hanuman chalisa : दोस्तों आज हम पढ़ने वाले हैं धर्म से संबधित हनुमान चालीसा के बारे में. हनुमान चालीसा ( hanuman chalisa in hindi ) की रचना गोस्वामी तुलसी दास ने १६ वीं शताब्दी के लगभग की थी.
कहते हैं हनुमान जी आज भी इस कलियुग में कहीं न कहीं निवास करते हैं.
जब भी भगवान श्री राम की पूजा आराधना या रामायण कथा होती है वहां अवश्य ही हनुमान जी पहुंचते हैं.
वैसे तो हम इस कलियुग में भगवान हरि का नाम मात्र लेने से भी मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं ऐसा माना जाता है. मगर वेद और शास्त्रों की माने तो भगवान की विधि-विधान से किया गया पूजा कभी असफल नहीं होता.
भगवान की विधि-विधान से अगर पूजा की जाए तो वे अवश्य ही प्रसन्न होते हैं.
और माना जाता है कि भगवान हनुमान जी की १०० बार चालीसा पाठ पढ़ने से उनके सभी प्रकार के दुःख दूर हो जाते हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है.
इसलिए आज के इस पोस्ट में हमने इसी बात को ध्यान में रखते हुए श्री हनुमान जी की हनुमान चालीसा ( full hanuman chalisa ) लेकर आयें हैं. ताकि आप इस हनुमान चालीसा को पड़कर पूर्ण विधि-विधान से अपना पूजन सम्पूर्ण कर सकें.
हनुमान चालीसा को मुख्यत: दो भागों में बांटा गया है पहले दोहा के रूप में और दूसरा चौपाई के रूप में.
इसके शुरुवात में दोहा पढ़ा जाता है बीच में चौपाई और अंतिम में दोहा पढ़ा जाता है.
श्री हनुमान चालीसा पाठ :
दोहा:
श्रीगुरु चरन सरोज रज , निज मनु मुकरु सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु , जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके,सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार।।
चौपाई :
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।।
राम दूत अतुलित बल धामा।
अंजनी पुत्र पवनसुत नामा।।
महाबीर विक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुँचित केसा।।
हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे।
काँधे मूँज जनेऊ साजे।।
शंकर सुवन केसरी नंदन।
तेज प्रताप महा जगवंदन।।
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मनबसिया।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा।
विकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र जी के काज सवाँरे।।
लाय सजीवन लखन जियाए।
श्री रघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपति किन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावै।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावै।।
सनकादिक ब्रम्हादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहिसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
तुम्हरो मंत्र विभीषण माना।
लंकेश्वर भये सब जग जाना।।
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फ़ल जानू।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही।
जलधि लाँघी गए अचरज नाही।।
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डरना।।
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक ते कापैं।।
भूत पिशाच निकट नहीं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।
नासै रोग हरे सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा।।
संकट ते हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै।।
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिनके काज सकल तुम साजा।।
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोई अमित जीवन फल पावै।।
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।
साधू संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे।।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम-जनम के दुःख बिसरावै।।
अंतकाल रघुवरपुर जाई।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई।।
और देवता चित्त ना धरई।
सेई सर्व सुख करई।।
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
जै जै जै हनुमान गुसांई।
कृपा करहु गुरु देव की नाई।।
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई।।
जो यह पढ़े हनुमान चालीसा।।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ ह्रदय मंह डेरा।।
दोहा :
पवन तनय संकट हरन , मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित , ह्रदय बसहु सुर भूप।।
जय श्री राम । जय हनुमान
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