jadui ghar : jadui ghar ki kahani- जादुई घर की कहानी

jadui ghar: बहुत समय की बात है एक गांव में श्यामू नाम का एक गरीब किसान रहता था. वह बड़ा ही मेहनती व्यक्ति था.

उसके परिवार में उसकी पत्नी और दो बच्चे रहते थे. उसकी पत्नी बड़ा ही घमंडी और आलसी किश्म की थी.

शादी के बाद घर का कोई भी काम अपने पति से करवाती थी. और खुद एक आईने के सामने बैठकर दिन-भर खुद को निहारती रहती थी. उसके बच्चे के थोड़ा बड़ा होने पर अब उनसे घर का सारा काम करवाती थी.

वह हमेशा चाहती थी कि मुझे बिना कोई काम करे सब कुछ मिल जाए.

तभी एक दिन श्यामू के पत्नी ने सपना देखा कि उसका एक बहुत बड़ा सा महल है उसके चारों ओर नौकर चाकर है और वो सिहासन पर बैठी हुक्म दे रही है. तभी अचानक छत से बारिश का पानी टपका जिससे उसकी नींद खुल गई और सारा सपना चकना चूर हो गया.

इस गुस्से में अपने पति को बहुत सुनाती है. और उसके जगह में जाकर सो जाती है.

यह सब देख श्यामू परेशान हो जाता मगर कुछ कह भी नहीं पाता.

समय गुजरता गया ,

तभी एक दिन श्यामू की पत्नी रात के समय अपने पति और बच्चों को छोड़कर घर से बाहर निकल जाती है.

वह जाते हुए बहुत दूर किसी जंगल में पहुँच जाती है. तभी उसे कुछ दूरी पर रात के घनघोर अंधेरे में एक चमकता हुआ प्रकाश दिखाई देती है. और जब वह पास जाकर देखती है तो उसे एक अज़ीब सा सोने का दरवाजा जादुई घर जैसा दिखाई देता है.

उसे देख घबरा जाती है फिर भी सोने के लालच में उस दरवाजे के अंदर चली जाती है. और जब अंदर पहुंचकर देखती है तो क्या नज़ारा दिखाई देता है मानो स्वर्ण लोक में आ गई हो.

वह देखती है कि एक जादुई जैसे घर में चारों ओर स्वर्ण और रत्न जड़ों से फलों जैसे लदे हुए पेड़ दिखाई दी.

वह सब देख फूली न समाई रही थी. अपने आप को उस स्वर्ण लोक की महारानी समझने लगी और सोचने लगी कि मैं इस लोक की महरानी हूं और मेरे सैकड़ों दासियां हैं , और मैं एक बड़े सिहांसन पर बैठी राज कर रही हूं.

यह सब सोचना हुआ कि सच में उसके सामने सैकड़ों दासियां प्रकट हो गई. और एक बड़ी सी सिहांसन पर राज करने रही हूं. उसके जाने बाद उसका पति और बच्चे बहुत दुःख हुए बहुत ढूढ़ने की कोशिश किये मगर ढूढ़ नहीं पाए. इधर श्यामू की पत्नी महरानी बनकर ऐसो आराम की जिंदगी व्यतीत कर रही थी.

तभी एक दिन आकाश मार्ग से एक व्यक्ति आया और उसे कहा — ” अब तुम्हारा समय ख़त्म हुआ ! अब तुम्हें नर्क लोक जाना है. ”

यह सुन श्यामू की पत्नी डर गई और कहने लगी — ” क्या ? मैं अभी तक मरी नहीं हूं , और तुम कहते हो कि मैं नर्क लोक जाऊं. तुम होते कौन हो जो मुझे नर्क लोक ले जाने की बात करते हो. ”

वह आदमी हंसते हुए कहता है — ” मैं स्वयं मृत्यु के देवता यमराज हूं ! किसने कहा कि तुम जिन्दा हो ! तुम तो कब की मर चुकी हो , देखो तुम्हारा मृत शरीर इस महल के द्वार जंगल में किस तरह से पड़ा हुआ है.

यह कोई जादुई घर नहीं है और न ही कोई स्वर्ण लोक यह मृत्यु का दरवाजा है | जिससे तुमने अपने लोभवश स्वयं चुना है.

इसलिए तुम्हें अब नर्क लोक जाना ही पड़ेगा. ”

श्यामू की पत्नी अपनी मृत शरीर देख बहुत रोई और गिडगिडाते हुए उनसे विनती करने लगी — ” मुझे क्षमा करें भगवन ! मैं लालची और पापिनी हूं ,मैं अपने पति और बच्चे को छोड़कर आई हूं. मुझे अपने पापों का प्रायश्चित करने दो मुझे अपने परिवार के पास जाने दो उनके साथ मैंने बहुत अन्याय किया है ,

अब मेरी आँखे खुल गई. आज से मैं कभी लालच नहीं करूंगी. लालच से सिर्फ धन और मृत्यु ही मिलता है परिवार का सुख और शांति नहीं मिलती है. मुझे क्षमा करें देव ! ”

यमराज उसकी बात को स्वीकार कर उसे कहते हैं — ” ठीक है  ! तुम्हारी पति ने धर्म और कर्म से नित्य मेरी पूजा अर्चना की है !

इसलिए उसका फल आज मैं तुम्हें दे रहा हूं. ”

यह कहकर यमराज देवता उसे छोड़ देते हैं.

अब श्यामू की पत्नी झट से अपने परिवार के पास चली जाती है और अपने पति के पैरों पर गिरकर क्षमा मांगती हैं. और जंगल का सारा वृत्तांत उनको सुनाती है.

श्यामू अपनी पत्नी को माफ़ कर देता है.

उसके बाद श्यामू और उसका परिवार सुख से जीवन व्यतीत करते हैं .

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