garud puran: गरुड़ पुराड़ को अठ्ठारह पुराणों में से एक श्रेष्ठ पुराण माना जाता है.
इस पुराण के अनुसार तरह-तरह के पाप करने वाले को अलग-अलग प्रकार के नर्क में भेजा जाता है ,जहां उन्हें तरह-तरह के यातनाएं दी जाती है.
वैसे तो गरुड़ पुराण में मरने के बाद की ज्यादात्तर व्याख्या की गई है , इसलिए इसे पहले से ही जानना उचित होगा ताकि बाद में घोर कष्टों का सामना न करना पढ़े.
गरुड़ पुराड़ के अनुसार हजारों नर्क है, मगर यहां पर हम कुछ मुख्य-मुख्य नरकों के बारें में पढेंगे.
१. रौरव नर्क: यह नर्क अन्य सभी की अपेक्षा प्रधान है. झूठी गवाही देनेवाला और झूठ बोलनेवाला व्यक्ति रौरव नर्क में जाता है. जांघ भर की गहराई में वहां दुस्तर गड्डा है. दहकते हुए अंगारों से भरा हुआ वह गड्डा पृथ्वी के समान (समतल भूमि-जैसा) दीखता है. तीव्र अग्नि से वहां की भूमि भी दहकती रहती है. उसमें यम के दूत पापियों को धकेल देते हैं.
उस जलती हुई अग्नि से संतप्त होकर पापी उसी में इधर-उधर भागता-फिरता है. उसके पैर में छाले पड़ जाते हैं , जो जो फूटकर बहने लगते हैं. रात-दिन वह पापी वहां पैर उठा-उठाकर चलता है.
इस प्रकार वह जब हजार योजन उस नर्क का विस्तार पार कर लेता है , तब उसे पाप की शुध्दि के लिए उसी प्रकार के दुसरे नर्क में भेजा जाता है.
२. महारौरव नर्क: यह नर्क पांच हजार योजन में फैला हुआ है. वहां की भूमि ताँबे के समान वर्णवाली है. उसके नीचे अग्नि जलती रहती है. वह भूमि विधुत-प्रभा के समान कान्तिमान है. देखने में वह पापिजनों को महाभयंकर प्रतीत होती है.
यमदूत पापी व्यक्ति हाथ-पैर बांधकर उसे उसी में लुढ़का देते हैं और वह लुढ़कता हुआ उसमें चलता है. मार्ग में कौआ, बगुला,भेड़िया,उलूक,मच्छर और बिच्छू आदि जीव-जंतु क्रोधातुर होकर उसे खाने के लिये तत्पर रहते हैं. वह उस जलती हुई भूमि एवं भयंकर जिव-जंतुओं के आक्रमण से इतना सतंप्त हो जाता है कि उसकी बुद्धि ही भ्रष्ट हो जाती है.
वह घबराकर चिल्लाने लगता है तथा बार-बार उस कष्ट से बेचैन हो उठता है. उसको वहां कहीं पर भी शांति नहीं प्राप्त होती है.
इस प्रकार उस नर्क लोक के कष्टों को भोगते हुए पापी के जब हजारों वर्ष बीत जाते हैं , तब कहीं जाकर उस पापी को मुक्ति मिलती है.
३. अतिशीत नर्क : यह नर्क स्वभावतः अत्यंत शीतल है. महाभैरव नर्क के समान ही उसका भी विस्तार बहुत लंबा है. वह गहन अंधकार से व्याप्त रहता है. असम्हा कष्ट देने वाले यमदूतों के द्वारा पापीजन लाकर यहां बाँध दिए जाते हैं.
अतः वे एक दुसरे का आलिंगन करके वहां की भयंकर ठण्ड से बचने का प्रयास करते हैं. उनके दांतों में कटकटाहट होने लगती है. उनका शरीर वहां की उस ठण्ड से काँपने लगता है. वहां भूख-प्यास बहुत अधिक लगती है.
इसके अतिरिक्त भी अनेक कष्टों का सामना उन्हें वहां करना पड़ता है. वहां हिमखंड का वहन करने वाली वायु चलती है, जो शरीर की हड्डियों को तोड़ देती है.
वहां के प्राणी भूख से त्रस्त होकर मज्जा,रक्त और गल रही हड्डियों को खाते हैं. परस्पर भेंट होने पर वे सभी पापी एक-दुसरे का आलिंगन कर भ्रमण करते रहते हैं.
इस प्रकार उस तमसावृत नर्क में मनुष्य बहुत से कष्ट झेलने पड़ते हैं.
४. निकृन्तन नर्क : जो व्यक्ति अन्याय असंख्य पाप करता है , वह निकृन्तन नामक प्रसिद्ध नर्क में जाता है. वहां अनवरत कुम्भकारक के चक्र के समान चक्र चलते रहते हैं.
जिनके ऊपर पापीजनों को खड़ा करके यमके अनुचरों के द्वारा अंगुली में स्थित कालसूत्र से उनके शरीर को पैर से लेकर शिरो भाग तक छेदा जाता है. फिर भी उनका प्राणांत नहीं होता.
इसमें शरीर के सैकड़ों भाग टूट-टूट कर छिन्न-भिन्न हो जाते हैं और पुनः इकठ्ठे हो जाते हैं.
इस प्रकार यमदूत पाप कर्मियों को वहां हजारों वर्ष तक चक्कर लगवाते रहते हैं. जब सभी पापों का विनाश हो जाता है , तब कहीं जाकर उन्हें उस नर्क से मुक्ति प्राप्त होती है.
५. अप्रतिष्ठ नर्क : यह नर्क सभी नरकों में से एक प्रसिद्ध नर्क है. वहां जाने वाले प्राणी असम्हा दुःख का भोग भोगते हैं. वहां पापकर्मियों के दुःख हेतु भूत चक्र और रहट लगे रहते हैं.
जब तक हजारों वर्ष पूरे नहीं हो जाते , तब तक वह रुकता नहीं.
जो लोग उस चक्र पर बाँध जाते हैं , वे जल के घटकी भांति उस पर घूमते रहते हैं. पुनः रक्त का वमन करते हुए उनकी आंते मुख की और से बाहर आ जाती है , और नेत्र आँतों में घुस जाते हैं.
प्राणियों को जो दुःख प्राप्त होते हैं, वे बड़े ही कष्टकारी हैं.
६. असिपत्रवन नर्क : यह नर्क एक हजार योजन में फैला हुआ है. इसकी सम्पूर्ण भूमि अग्नि से व्याप्त होने के कारण अहर्निश जलती रहती है.
इस भयंकर नर्क में सात-सात सूर्य अपनी सहस्त्र-सहस्त्र रश्मियों के साथ सदैव तपते रहते हैं, जिनके संताप से वहां के पापी हर क्षण जलते ही रहते हैं. इसी नरक के मध्य एक चौथाई भाग में “शीतस्निग्धपत्र” नामक वन है.
उसमें वृक्षों से टूटकर गिरे फल और पत्तों के ढेर लगे रहते हैं. मांसाहारी बलवान कुत्ते उसमें विचरण करते रहते हैं. वे बड़े-बड़े मुखवाले , बड़े-बड़े दांतोवाले तथा व्याघ्र की तरह महाबलवान है. अत्यंत शीत एवं छाया से व्याप्त उस नर्क को देखकर भूख-प्यास से पीड़ित प्राणी दुखी होकर करूँ कंदन करते हुए वहां जाते हैं.
ताप से तपती हुई पृथ्वी की अग्नि से पापियों के दोनों पैर जल जाते हैं , अत्यंत शीतल वायु बहने लगती हैं, जिसके कारण उन पापियों के ऊपर तलवार के समान युक्त धारवाले पत्ते गिरते हैं.
जलते हुए अग्नि समूह से युक्त भूमि में पापीजन छिन्न-भिन्न होकर गिरते हैं. उसी समय वहां के रहने वाले कुत्तों का आक्रमण भी उन पापियों पर होने लगता है. शीघ्र ही वे कुत्ते रोते हुए उन पापियों के शरीर के मांस को खण्ड-खण्ड करके खा जाते हैं.
७. तप्तकुम्भ नर्क : इस नर्क में चारों ओर फैले हुए अग्नि प्रज्वलित रहती है, वे उबलते हुए तेल और लौह के चूर्ण से भरे रहते हैं. पापियों को ले जाकर उन्हीं आंधे मुख डाल दिया जाता है. गलती हुई मज्जारूपी जल से युक्त उसी में फूटते हुए पापियों को काढ़ा के समान बना दिए जाते हैं.
उसके पश्चात भयंकर यमदूत नुकीले हथियारों से उन पापियों की खोपड़ी, आँखों तथा हड्डियों को छेद-छेदकर नष्ट करते हैं.
गिद्ध बड़ी तेजी वहां आकर उनपर झपटा मारते हैं. उन उबलते हुए पापियों को अपनी चोंच से खींचते हैं और फिर उसी में छोड़ देते हैं.
उसके बाद यमदूत उन पापियों के सिर,स्नायु,द्रवीभूत मांस,त्वचा आदि को जल्दी-जल्दी करछुल से उसी तेल में घुमाते हुए उन महापापियों को काढ़ा बना डालते हैं.
इस प्रकार से ये सात प्रसिद्ध नर्क कहलाते हैं, जिनमें पापियों को तरह-तरह के कष्ट देकर उनको दंड दिया जाता है.
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