bandar ki kahani: एक समय की बात है किसी गाँव में एक बहुत बड़ा व्यापारी रहता था. उसका एक बहुत बड़ा बगीचा था. उस व्यापारी ने सोचा की बगीचे में एक मंदिर बनाया जाए.
मंदिर बनाने के लिए उस व्यापारी ने कई मजदुर बड़ई और राजमिस्त्री को बुलाने का आदेश दिया. मंदिर का काम चालु हो गया. नियमित रूप से.सारे मजदूर और बड़ई काम करते और खाने के लिए शहर की लौट जाते.
तभी एक दिन बन्दर का एक समूह उस ईमारत के स्थल पर पहुंचा और मजदूरों को देखा की वह अपने खाने के लिए वहां से चले गए हैं. उनमे से एक बड़ई का काम आधा हुआ था. उसका एक अधचिरा लकड़ी बचा था.
जिसको लकड़ी के बीच में किल डालकर उसको लॉक किया था ताकि दोबारा आकर उसको पुरा कर सके.
उसके बाद सभी बन्दर पेड़ से उतर गए और उस स्थान के चारों ओर कूदना-फुदकना शुरू कर दिया. और उनमे से एक बन्दर काफी बदमाश था. उस बन्दर ने उस लॉक लगे खिले को देखा और उसके ऊपर बैठकर उससे खेलना शुरू कर दिया.
उस किल को पकड़कर खीचनें लगा. बार-बार खिंचने के बाद वह किल निकल गया.और लड़की का आधा-विभाजन लॉक बंद हो गया.
उसी लकड़ी के बिच में उसका पूछ फंस गया. और क्या ? निकालने का बहुत प्रयत्न किया मगर नही निकाल पाया.
और अंत में उसका पूंछ टूट गया और वह गंभीर रूप से घायल हो गया.
सिख:-इस कहानी से हमें यह सिख मिलती है की. हमें कभी भी बिना मतलब वाला कार्य नही करना चाहिये. जिसे करने से न अपने को या दूसरों को फायदा हो.
हमेशा अच्छा कार्य करना चाहिए जिससे दुसरों की भलाई हो.