frog and snake: किसी जंगल में एक बहुत बड़ा कुआं था. जिसमें बहुत से मेढक रहते थे. उन मेढकों का राजा गंगदत्त भी उसी कुएं में रहता था.
वह बड़ा ही घमंडी और झगड़ालू स्वभाव का था आये दिन किसी न किसी से झगड़ता रहता था.
इसलिए उसके घर वाले ( पत्नी को छोड़कर )और रिश्तेदार वालों ने भी उसको छोड़ दिया था. इस बात से परेशान होकर उसने बदला लेने की सोची. मगर वह अकेला रहने के कारण उनको मार नहीं सकता था.
इस तरह से हर दिन कुछ न कुछ योजना बनाता रहता था. मगर उसका कोई भी योजना काम नहीं आता था.
एक दिन वह मेढक उस कुवें में लटकी हुई एक पेड़ की तना से बाहर निकला. और वह बगल वाले कुवें के पास गया. उसने फुदकते हुए एक मेढक को देखा और कहा–“मित्र ! क्या तुम मेरी मदद करोगे. मेरे परिवार और रिश्तेदार वाले मुझे बहुत इर्ष्या और घृणा करते हैं. इसलिए उनको मारना है.
वह इस मेढक को भली-भांति जानता था कि. कौन सही है और कौन गलत ? ” उसके बातों को अनसुना कर वह अपने कुवें में चला गया.
अब वह घमंडी मेढक गुस्से में और आग बगुला हो गया. उसके बाद घूमते हुए एक सांप को अपने बिल में जाते हुए देखा और उसके पास जाकर कहने लगा–“मित्र ! क्या तुम मेरी मदद करोगे ? ”
सांप ने कहा–” अरे मेढक ! तुम जानते हो हम दोनों स्वाभाविक रूप से दुश्मन हैं फिर भी तुम मेरे पास मदद के लिए आये हो. अगर खा गया तो ? ”
मेंढक कहता है–” मित्र ! मेरे अपने ही शत्रु बन गए हैं तो दुसरे शत्रु से डरना कैसा ? ” इसलिए आपके पास मदद लिए आया हूं.
वह सांप लालचवश मन ही मन सोचने लगा –” अरे ! मेरा सौभाग्य है जो आज स्वयं शिकार चलकर मेरे पास आया है.
मेढक कहता है–” क्या हुआ मित्र ! क्या सोच रहे हो ? ”
सांप कहता है –” कुछ नहीं ! अगर तुम मुझे मित्र कहते हो तो बताओ कैसी मदद चाहिए तुम्हे ?”
मेढक कहता है–” मित्र ! मेरे अपने सगे मुझे बहुत इर्ष्या करते हैं और अपना शत्रु मानते हैं. इसलिए मेरे साथ चलो और उन्हें मारने में मेरी मदद करो. ”
सांप कहता है–“मगर मैं एक सांप बिन पैर वाला उस कुवें में कैसे जाऊं ? और पानी में से मेढकों को पकडूं कैसे ? ”
मेढक कहता है–” मित्र इसकी तुम चिंता मत करो. मैं एक राजा हूँ. और सभी रास्ते को देखा है मैंने. अंदर जाने के लिए एक ख़ुफ़िया सुरंग हैं जिसमें तुम्हे ले जाऊँगा और उसके बगल में एक छोटा सा बिल हैं वही पर तुम रहना. और मैं जब तक न कहूं. तुम बाहर नहीं निकलना. “
वह सांप उसके सब शर्तो को मान लिया और दोनों रात के अँधेरे में उस कुवें की ओर निकल गये. जैसे मेढक ने कहा था. ठीक उसी प्रकार उस सुरंग के रास्ते से जाकर वह सांप उस बिल में छुप गया.
और दुसरे दिन मेढक ने अपने सारे दुश्मनों को उस सांप को बताया वह सांप सभी मेढकों को एक सप्ताह तक एक-एक करके खाने लगा. गंगदत्त के सारे दुश्मन अब ख़त्म हो गये.
फिर सांप ने कहा–” मित्र ! और मेढक लाओ. मुझे अब रोज खाने की आदत हो गई. नहीं मिला तो मुझे नींद नहीं आती है.
वह गंगदत्त मेढक घबरा गया और कहा–” अरे ! मैंने यह क्या कर दिया ? मुसीबत को अपने ही घर बुला ले आया. यह तो और मेढकों की मांग कर रहा है. ”
वह सांप दुबारा चिल्लाने लगा और कहा–” क्या हुआ ? अभी तक मेरा भोजन क्यों नहीं आया ? ”
वह मेढक आया और कहा–” मित्र ! मेरे सभी शत्रु तो समाप्त हो गये. इसलिए इस कुवें के अन्य मेढक को रोज एक-एक करके भेजूंगा.
उसके बाद वह मेढक अपने कुवें के अन्य मेढकों को बहला फुसलाकर एक-एक करके रोज उसके सामने ले आता. और वह सांप मेढकों को चाव से खाता और डकार लेता.
कुछ दिन बाद सारे मेढक समाप्त हो गये ,सिवाय गंगदत्त मेढक और उसकी पत्नी के.
दुसरे दिन वह सांप अपने बिल से निकलकर कहता है–” अरे मेढक के बच्चे ! कहा हैं मेरा भोजन ? जल्दी से लाओ.
मेढक कहता है–” मित्र सब मेढक तो खत्म हो गये हैं इसलिए आप यंहा से चले जाओ.
इस बात पर सांप गुस्सा हो जाता और फुंकारते हुए कहता है–” अरे मूरख ! मैं भूखे पेट यहां से नहीं जा सकता मुझे रोज खाने की आदत हो गई है. इसलिए तुम्हारी पत्नी को भेजो वर्ना तुम्हें खा जाऊंगा.
वह मेढक डरते हुए अपनी पत्नी को उसके सामने पेश करता है. वह सांप उसे भी खा लेता है और अंत में बच जाता है राजा गंगदत्त मेढक. अब वह मेढक भागने की सोचता है–” अरे ! यह मुर्ख सांप तो मुझे भी खा लेगा इसलिए मेरे भागने में ही भलाई है.
इतने में वह भाग ही रहा था कि सांप ने उसे अपने मुंह से धर दबोचा और कहा–” अरे मित्र कहां जा रहे हो मेरी खातिरदारी नहीं करोगे क्या ? ”
राजा गंगदत्त कहता है –” तुम तो मेरे मित्र हो मुझे छोड़ दो मैंने तुम्हे बहुत से मेढकों के भोजन दिए हैं. ”
सांप कहता है–” अरे ! कौन सा तू मेरा बचपन का साथी है,जो तुझे छोड़ दूं .
इतना कहकर वह सांप मेढक को भी निगल जाता है. ”
सिख:- इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि. हमें कितना भी अपनों से बैर हो. उनसे बदला लेने के लिए शत्रु का सहारा नहीं लेना चाहिए. क्योंकि ऐसे शत्रु सामने वाले को. न ही भाई मानते हैं और न ही सखा.
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