bhoot ki kahani : bhoot wali kahani – दैत्यरूपी राजकन्या का जन्म

bhoot wali kahani: कई वर्षों पहले एक किले में एक दानाशाह नामक राजा रहता था. उसकी यश और कीर्ति चारों तरफ फैली हुई थी. आस-पास के सभी राजा और प्रजा उनकी गुणगान करते थे.

कई वर्षों के बाद उसकी पत्नी से एक बच्चा हुआ. चारों तरफ खुशियों का माहौल छा उठा था ,सभी राज्य के राजा और मंत्री उनको बधाई देने आये थे. पूरे राजमहल में उत्सव मनाया जा रहा था. अनेक प्रकार की मिठाईयां और पकवान बांटे जा रहे थे. नृत्य और संगीत से मानो पूरा राजमहल स्वर्ग के सामान लग रहा था.

चारों तरफ खुशियाली ही खुशियाली थी. बाहर बारिश और कड़कती बिजली जैसे राजकन्या एक सुकन्या के रूप में घर की देवी बन कर आई हो. मगर किश्मत भी क्या अजीब खेल खेलती है. राजा जो सोच रहा था. बिलकुल उसका उल्टा हो गया.

तभी अचानक उस राज्य के राज गुरु राजभवन में पहुंचे और राजा से अकेले में मिलने की इच्छा जाहिर की. गुरु को चिंता भरी देख राजा घबरा गया कि. कुछ अनिष्ठ तो हो नहीं गया.

राजा ने राजगुरु से पूछा–” हे गुरुवर ! प्रणाम. बताईये आप इतने क्रोधित और चिंता जनक क्यों दिखाई दे रहें हैं. कोई कुछ अनिष्ठ बात हो गई है क्या ? ”

गुरु ने कहा–” हे महराज ! मुझे ऐसा कहना तो नहीं चाहिए. मगर आपकी और इस राज्य की प्रजा की हित हेतु यह बात बतानी पड़ रही है. ”

उसकी चिंताग्रस्त बातों को सुनकर राजा घबरा गया और कहा–” हे राजगुरु ! आप इतने विलम्ब न करे. और बताएं आंखिर बात क्या है. मुझे बहुत चिंता हो रहा है. ”

राजगुरु ने कहा–” महराज ! आपकी पुत्री को सुकन्या देवी समझ कर आप और हम सब इतने खुश हैं. मगर वह देवी नहीं एक दैत्य के रूप में जन्मी एक भयंकर दैत्य रूपी कन्या डायन है जो आपकी और पुरे राज्य की विनाश का कारण बन सकती है. इसके प्रकोप से ही भयंकर बारिश हो रही है. सारी काली आत्माएं इसकी ख़ुशी में इस राज महल के चारों ओर मंडरा रहें हैं. बहुत ही अनिष्ठ होने वाला है महराज. ”

गुरु की बात सुनकर महराज बहुत चिंतित हुए एक ओर अपनी पुत्री के लिए और दूसरी प्रजा के लिए.

फिर भी एक राजा होने के कर्त्तव्य से उन्होंने ने अपनी प्रजा की हित के बारे में सोचते हुए कहा–“हे गुरुवर ! आप ही बताइए इसका कोई उपाय है क्या ? ”

गुरुवर बोले–“हे महराज ! आप इस दैत्य रूपी कन्या को अमावश की पूर्ण मांस को मध्य रात्री में यहां से कुछ दूरी पर जंगल के ठीक बीचो-बीच एक बहुत बड़ा बरगद का पेड़ हैं जिसके पीछे एक ज्वालाकुंड है. जो कई वर्षों से जल रही ह. उसी में इस दैत्य कन्या को डालकर आ जाना है. ”

महराज अपने हृदय पर पत्थर रखकर गुरु की बात को माना और गुरु की आज्ञानुसार मंत्रियों से कहा–“मंत्रियों कल ही अमावश है इसलिए इस दैत्यरूपी कुलक्षण कन्या को जंगल के बीच एक बरगद का पेड़ हैं उसके पीछे ज्वाला कुंड है ,उसमें डालकर आना. ”

यह बात सुनकर रानी अपनी बच्ची को अपने छाती से लगाकर जोर-जोर से रोने लगी. अपने पास राजा को भी नहीं आने देती. और कहती कि मेरी बच्ची इतनी मासूम छोटी सी इसकी क्या गलती जो तुम इसे दुनिया देखने से पहले ही मार देना चाहते हो.

महराज रानी को समझाया कि महरानी यह हमारी किश्मत की ही रेखा है. जो नहीं मिली. हमारी किश्मत में भगवान ने लिखा ही नहीं है. इस कन्या को दैत्यों ने भेजा है. जो इस राज्य सहित पूरे विश्व को नाश कर देगी इसलिए हमें अपनी बच्ची के प्रति ममता को भुलाकर इस बच्ची को त्यागना होगा.

महराज के बार-बार समझाने से बहुत ही मुश्किल से महरानी मानी.

उसके दुसरे दिन राज्य में खबर किये बिना रात के अंधेरे में सैनिक उस दैत्यरूपी राजकन्या को उस ज्वाला कुंड में डालने के लिए जंगल में लेजा रहे थे.

तभी बीच रास्ते में एक काली बिल्ली आई. सैनिक उसे देख घबरा गए उसे भगाने के लिए एक सैनिक घोड़े गाड़ी से उतरा जैसे ही उसे मारने की सोचा वह काली बिल्ली बड़ती चली गई. और इतना बड़ी हो गई कि. सैनिकों को अपने पंजे से पकड़कर आसानी से खा सकती थी.

उसे देख सभी सैनिक डर गए और उस बच्ची को वहीं पर छोड़कर राजमहल पहुँच गए. काली शक्त्यों द्वारा भेजे गए उस बिल्ली ने उस दैत्य रूपी बच्ची  को बचाकर एक गुफा में ले गई जहां काली शक्तियों की गुरु एक बुढ़िया रहती थी.

जब सैनिक जंगल के घटना की सारी बात राजा को बताते हैं. यह सुन राजा और राजगुरु घबरा गए.

राजगुरु कहने लगे–” घोर अनर्थ. महराज मैं जो सोच रहा था. वही हो गया.

अब इस राज्य और राज्य के लोगों पर घोर संकट आ पड़ा है. अब बहुत मुश्किल है उस दैत्य रूपी कन्या से बचना. ”

इस पर महराज बोले–” हे महराज आप ही कुछ उपाय बताइए. जिससे मैं अपनी इस राज्य और प्रजा की रक्षा कर सकूं. ”

राजगुरुवर बोले–” हे महराज ! इसका सिर्फ एक ही उपाय है आप २१ दिनों तक हवन यज्ञ करवाएं और इस बीच नगर से किसी को भी बाहर नहीं जाने देना है. नहीं तो यह हवन अधुरा हो जाएगा और काली शक्तियां इस नगर पर प्रवेश कर जायेगी. जिससे पूरे राज्य का विनाश हो सकता है. ”

महराज गुरु की आज्ञा लेकर अगले दिन ही हवन यज्ञ की शुरुवात कर दी. पुरे २१ दिनों तक विधि-विधान से हवन चलता रहा. २१ दिन पुरे हो चुके थे. काली शक्तियां बहुत कोशिश की मगर उस राज्य में प्रवेश नहीं कर सकी.

और इस तरह से राजा ने अपने और अपनी प्रजा की रक्षा की.

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