akbar aur birbal ki kahani : अकबर का मूल्य – अकबर और बीरबल की कहानी

akbar aur birbal ki kahani : एक बार बादशाह अकबर के दरबार में सभा बैठी हुई थी. बादशाह अकबर अपने रोज के राज-संबधी कार्य को फटा-फट निपटा रहे थे.

तभी सभा में बैठे एक वृद्ध व्यक्ति बीरबल को नीचा दिखाने के लिए बादशाह अकबर से बोले–” जहापनाह ! अगर आपकी आज्ञा हो तो , आपका सेवक कुछ अर्ज करे ? ”

बादशाह ने उसे बोलने की अनुमति दे दी.

वह बोला–” हे जहापनाह ! आज जब मैं अपने घर से आ रहा था. तभी रास्ते में एक धनि व्यक्ति की अजीब वार्ता सुनने में आई.

वह धनि व्यक्ति अपने नौकर से कह रहा था–” तू मुझे किसी काम का नहीं लगता इसलिए तू बढ़ा ही मूर्ख है. ”

इस पर उसके नौकर अपने मालिक की बात सुनकर चुप न रहा और बड़ी ही विनम्रता से जवाब दिया–” सेठ जी ! हालाकि मैं आपका नौकर हूँ , फिर भी मुझे कहना पढ़ रहा है कि आपको अभी तक मनुष्य की कीमत लगाना मालुम नहीं है. यदि आप कुछ भी विचार करते तो स्वयं सिद्ध हो जाता कि मैं आपके लिए कितना लाभदायक हूँ. ”

उसकी ऐसी बातें सुनकर मैं तो आश्चर्य चकित रह गया. मैं अपने तरीके से कुछ भी हल न कर सका. कि मनुष्य की कीमत होती क्या है ? इसलिए हे जहापनाह अब आप ही मेरे इस संदेह का निवारण कीजिये. ”

उसके ऐसे प्रश्न सुनकर बादशाह विचार में पड़ गए ,परन्तु कुछ हल निकला नहीं.

और सोचने लगे–“आज उस सेठ का नौकर ने कहा है. क्या पता कल मेरा ही दरबारी मुझसे कहने लगे कि बादशाह क्या चीज है ? वह तो हमारे बैठने से सिहांसन पर बैठे हैं. तब मैं उनको क्या जवाब दूंगा. ”

इसलिए इसी समय मुझे भी अपने मूल्य का निपटारा करा लेना चाहिए. ”

बादशाह अकबर उस वृद्ध आदमी के प्रश्न को अपनी सभा में दुहराकर सभी सभासदों से अपना मूल्य पूछा. मगर किसी को समझ में आया नहीं कि बादशाह का मूल्य क्या हो सकता है ? उन्हें क्या जवाब दे ?

उसी बीच सभा में बैठे वृद्ध व्यक्ति जो बीरबल से इर्ष्या करता है.

उसने कहा–” हे जहापनाह ! इस सभा में उपस्थित सभी जनता के बीच बीरबल की ही बुद्धि बड़ी मानी जाती है. इसलिए क्यों न इस मशले का हल भी उसी के द्वारा होना चाहिए. ”

वृद्ध की यह बातें सुनकर बादशाह के मन में बैठ गई और बीरबल से पूछा–” बीरबल ! क्या तुम बता सकते हो कि मेरा मूल्य और वजन क्या है ?

बादशाह का सवाल सुनकर बीरबल विचारपूर्वक कहा–” हे जहापनाह गुस्ताखी माफ़ ! यह काम तो जौहरियों का है. क्योंकि मूल्य और वजन का काम वे लोग ही जानते है. यदि आपका हुक्म हो तो नगर के तमाम जौहरी , शर्राफ और साहूकारों को बुलवा लूं ,उस वृद्ध की मंशा बीरबल को फ़साने की थी.

मगर बीरबल भी अपनी बुद्धि का इस्तेमाल कर उसी को फंसा दिया ,क्योंकि वह भी एक जौहरी था.

बादशाह के हुक्म से नगर के सभी जौहरी और साहूकारों को बुलवाया गया , सभी जौहरी अचानक बुलवाए जाने से घबराए हुए थे.

बीरबल बोला–” नगर के जौहरियों और साहूकारों ! आप लोगों को इसलिए बुलाया गया है , कि आप लोग मिलकर बादशाह का वजन और मूल्य निश्चित कर सकें.

यह सुनकर सभी जौहरी और साहूकार उलझन में पढ़ गए ,किसी को कुछ समझ में नहीं आया कि बादशाह का मूल्य और वजन कैसे निश्चित करें.

अंत में उनका सरदार बोला–” हे जहापनाह क्षमा करें ! इस समय हम लोग आपकी सुचना पाकर तुरंत भाग चले आये हैं. जिस कारण से हमारी बुद्धि काम नहीं कर रही है. हमें कुछ समय की मोहलत दे ,ताकि हम सभी जौहरी एक जगह पर बैठ कर आपस में विचार कर उत्तर दे सके.

बादशाह ने उस सरदार की बात को स्वीकार कर उन्हें कुछ समय के लिए मोहलत दी और उनकी मदद के लिए , बीरबल को भी उनके साथ भेज दिया.

सभी ने मिलकर कोशिश कि मगर कुछ हल नहीं निकल पाया.

इस पर बीरबल ने कहा–” यह बात इतनी आसान नहीं जो तुम समझ रहो हो. ”

पन्द्रहवें दिन प्रातःकाल सभी जौहरी बीरबल के घर पर उपस्थित हुए और अशर्फी का तोड़ा लिए हुए बीरबल भी उनके साथ हो लिया.

उधर बादशाह भी पन्द्रहवें दिन की बेशब्री से इंतज़ार कर रहा था. वह अपने महल के बाहर बाग में एक बड़ा सा तंबू खड़ा करवाया था. वहां इतनी बड़ी जमीन में तंबू खड़ा करवाया था कि उसमें प्रजा से लेकर बड़े-बड़े सेठ महाजन तक के बैठने के लिए अलग-अलग स्थान मिल सके.

पन्द्रहवें दिन उसी बाग़ में ठीक समय पर दरबार लगा और वहां पर सभी लोग जमा होकर एक कतार से बैठ गए. तंबू के मध्य में बादशाह का सिहांसन था और उनके ठीक सामने जौहरियों की बैठने की व्यवस्था थी. बीरबल जौहरियों के समूह से पहले ही पहुँच चुके थे.

थोड़ी देर में सभी जौहरी भी आ पहुंचे , सभी खाली स्थान पर एक कतार से बैठ गए और उनके मध्य अशर्फियों का तोड़ रख दिया गया. फिर क्या पूछना था उनमें से प्रत्येक जौहरी एक-एक अशर्फी को तराजू पर रखकर तौलने लगे.

कुछ समय में एक जौहरी बोला–” मिल गई ,मिल गई !! मिल गई !!! जिस बात की तालाश थी वह हमें मिल गई. ”

इतमें में उनका मुखिया उठा और उस अशर्फी को लेकर बादशाह के कदमोपर जा रखा.

सभा में बैठे सभी प्रजागण यह देख प्रसन्न हो गए.

बादशाह को एक तरफ से विस्मय और दूसरी तरफ प्रसन्न होकर वह उस अशर्फी को अपने हाथ से उठाकर कहा–“क्या मेरी कीमत यही एक अशर्फी है ? ”

तभी एक वृद्ध जौहरी ने गंभीरतापूर्वक जवाब दिया–” जी हां जहापनाह ! यही आपका मूल्य है,और यही आपका वजन भी. यह अन्य अशर्फियों से एक रत्ती बड़ी है. इस कारण इसके सामान कोई दूसरा असरफी नहीं है. इसलिए हे जहापनाह ! हम प्रजागण साधारण अशर्फी के सामन हैं और आप इस बड़ी अशर्फी के सामान हैं. ”

इस पर बादशाह ने पूछा–” तो क्या मुझमें और अन्य दूसरों मनुष्य में केवल यही एक रत्ती भर का अंतर है ? ”

जौहरियों का मुखिया बोला–” जी हाँ सरकार ! इसमें कुछ भी संदेह करने वाली कोई बात नहीं है. आपमें और आपकी प्रजा में केवल इतना ही अंतर है कि प्रजा आपके अधीन रहने के लिए बनाई गई है. और आप प्रजा को अपने अधीन में रखने के लिए है. ”

हे जहापनाह जैसे आप प्रजा में सबसे बड़े माने जाते हैं उसी प्रकार से यह अशर्फी भी अन्य अशर्फियों में श्रेष्ठ मानी जाती है. आपके बैठने के स्थान को ऊंचा आसन मिलता है जबकि प्रजावर्ग को बैठने के लिए आपसे नीचा स्थान दिया जाता है.

इन्हीं सब कारणों से निश्चित होता है कि यही अशर्फी आपका मूल्य और वजन है. ”

जौहरी की सभी बातें सुनकर बादशाह बहुत प्रसन्न हो गया और उसको उसके साथियों सहित अच्छा सा पुरस्कार देकर उन्हें सभा से विदा किया.

जौहरियों का सरदार पुरष्कार पाकर मन ही मन बीरबल को आशीर्वाद देता हुआ अपने समूह के साथ वहां से चला गया.

और अंत में बादशाह अकबर बीरबल को पास बुलाकर मुस्कुराते हुए कहा–” बीरबल ! अगर इसमें तुम्हारा साथ न होता तो यह मशला शायद हल नहीं हो पाता . ”

यह कहकर बादशाह अकबर उसे भी एक हीरे की माला देकर विदा किया.

और सभा समाप्त हो गई.

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