brahman aur bakri ki kahani : बकरा ब्राह्मण और तीन ठग – पंचतंत्र

brahman aur bakri ki kahani: किसी नगर में एक अग्निहोय मित्रशर्मा नाम का ब्राम्हण रहता था. एक समय जब माघ के महीने में धीमी हवा चल रही थी. और आकाश में घिरे हुए बादल मंडरा रहे थे और कुछ बारिश भी हो रही थी.

ठीक उसी समय ब्राम्हण देव यज्ञ-पशु की भिक्षा मांगने के लिए किसी दुसरे नगर चला गया. और किसी सेठ से भिक्षा मांगी -” हे यजमान ! आगामी अमावस्या को मैं यज्ञ कर रहा हूं. जिसके लिए मुझे एक पशु की आवश्यकता है. ”

इस पर सेठ ने उसे एक बकरे को उसके कंधे पर रख दिया. जो इधर-उधर भाग और उछल रहा था. बकरे को पाकर जब ब्राम्हण देव. जल्दी से अपने नगर की ओर लौट रहर थे.

तभी जंगल में उसको तीन ठगों ने देखा और कहने लगे –” अरे ! वह बकरा हमें मिल जाता तो उसे खाकर हमें इस ठण्ड से थोड़ी राहत मिलती. हमें इस ब्राम्हण को मूर्ख बनाकर इस बकरे को प्राप्त करनी होगी. ”

यह कहकर झट से तीनो वेश बदलकर अलग-अलग रास्ते से आने लगे. उनमें से एक ठग आया और कहने लगा —” अरे मूर्ख ब्राम्हण ! किसलिए तू जन-विरुद्ध और हँसी कराने वाला काम कर रहा है ? इस अपवित्र कुत्ते को कंधे पर बैठाकर क्यों लिए जा रहा है ? ”

इस पर ब्राम्हण बहुत गुस्सा हुआ और कहा– ” अरे ! क्या तू अंधा है. ओ एक बकरे को कुत्ता बताता है ? ” 

धूर्त ने जवाब दिया — ” भगवन ! आप क्रोध न करें. अपनी राह पकड़िये. जैसा चाहे वैसा कीजिये. अब वह ब्रम्हाण थोड़ी दूर जाकर आगे बड़ा था कि.

दुसरे धूर्त ने सामने से आकर कहा– ” हे ब्राम्हण ! बड़े दुःख की बात है. यह मरा हुआ बछड़ा कहा ले जा रहा है. अगर तुझे यह बछड़ा इतना प्यारा भी है तो तुझे उसे कंधे पर चड़ाना ठीक नही है.

इस पर ब्राम्हण देव क्रोधित होकर कहने लगे. ” अरे क्या तू गधा है ! जो एक बकरे को मरा बछड़ा कहता है ? ” 

उसने जवाब दिया. ” भगवन ! आप क्रोध न करे. मैंने अज्ञान वश कह दिया. ”  जैसी आपकी इच्छा हो आप करिये. ” 

उसके बाद जब वह ब्राम्हण कुछ आगे बड़ा और थोड़ी देर पर वह तीसरा ठग सामने आकर कहने लगा. ” हे ब्राम्हण देव ! आप क्या कर रहे हैं ?  एक गधे को अपने कंधे पर चड़ाकर लिए जा रहे हैं यह आपको सोभा नहीं देता. ” लोग उसे छूने से भी कतराते हैं. और आप एक ब्राम्हण होकर अपने कंधे पर ले रहें हैं. अगर कोई देखे इससे पहले कि आप इसे तुरंत यहीं उतारकर चले जाईये. ” 

वह ब्राम्हण भी इस बकरे को गधा समझकर वहीं पर पटक दिया और वहां से चला गया.

उन तीनों धूर्त ठगों ने मिलकर उस बकरे को ले लिया और उसे मारकर इच्छापूर्वक खाने लगे .

सिख : – इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है. कि हमें अपने काम से काम में मतलब रखना चाहिए. दुसरो के व्यर्थ बातों पर बिलकुल भी ध्यान नहीं देना चाहिए.

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