मूर्ख साधू और ठग की कहानी पंचतंत्र : The Foolish Sage

The Foolish Sage:  एक समय की बात है देव शर्मा नाम का एक ऋषि थे. गाँव के कुछ दूर एक मंदिर में रहते थे. वह मुर्ख ऋषि बहुत ही व्यापक रूप से ग्यानी और सम्मानित था. सभी लोग उसे मिलने जाते थे और उनका आशीर्वाद लेने के लिए उनके लिए कई तरह के उपहार लेकर जाते थे.

जिन भी उपहारों की उन्हें आवश्यकता नहीं थी वे उन्हें शहर में बेचकर आ जाते थे. वे स्वाभाविक रूप से किसी पर भी भरोसा नहीं करते थे. इसलिए अपना सारा धन जो दक्षिणा में मिला करता था उसे एक पोटली में छुपाकर अपने पास रखते थे. एक पल के लिए भी अपने से दूर नहीं करते थे. जब एक दिन एक ठग घूमते हुए आया और देखा की वह ऋषि एक बड़ी पोटली को हमेशा अपने पास चिपकाए हुए रखते हैं.

उस ठग ने सोचा–” कि इस बैग को कैसे चुराया जाये. मगर वह ऋषि तो उस पोटली को एक पल भी अपने से दूर नहीं रखता. उस चोर ने एक योजना बनाई की इस पोटली को कैसे हासिल किया जाये तो कैसे. ”

अगर चोरी करने जाऊं तो मंदिर की दिवाल बहुंत उंची है. इस ऋषि को मुझे अपनी मीठी-मीठी बातों से अपनी ओर आकर्षित करना पड़ेगा.

उसके दिमाग में एक विचार आया कि क्यों न मैं उस ऋषि का शिष्य बन जाऊं और उनका भरोसा जीतकर उनका सारा धन ले जाऊं. और यहां से भाग निकलूं ऐसा ही सोचकर वह ठग ऋषि के पास दौड़ते हुए गया और बोला–” हे महराज मुझे अपना शिष्य बना ले मैं इस संसार से उभ चूका हूं. मुझे सही मार्गदर्शन दीजिये मुझे मोक्ष चाहिए इसलिए हे महाराज मुझे अपने चरणों में शरण दे दीजिये.  ”

ऐसी मीठी चिकनी-चुपड़ी बाते कहकर ऋषि का मन जीत लिया. उस मुर्ख ऋषि भी उसके बातो में आ गया. और ऋषि ने कहा –” पुत्र ! मैं तुम्हारा मार्गदर्शन करूँगा. तुम्हे सही राह दिखाउंगा. परन्तु एक शर्त पर कि मेरे जैसे पवित्र बिना किसी साथी के अकेले रात बितानी होगी जिससे मुझे ध्यान करने में आसानी होती है.और रात को तुम्हे मंदिर के अंदर प्रवेश करनी की अनुमति नहीं दी जायेगी. एक छोटी सी कुटिया में सोना पड़ेगा. ”

उस ठग ने ऋषि की सारी बात मान ली. उसी समय शाम को ऋषि ने अनुष्ठानों की शुरुआत की और औपचारिक रूप से ठग को अपना शिष्य बनाया.

वह अब ऋषि का आज्ञाकारी शिष्य बनने में सफल हो गया. वह ठग ऋषि की दिन-रात सेवा करता और मंदिरों की साफ़ सफाई करता और पूजा-पाठ अनुष्ठानों में हाथ बटाता था. फिर भी वह ऋषि उस ठग के पास अपनी पोटली नहीं छोड़ता था. वह ठग निराश होने लगा की ऋषि अपनी पोटली तो कभी छोड़ता नहीं है तो मैं कैसे उसे हासिल करूँ.

समय बीतता गया और कुछ दिन बाद गाँव से एक साहूकार आया और उसने विनती की. कि हे ऋषि मुनि मुझे पूजा-पाठ अनुष्ठान करवाना है. इसलिए आप कल मेरे घर पधारें.

ऐसा कहकर साहूकार गाँव की ओर लौट गया. उसके दुसरे दिन ऋषि और उसके ठग चेले के साथ साहूकार के यहां जाने के लिए निकले.

जाते-जाते ऋषि थक गया और वही पर बैठ गया और सोचा की गाँव जाने से पहले स्नान कर लिया जाये. उसने अपने शिष्य को नदी या तालाब ढूडने को कहा — ” कुछ समय पश्चात एक छोटा सा तालाब मिला. ऋषि  नहाने से पहले अपना पोटली अपने शिष्य को दिया और कहा कि देखना पुत्र इस पोटली को सम्भाल के रखना ऐसा कहकर वह तालाब में झाड़ियों के पीछे नहाने के लिए चला गया. ”

उसके जाते ही वह ठग चुपके से उस पोटली को लेकर भाग गया.

जब ऋषि तालाब से बाहर आया तो देखा की न वह शिष्य ठग था न उसकी पोटली. आस-पास ढूढने की बहुत कोशिश की मगर वह ठग नहीं मिला और न पोटली. वह समझ गया कि वह एक चोर ठग था. और वह ऋषि अगली सुबह चुप-चाप खाली हाथ उस गाँव से मंदिर की ओर लौट गया.

सिख: – इसलिए कहते है किसी अंजान व्यक्ति की चिकनी-चुपड़ी मीठी बातों में तुरंत नहीं आना चाहिए. जांच परख करने के बाद ही उनका विश्वाश करना चाहिए. नहीं तो भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है.जैसे इस मुर्ख ऋषि की हुई.

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