billi ki kahani: किसी जंगल में एक बड़े वृक्ष के तने में एक खोखला था जिसमें कपिंजल नाम का गौरैया रहता था. उसके ठीक ऊपर घोसलें में एक और पक्षी रहता था. जो उसका मित्र था. वे रोज एक साथ सूरज के डूबने पर अपने-अपने घर आते और बैठकर अनेकों तरह के बाते करते रहते थे. वे दोनों एक दुसरे के साथ बाते करते हुए खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे थे.
तभी एक दिन कपिंजल किसी दुसरे गौरों के साथ अपने खाने के लिए किसी ऐसे जगह पर चला गया. जहां पका हुआ धान था. कपिंजल के बहुत दिनों तक नही आने पर उसका मित्र बहुत दुखी हुआ और सोचने लगा कि. कहीं मेरे मित्र को कूछ हो तो नहीं गया. अगर कुशल रहता तो जल्दी ही आ जाता और मेरे साथ ढेर सारे बाते करता.
यह सोचते हुए कई दिन बीत गए. मगर कपिंजल का कुछ पता नहीं चला.
फिर एक दिन सूरज ढलने के बाद उस पेड़ के खोखले में एक खरगोश आकर रहने लगा. उसे देखकर कपिंजल का साथी भी कुछ नहीं कहा क्योंकि कपिंजल के आने की सारी उम्मीद भी छोड़ चूका था. और वहां से भाग गया.
तभी एक दिन अचानक धान खाने से पुष्ट शरीर वाला कपिंजल अपने घोंसले की याद कर वापस लौट आया. खोखले में रहते हुए खरगोश को देखकर उसने तिरस्कार से कहा —” अरे ! यह तो मेरा घर है. तू जल्दी से बाहर निकल. ”
खरगोश ने उत्तर दिया– ” यह तो मेरा घर है. मैं कहीं नहीं जाऊंगा. क्योंकि जंगल का नियम यही कहता है. कि जो भी जिस घर में रहता है वह उसी का होता है. इसलिए तू यहां से निकल जा. यह कहते हुए दोनों में बहुत बहस हुई. ”
उसके बाद कपिंजल ने कहा–” अगर तू यही जिदद करता है तो चलो किसी धर्म-शास्त्रज्ञ के पास ! ” वही पर हमारा न्याय होगा. वह इस खोखले को जिसे दे . उसे लेना चाहिए. ”
उन दोनो ने समझौता करके धर्म-शास्त्रज्ञ को ढूडने के लिए निकल गए. इसी बीच तीक्ष्णदंश नाम की एक जंगली बिल्ली उनकी लड़ाई सुन कर रास्ते में आई और पास के एक तालाब के किनारे जाकर हाथ में कुशा लेकर एक आंख बंदकर और एक हाथ ऊंचा करके धर्मोपदेश करने लगी.
उसका धर्मोपदेश सुनकर खरगोश बोला– ” हे कपिंजल ! यह धार्मिक तपस्वी तालाब के किनारे बैठा है. इसे जाकर हमें पूछना चाहिए. ”
कपिंजल ने कहा– ” ठीक है. पर यह स्वभाव से ही हमारा दुश्मन है. इसलिए दूर रहकर हमें पूछना चाहिए. पास गए तो कहीं हमें खा न ले. ”
कुछ समय बाद दोनो दूर से खड़े होकर कहने लगे. ” हे धर्मपदेशक तपस्वी. हम दोनों के बीच झगड़ा हुआ है. इसलिए धर्म-शास्त्र के अनुसार उसका कोई हल निकालिए और फैसला करें कि कौन सही है ? अगर कोई झूठा है तो उसे आप खा लेना. ”
उसने कहा– ” भलेमानसों. ऐसा न कहो. हिंसा कर्म को त्याग कर अहिंसा के मार्ग पर चल पड़ा हूं. वेद-ज्ञान का पाठ कर रहूं. इसलिए तुम्हे खाऊंगा नहीं ? ” अतः तुम दोनों निश्चिंत होकर मेरे पास आओ और अपनी लड़ाई की सारी बाते मेरे कानो में बताओ.
इतना कहकर नीच बिल्ली ने उन दोनों बेवकूफों का विश्वाश पा लिया.
और जब दोनों. बिल्ली के पास आये तो उसने एक को अपने गोदी में बिठाकर अपने पंजे से और दुसरे को अपने नुकीले दांतों से काट कर मार दिया और उन्हें खाने लगा.
सिख: – इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि एक दुसरे के बीच की लड़ाई में कभी भी तीसरे को लाना नहीं चाहिए आपस में सुलझाना चाहिए.
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