siyar aur hiran ki kahani: बहुत समय की बात है. एक बार जब हिरन और सियार पानी की तालाश में इधर-उधर भटक रहे थे.
तभी कुछ दुरी पर उन्होंने एक कुंवा देखा. और जब पानी पीने के लिए कुंवे के पास गए.
तब चतुर सियार हिरन को कहता है–” मित्र ! पहले मैं नीचे से लटककर पानी पी लेता हूँ. बाद में तुम पी लेना. ”
यह कहकर सियार हिरन की पूंछ को पकड़ते हुए कुंवे की ओर झुककर पानी पी लेता है.
उसके पानी पीने के बाद अब हिरन की बारी आई.जब हिरन अपनी पूंछ को सियार के हांथों पकड़ा कर पानी पीने के लिए नीचे की ओर झुका. तभी वह चतुर सियार आव देखा न ताव उसे ( हिरन को ) कुंवे में ढकेल दिया.
हिरन बेचारा कुंवे में धड़ाम से गिर गया. कुंवे के बगल में ही एक मटर का खेत था. जिसमें कुछ किसान लोग काम कर रहे थे.
सियार उनके पास गया. और कहा–” किसान भाईयों उस कुंवे में एक हिरन गिर गया है. ”
उसकी बात सुनकर किसान कुंवे के पास गए. और उसमें से हिरन को बड़ी मुश्किल से निकाले. हिरन बेचारा तो मर चुका था. इसलिए किसानों ने उसे थोड़ी दूर ले जाकर छोटे-छोटे टुकड़े में काटने लगे.
यह देख सियार उनके पास गया और कहा–” हे किसान भाईयों ! मुझे भी हिरन का कुछ हिस्सा मिल पायेगा क्या ? ”
सियार की बातों को सुनकर किसान कहने लगे–” बड़ी मेहनत करके हम लोगो ने इस हिरन को कुंवे से निकाला है. इसलिए यह हिरन का मांश सिर्फ हमारा है. ”
सियार फिर दुबारा कहता है–” मित्रों ! इस हिरन की खबर तो मैंने दी थी ” इसलिए कुछ हिस्सा मुझे भी मिलना चाहिए. ”
किसान लोग उसे यह कहते हुए इनकार कर देते हैं कि– ” जो करे काम , वो खाए आम. ”
अब सियार उनकी बातों को समझ गया कि. अब ये लोग तो मुझे कुछ देने वाले नहीं हैं.
यह सोचकर उसने कहा–” ठीक है भाइयों ! अगर मुझे हिरन का मांश नहीं देना चाहते हो तो मत दो. जैसी आप लोगों की मर्जी लेकिन इस आग के कुछ टुकड़े तो दे दो. मुझे ठण्ड लग रही है. थोड़ा सा आग ताप लूँगा. ”
किसान लोग उस सियार को आग के टुकड़े दे देते हैं. अब वह चतुर सियार आग के टुकड़े को ले जाकर किसानों के मटर वाले खेत में फेक देता है,जिससे पूरा मटर का खेत जलने लगता है.
यह देख किसान लोग उसे बुझाने के लिए खेतों की ओर भागते हैं.
जैसे ही किसान हिरन की मांश को छोड़कर जाते हैं . सियार सभी मांश को भरपेट खाता है .
सिख:- अपनी बुद्धिमानी और चतुराई से कुछ भी हासिल किया जा सकता है.
यह भी पढ़ें –