Geet Chaturvedi : geet chaturvedi quotes

Geet Chaturvedi – गीत चतुर्वेदी 27 नवंबर 1977 को मुंबई में जन्में भारत के एक प्रसिद्ध कवि लेखकार एवं साहित्यकारों में से एक हैं ,गीत चतुर्वेदी जी एक बहुत ही सरल स्वभाव के व्यक्ति हैं, और कहते है कि अक्सर वे अपने दोस्त परिवार और किताबों के बीच रहना अच्छा लगता है, और जब भी खली समय मिल जाता तो वे पेड़ पौधों की सेवा में जुट जाते हैं.

उन्होंने लगभग ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित की है जिनमें दो उपन्यास संग्रह और तीन कविता संग्रह शामिल है. उनकी पुस्तकें ‘ न्यूनतम मैं ‘ और ‘ खुशियों के गुप्तचर ‘ कट्टर साहित्य होते भी अच्छी बिक्री की सूचि में शामिल है. साहित्य, सिनेमा और संगीत पर उनके प्रसिद्धनिबंधों को ‘ टेबल लैम्प’ और ‘अधूरी चीजों का देवता ‘ में संगृहीत किया गया है. वह एक गीतकार , पटकथा लेखक, आलोचक और संपादक भी हैं.

कविता के लिए, गीत भारत अग्रवाल पुरस्कार , स्पंदन कृति सम्मान और वाग्धारा नवरत्न सम्मान के प्राप्तकर्ता हैं. कथा साहित्य के लिए उन्हें कृष्ण प्रताप कथा पुरष्कार, शेलेश मटियानी पुरस्कार , कृष्ण बलदेव वैद फैलोशिप और सैयद हैदर रजा फैलोशिप मिल चुकी है. उन्हें इंडियन एक्सप्रेस सहित कई साहित्य सहित साहित्यिक मंचो और प्रकशनों द्वारा सर्वश्रेठ भारतीय लेखकों में से एक माना जाता है.

गीत चतुर्वेदी कि रचनाओं का 22 भाषाओँ में अनुवाद किया गया है. 2019 में, अंग्रेजी अनुवाद में उनकी कविताओं की पुस्तक ‘द मेमोरी ऑफ़ नाउ’ यूएसए में प्रकशित हुई थी. अनिता गोपालन द्वारा अनुदित उनके उपन्यास ‘सिमसिम’ के अंग्रजी अनुवाद को पेन अमेरिका द्वारा ‘पेन-हीम ट्रांसलेशन ग्रांट’ से समानित किया गया . गीत भोपाल,भारत में रहती है. यहाँ पर हमने कुछ चुनेंदे कविता का उल्लेखित किया है.

Geet Chaturvedi : geet chaturvedi quotes


कविता संग्रह का नाम
आलाप में गिरह
न्यूनतम मैं
खुशियों के गुप्तचर
लेखक का नामगीत चतुर्वेदी

नीम का पौंधा/आलाप में गिरह

यह नीम का पौधा है
जिसे झुक कर
और झुक कर देखो
तो नीम का पेड़ लगेगा
और झुको, थोड़ा और
मिट्टी की देह बन जाओ
तुम इसकी छांह महसूस कर सकोगे

इसे एक छोटी बच्ची ने पानी दे-देकर सींचा है
इसकी हरी पतीयों में वह कडुवाहट है जो
जुबान को मीठे का महत्त्व समझाती है
जिन लोगों को उंचाई से डर लगता है
वे आएं और इसकी लघुता से साहस पाएँ..

आलाप में गिरह/आलाप में गिरह

जाने कितनी बार टूटी लय
जाने कितनी बार जोड़े सुर
हर आलाप में गिरह पड़ी है

कभी दौड़ पड़े तो थकान नहीं
और कभी बैठे-बैठे ही ढह गए
मुक़ाबले में इस तरह उतरे कि अगले को दया आ गई
और उसने खुद को ख़ारिज कर लिया
थोड़ी-सी हँसी चुराई
सबने कहा छोड़ो भी

और हमने छोड़ दिया..

काया/आलाप में गिरह

तुम इतनी देर तक घूरते रहे अंधेरे को
कि तुम्हारी पुतलियों का रंग काला हो गया
किताबों को ओढा इस तरह
कि शरीर कागज़ हो गया

कहते रहे मौत आए तो इस तरह
जैसे पानी को आती है
वह बदल जाता है भाप में
आती है पेड़ को
वह दरवाज़ा बन जाता है
जैसे आती है आग को
वह राख बन जाती है

तुम गाय का थान बन जाना
दूध बनकर बरसना
भाप बनकर चलाना बड़े-बड़े इंजन
भात पकाना
जिस रास्ते को हमेशा बंद रहने का शाप मिला
उस पर दरवाजा बंनकर खुलना
राख से मांजना बीमार माँ की पलंग के नीचे रखे बासन

तुम एक तीली जलाना
उसे देर तक घूरना…

प्रेम कविता/आलाप में गिरह

आत्महत्या का बेहतरीन तरीका होता है
इच्छा की फ़िक्र किए बिना जीते चले जाना
पांच हजार वर्ष से ज्यादा हो चुकी है मेरी आयु
अदालत में अब तक लंबित है मेरा मुक़दमा
सुनवाई के इंतजार से बड़ी सजा और क्या

बेतहाशा दुखती है कलाई के ऊपर एक नस
ह्रदय में उस कृत्य के लिए क्षमा उमड़ती है
जिसे मेरे अलावा बाक़ी सब ने अपराध माना

संविधान की क़िताब में इस पर कोई अनुच्छेद नहीं..

समाधि/न्यूनतम मैं

मेरे भीतर समाधिस्थ हैं
सत्रह के नारे
सैंतालिस की त्रासदी
पचहत्तर की चुप्पियां
और नब्बे के उदार प्रहार
घूंघट काढ़े कुछ औरतें आती है
और मेरे आगे दिया बाल जाती है

गहरी नींद में डूबा एक समाज
जागने का स्वप्न देखते हुए
कुनमुनाता है

गर्मी की दुपहरी बिजली कट गई
एक विचारधारा पैताने बैठ
उसे पंखा झलती है

न नींद टूटती है न भरम टूटते हैं.

दूध के दांत/न्यूनतम मैं

देह का कपड़ा
देह की गर्मी से
देह पर ही सूखता है

मैंने जिन-जिन जगहों पे गाड़े थे अपने दूध के दांत
वहां अब बड़े-खड़े पेड़ लहलहाते हैं

दूध का सफ़ेद
तनों के कत्थई और पत्तों के हरे में
लौटता है

जैसे लौटकर आता है कर्मा
जैसे लौटकर आता है प्रेम
जैसे विस्मृति में भी लौटकर आती है
कहीं सुनी गई कोई धुन
बचपन कि मासूमियत बुढ़ापे के
सन्निपात मन लौटकर आती है

भीतर किसी खोह में छुपी रहती है
तमाम मौन के बाद भी
लौट आने को तत्पर रहती है हिंसा

लोगों का मन खोलकर देखने की सुविधा मिले
तो हर कोई विश्वासघाती निकले
सच तो यह है
कि अनुवाद में वफादारी कहीं आसान है
किसी गूढ़ार्थ के अनुवाद में बेवफाई हो जाए
तो नकचढ़ी कविता नाता नहीं तोड़ लेती

मेरे भीतर पुरखों जैसे शांति है
समकालीनों जैसे भय
लताओं की तरह चढ़ता है अफ़सोस मेरे बदन पर
अधपके अमरुद पेड़ से झरते हैं

मैं जो लिखता हूँ
वह एक बच्चे की अंजुलियों से रिसता हुआ पानी है..

खुशियों के गुप्तचर/खुशियों के गुप्तचर

एक पीली खिड़की इस तरह खुलती है
जैसे खुल रही हों किसी फुल की पंखुड़ियाँ

एक चिड़िया पिंजरे की सलाखों को ऐसे कुतरती है
जैसे चुग रही हो अपने खेत में धान की बालियाँ

मेरे कुछ सपने अब सूख गए हैं
इन दिनों उनसे अलाव जलाता हूँ

और जो सपने हरे हैं
उन्हें बटोर कर एक बकरी की भूख मिटाता हूँ

मेरी भाषा का सबसे बूढ़ा कवि लाइब्रेरी से लाया है मोटी किताबें
चौराहे पर बैठे सोने की अशर्फियों की तरह बाँटता है शब्द

मेरे पड़ोस की बुढ़िया ने ईजाद किया है एक यंत्र जिसमें आंसू डालो
तो पीने लायक़ पानी अलग हो जाता है, खाने लायक़ नमक अलग.

एक माँ इतने ममत्व से देखती है अपनी संतान को
कि उसके दूध की धार से बहने लगती है कई नदियाँ
जो धरती पर बिखरे रक्त के गहरे लाल रंग को
प्रेम के हलके गुलाबी रंग में बदल देती है..

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