the heron and the crab story: किसी जंगल में एक बहुत बड़ा तालाब था जिसमें बहुत सारे जलचरों जैसे मछली , मेढक, कछुआ , केकड़े और बगल में एक भगत बगुला का निवास था.
वे रोज दिन एक साथ खेलते कूदते रहते थे. भगत बगुला रोज अपना मछली का खाना खाता था. ऐसे ही इनका रोज-दिन गुजरता था. कुछ साल बाद बगुला थोड़ा बुढा हो गया था. और एकदम आलसी भी वह खाने के लिए सोचता की बिना हाथ-पैर चलाये अपने मुंह में खाना आ जाये.
और एक तरकीब सोची की कुछ तो किया जाय. उसके दुसरे दिन बगुला चुप-चाप खड़ा होकर आँखों में आंसू डबडबाते हुए बैठा था. तभी केकड़ा घुमते हुए उस बगुले के पास आया और पूछने लगा — ” भगत मामा क्या हुआ आज उदास बैठे हुए हो ! “
बगुला कुछ नहीं बोलता — ” केकड़ा दोबारा पूछता है बताओ न भगत मामा ऐसा क्या हुआ जो बात भी नहीं करते.
कुछ समय बाद वह बगुला उदासी भरी धीमी आवाज में बोलता है — “अरे बेटा केकड़ा क्या करूँ अब तो मैं मरने वाला हूँ काफी बुडा भी हो चूका हूँ. और मेरा इस संसार से मोह लोभ उठ चूका है. और एक ज्योतिष ने भी कहा है की इस जगह पुरे 12 वर्षों से बारिश नहीं होगी मुझे सब की चिंता हो रही है. इसलिए मैं अब खाना नहीं खाना चाहता. “
ये सब बातें सुनकर केकड़ा दुबारा पूछने लगा भगत मामा क्या सच में यहां पर वर्षा नहीं होगी. ये तुमने कहां सुनी.
बगुला बोला — “बेटा एक ज्योतिष को बात करते देखा था. “
यह सब बात सुनकर केकड़ा वहां से चला गया. और अन्य सभी जलचरों को बताने लगा. यह सुनकर सभी जलचरें उस बगुले के पास आये और बोलने लगे — ” भगत मामा क्या यह सच है ? ” जो इस केकड़े ने बताया.
बगुला बोला — ” हा सच है. इसलिए तो मैं बहुत दुखी हूँ. सभी जलचरें ( मछली, मेढक , कीड़े ,कछुआ ) बोले तो भगत मामा हमें क्या करना चाहिए. हम कहा जायेंगे जिससे हमारे प्राण बच सके.
बगुला ने कहा — ” कि तुम इसकी चिंता मत करों. यहाँ से कुछ दुरी पर एक कमल के फूलों से लदी एक गहरा तालाब है. जिसमे कई वर्षों तक बारिश न होने पर भी नहीं सूखता है. जिसमे हम सुरक्षित रह सकते हैं. ऐसा कहते ही सारे जीव जंतु भगत मामा के चरों ओर इर्द-गिर्द घुमने लगे कि भगत मामा पहले मुझे बचाओ. पहले मुझे यंहा से ले चलो.
भगत मामा ने कहा — ” कि रोको सबको ले चलूँगा मगर एक-एक करके एक साथ नहीं जा सकते. “
उसके बाद वह बगुला एक-एक करके सभी जलचरों को अपने पीठ पर बिठा कर लेना शुरु कर दिया. जाते-जाते कुछ दुरी पर जाकर एक चट्टान था वहीं पर उस सारे जलचरों को पटककर उनको खा जाता था. धीरे-धीरे करके सभी जलचरों को बारी-बारी ले जाकर खाने लगा.
एक दिन केकड़े ने कहा — ” भगत मामा सबको रोज ले जाते हो मगर आप से पहले दोस्ती तो मेरे साथ हुई थी. तो मुझे भी ले चलों न ! ”
ऐसा कहने पर वह बगुला बहुत खुश हुआ और मन-ही-मन कहा — ” बेटा केकड़ा आज तो तुम्हे ही ले जाने वाला था क्योंकि इतने दिन से इन छोटी-छोटी बेकार मछलियां खाकर मैं बीमार पड़ सकता हूँ. और मेरा मुह का स्वाद भी बेकार हो गया है. आज तो मैं इस बड़े से केकड़े को अच्छा पकवान के रूप में खाउंगा. “
बगुला ने कहा — ” चलो मेरे पीठ पर बैठ जाओ. केकड़ा उसके पीठ पर बैठ गया. और बगुला तेज गति से उड़ने लगा जाते-जाते उस चट्टान के नजदीक गया जहां सारे मछलियों को खा जाता था. ऊपर से केकड़े ने देखा कि इतने सारे मछली के हड्डियाँ पड़े हैं. उसको समझ में आ गया था कि ये सब इस बगुला का कारनामा है.
उसने एक तरकीब सोची की क्या किया जाय.
कुछ समय बाद केकड़े ने कहा कि बगुला मामा तालाब कहा हैं ? दिखाई नहीं दे रहा है. बगुले ने उची भर्री आवाज में बोला अरे मुर्ख केकड़े यहां पर कोई तालाब-वालाब नही है. मुझे सिर्फ तुम लोगो को खाने के लिए इस निति को अपनाना पड़ा. अब तुम भी मेरा भोजन बनोगे. ऐसा कहते ही केकड़े ने उसके गर्दन को जोर से पकड़ा. और मरोड़ कर तोड़ दिया. बगुला झट से जमीन पर गिर पड़ा और केकड़ा भी.
उसके बाद वह केकड़ा उस बगुले के गर्दन को पकड़कर धीरे-धीरे तालाब की ओर आ गया. उसको देखकर बची हुई सभी जलचरें बोले क्या केकड़े तुम वापिस कैसे आ गए.
केकड़े ने सभी बात विस्तारपूर्वक बताया कि — ” वह बगुला हम सबको मूर्ख बना रहा था वहां पर कोई तालाब-वालाब नहीं था. सभी को ले जाकर उस चट्टान पर पटकर खा जाता था ! ” मगर डरने की बात नहीं है मैंने उसे ख़तम कर दिया है. अब हम शांति के साथ इसी तालाब पर रह सकते हैं इसका जलस्तर कभी कम नहीं होगा उस बगुले ने हमसे झूठ कहा था.
ये सब सुनकर सभी जलचरें अब ख़ुशी से रहने लगे. और उस बगुले को उसका दण्ड भी मिल गया.
सिख:- इस कहानी से हमें यह सिख मिलती है कि हमें जितना भी मिले उतना में खुश रहना चाहिए. न कि किसी बड़े की लालच में आना चाहिए. नहीं तो हाथ से जान न गवाना पड़ता है. जैसे इस बगुले को गवाना पड़ा.
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