड से कांपने लगी. उन्होंने इधर-उधर देखा किन्तु कहीं सुखी लकड़ियाँ नहीं दिखाई दी.

रानी ने दासी से कहा ‘इनमें से किसी एक झोपड़ी में आग लगा दे. मुझे ठंड लग रही है. ” 

दासी बोली, ” महारानी ! इन झोपड़ियों में या तो साधु-संत रहते होंगे या दीन परिवार के लोग. इस शीतकाल में झोपड़ा जल जाने पर वे कहाँ जायेंगे ? ”  

रानी जी का नाम तो करुणा था. किन्तु राज महलों के ऐश्वर्य में पली होने कारण उन्हें दीन-हीनो के कष्ट का कुछ अनुभव नहीं था.

उन्होंने क्रोधित होकर दूसरी दासी से कहा– ” यह बड़ी दयालु बनी है. इसे मेरे सामने से हटा दो और इस झोपडी में तुरंत आग लगा दो. “

रानी की आज्ञा का पालन हुआ. किन्तु एक झोपड़ी में लगी आग वायु के झोंके से इधर-उधर फ़ैल गयी और सब झोपड़े जल गए. रानी को ठंड दूर होने से बड़ी प्रशन्नता हुई. आग ताप कर वे राजभवन में पहुँचीं की उससे पूर्व जिनके झोपड़े जल गए थे. वे गरीब राजसभा में पहुँच गए थे. राजा ने जब उनका दुखड़ा सुना तो उनको बड़ा दुःख हुआ.

उन्होंने अंत:पुर में जाकर रानी से कहा — ” यह तुमने क्या किया, तुमने अपने लिए प्रजा के घर जलवा कर कितना अन्याय किया है. इसका कुछ ध्यान है तुन्हें ? “रानी अत्यंत रूपवती थीं. महराज उन्हें बहुत मानते थे. अपने रूप और अधिकार का रानी को बड़ा गर्व था.

वे बोली ” आप उन घांस के गंदे झोपड़ो को घर बता रहे है? वे तो फूंक देने ही योग्य थे. इसमें अन्याय की क्या बात है ? ” 

महराज ने कठोर मुद्रा में कहा —  ” न्याय सबके के लिए समान होता है. तुमने लोगों को कितना कष्ट दिया है. वे झोपड़े गरीबो के लिए कितने मूल्यवान है. यह तुम अब समझ जाओगी. ” 

महराज ने दासियों को आज्ञा दी– ” रानी के राजसी वस्त्र तथा आभूषण उतार लो. इन्हें एक फटा वस्त्र पहना कर राजसभा में ले आओ. ” 

रानी कुछ कहें इससे पहले महराज अंत:पुर से जा चुके थे. दासियों ने रजा की आज्ञा का पालन किया. एक भिखारिन के समान फटे वस्त्र पहने रानी जब राजसभा में उपस्थित की गयी. तब न्यायासन पर बैठे महाराज की न्याय घोषणा प्रजा ने सुनी.

वे कह रहे थे– ” जब तक मनुष्य स्वयं विपत्ति में नहीं पड़ता. दूसरों के कष्टों की व्यथा नहीं समझ सकता. “

रानी जी ! आपको राजभवन से निष्कासित किया जा रहा है. वे सब झोपड़े. जो जलवा दियें हैं. भिक्षा मांग कर जब आप बनवा देंगी. तभी राजभवन में आ सकेंगी.

तो दोस्तों ये थी  एक राजा की सच्ची न्याय की कहानी कैसे लगी आपको कमेंट में आप जरुर बताएं धन्यवाद.

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