premchand ki kahani :एक गाँव में झूरी नाम का एक किसान रहता था. हीरा और मोती नाम के दो बैल उसके पास थी. देखने में सुन्दर , काम में तत्पर और डील में ऊंचे।
बहुत दिनों तक साथ में रहने के कारण दोनों बैल भाई-भाई की तरह रहते थे. दोनों में आपसी प्रेम था. दोनों एक दुसरे के सामने बैठकर मन ही मन अपनी भाषा में विचार-विमर्श करते रहते थे।
दोनों एक-दुसरे को चाटकर और सूंघकर मानों अपना प्रेम प्रकट करते. दोनों एक दुसरे के सिंग भी मिला लिया करते थे. उन दोनों में अपनापन इतना हो गया था कि मानों एक दुसरे से अलग होते नहीं थे. और जब भी दोनों को हल या गाड़ी में जोत दिए जाते थे तो एक की यही चेष्टा होती थी कि ज्यादा भार मुझ पर ही पढ़े. और जब अंत में संध्या हो जाती तो दोनों एक-दुसरे को चाट-कर अपना थकान मिटा लेते थे. नांद में खली भूषा पड़ जाने के बाद दोनों साथ उठते , साथ नांद में मुंह डालते और साथ ही बैठते थे।
और जब एक मुंह हटा लेता तो दुसरा भी हटा लेता था।
हीरा और मोती का झुरी के ससुराल भेजा जाना
मगर दुर्भाग्यवश एक दिन झूरी ने दोनों बैल ( हीरा और मोती ) को अपना ससुराल भेजना पढ़ा , बेचारे बैलों को क्या पता था वे क्यों भेजे जा रहे हैं. वे समझते कि मालिक ने हमें बेच दिया हो।
अपना यों बेचा जाना उन्हें अच्छा लगा या बुरा वही समझ सकते थे. मगर झूरी के साले गया को उन बैलों को ले जाने में बहुत पसीना बहाना पढ़ गया ,
पीछे से हांकता तो दोनों दायें-बाएं भागते, पगहिया पकड़कर नीचे करके हुंकारते. और मन-ही-मन अपने मालिक को याद कर बातें करते कि
ऐसे हमने क्या गलती कर दी , और हमने तुम्हारी सेवा में क्या कमी कर दी , जो हमें ऐसे किसी दुसरे के यहाँ बेच दिए अगर इतना में काम नहीं चला तो और काम करवा लेते मगर हमें नहीं बेचते ,
हमने दाने-चारे की भी कोई शिकायत की नहीं थी , तुमनें जो कुछ भी हमने खिलाया हमने चुप-चाप खाया , फिर तुमने हमें इस अत्याचारी के पास क्यों बेच दिया।
यह कहते हुए अपने सर हिलाते हुए संध्या काल तक गया के घर पहुँच गए।
दिन-भर के भूखे थे. लेकिन जब नांद में लगाए गया , तो एक ने भी उसमें मूंह न डाला. दिल भारी हो रहा था. जिसे उन्होंने अपना घर समझ रखा था
वह आज उसे छुट गया . यह नया घर , नया गाँव नए आदमी सब उन्हें पराये से लगने लगे।
हीरा और मोती का गया के घर से भाग जाना
दोनों ( हिरा और मोती ) ने अपनी भाषा में सलाह की , कि एक-दुसरे को चोरी-चोरी और लेट गए. जब पूरा गाँव सो गया , तो दोनों ने जोर मारकर अपनी रस्सियाँ तुड़ा कर अपने घर की तरफ भागने लगे. रस्सियाँ बहुत मजबूत थी. अनुमान नहीं हो सकता था कि , कोई बैल उन्हें तोड़ सकेगा. पर इन दोनों में इस समय कुछ अद्भूत सी शक्ति समां गई थी. एक-एक झटके में रस्सियाँ टूट गई।
जब झूरी सुबह उठकर देखता है कि उसके दोनों बैल उसकी चरनी पर खड़े हैं. दोनों की गर्दनों पर टूटे हुए रस्सी के टुकड़े लटक रहे थे. घुटने तक पाँव
कीचड़ से सने हुए और दोनों की आँखों में विद्रोह से भरा हुआ प्यार झलक रहा था।
झूरी भी दोनों बैलों को देखकर स्नेह से गदगद हो गया और दौड़कर उन्हें गले से लगा लिया. झुरी और बैलों की आपसी प्रेम देख मानों कई वर्षों से बिछड़े
भाई मिल रहे हो. कितना मनोहर दृश्य था.
घर और गाँव के बहुत से लोग वहां इकठ्ठा हो गए. और उनका स्वागत करने लगे. पुरे गाँव के इतिहास में यह घटना अनोखी न होने पर भी महत्त्वपूर्ण थी।
वहां पर उपस्थित सभी बच्चों ने निश्चय किया कि , दोनों पशुओं को अभिनन्दन-पत्र देना चाहिए. कोई-कोई अपने घर से रोटियाँ लाया , कोई गुड, कोई
चोकर , और कोई भूसा।
एक बालक ने कहा – ” ऐसे बैल किसी के पास न होंगे। “
दुसरे ने कहा – ” इतनी दूर से अकेले चले आये । “
तीसरे ने कहा – ” बैल नहीं है वे , उस जन्म के आदमी है. इसका विरोध करने का किसी को साहस नहीं हुआ। “
और जैसे ही झूरी की पत्नी बैलों को द्वार पर देखा तो जल उठी और बोली — ” कैसे नमक हराम बैल है , कि एक दिन भी वहां काम न किया बस भाग खड़ा हुआ। “
झुरी अपने बैलों पर इस तरह का आरोप सुन न सका और कहने लगा — ” नमकहराम क्यों है ? चारा-दाना दिया न होगा तो क्या करता बेचारा ? “
यह सुन झुरी की पत्नी और भड़क गई और कहने लगी– ” बस ! तुम्ही तो बैलों को खिलाना जानते हो , और सभी पानी पिला-पिलाकर रखते हैं। “
झुरी ने चिढ़ाया – ” चारा मिलता तो क्यों भागते ? “
उसकी स्त्री गुस्से में — ” भागे इसलिए क्योंकि वे लोग तुम जैसे बुध्दुओं की तरह बैलों को सहलाते नहीं. खिलाते हैं तो जी तोड़ मेहनत भी करवाते हैं. ये दोनों ठहरे कामचोर , भाग निकले . अब देखूं कहाँ से खली और चोकर मिलता है ? सूखे भूसे के अलावा कुछ न दूंगी , खाये चाहे मरे। “
और वही हुआ. मजदूर को आदेश दिया गया कि बैलों को सुखा भूसा दिया जाए. बैलों ने नांद में मुंह डाला तो फीका-फीका. न कोई चिकनाहट, न कोई
रस न स्वाद. क्या खाएं ? “
आशा-भरी नज़रों से द्वार की ओर ताकने लगे।
झूरी ने मजदूर से कहा–” थोड़ी-सी खली क्यों नहीं डाल देते रे ? “
मजदूर कहता है — ” नहीं मालिक ! मालकिन मुझे मार ही डालेगी। “
मालिक दुबारा कहता — ” चुराकर डाल आ। “
मजदूर फिर कहता — ” न दादा ! पीछे से तुम भी उन्हीं की-सी सुनोगे। “
झूरी का साला दुबारा दोनों बैलों को अपने गाँव लेने आया
दूसरे दिन झूरी का साला फिर आया और बैलों को ले चला. अब की उसने दोनों को गाडी में फांद कर चल पढ़ा ताकि भाग न सके. दो-चार बार मोती ने गाड़ी को खाई में गिराना चाहा , पर हीरा ने संभाल लिया. वह ज्यादा सहनशील था।
संध्या समय पर पहुंचकर उसने दोंनो को मोटी रस्सियों से बांधा और कल की शरारत का मजा चखाया | फिर वही सूखा भूसा डाल दिया.
अपने दोनों बैलों को खली,चुनी , सब कुछ दी.
दोनों बैलों का ऐसा अपमान कभी न हुआ था. झूरी उन्हें फूलों की छड़ी से भी न छूता था. उसकी टिटकार पर दोनों उड़ने लगते थे. यहाँ पर मार पर मार पढ़ती. आहत सम्मान की पीड़ा तो थी ही , उस पर मिला सुखा भूसा. नांद की तरफ आँख तक न उठायी. दूसरे दिन गया ने बैलों को हल में जोता. पर इन दोनों ने जैसे पाँव न उठाने की कसम खा ली हो. वह मारते-मारते थक गया, पर दोनों ने पाँव न उठाया।
एक बार जब निर्दयी ने हीरा के नाक में खूब डंडे जमाये तो मोती का गुस्सा काबू से बाहर हो गया. हल लेकर भागा. हल , रस्सी, जुआ, सब टूट-टाटकर बराबर हो गया. गले में बड़ी-बड़ी रस्सियाँ न होती तो दोनों पकडाई में न आते.
हीरा ने अपनी मूक भाषा में कहा — ” भागना व्यर्थ है. “
मोती ने उसी की भाषा में उत्तर दिया — ” तुम्हारी तो इसने जान ले ली थी. अबकी बार मार पड़ेगी. “
मोती ने कहा — ” पड़ने दो , बैल का जन्म लिया है , तो मार से कहाँ तक बचेंगे ? “
गया दो आदमियों के साथ दौड़ा आ रहा है , दोनों के हाथ में लाठियां है। “
मोती बोला — ” कहो तो दिखा दूँ कुछ मजा मैं भी. लाठी लेकर आ रहा है । “
हीरा ने समझाया — ” नहीं भाई ! खड़े हो जाओ। “
मोती ने कहा — ” मुझे मारेगा तो मैं एक-दो को गिरा दूंगा । “
हीरा ने कहा — ” नहीं, हमारी जाति का यह धर्म नहीं है। “
मोती दिल से ऐसे ऐंठकर रह गया. गया आ पहुंचा और दोनों को पकड़कर ले चला. कुशल हुई कि इस वक्त वह मार-पीट न की, नहीं मोती भी पलट पड़ता. उसके रंग-ढंग देखकर सहम गया और उसके सहायक समझ गए कि इस वक्त टाला जाना ही उचित होगा. आज दोनों के सामने फिर वही सुखा भूसा लाया गया. दोनों चुप-चाप खड़े रहे. घर के लोग भोजन करने लगे।
एक छोटी सी लड़की का दोनों बैलों के प्रति प्रेम
उसी वक्त एक छोटी-सी लड़की दो रोटियाँ लेकर निकली , और दोनों के मुंह में देकर चली गई. उस एक रोटी से इनकी भूख तो क्या शांत होती ; पर दोनों के ह्रदय को मानो भोजन मिल गया. यहाँ भी किसी सज्जन का निवास है. लड़की भैरों की थी. उसकी माँ मर चुकी थी. सौतेली माँ उसे मारती थी . इसलिए इन बैलों से उसे एक प्रकार का अपनापन हो गया था।
दोनों दिन-भर जोते जाते , डंडे खाते. शाम को थान पर बाँध दिए जाते और रात को वही बालिका उन्हें दो रोटियां खिला जाती. उस लड़की की प्रेम के प्रति भावना देख दोनों बैल रुखी-सुखी घास-फुस खाकर भी खुश रहते।
मगर दोनों की आँखों में रोम-रोम में विद्रोह भरा हुआ था. जब एक दिन मोती ने अपनी मुख भाषा में कहा– ” अब तो नहीं सहा जाता हीरा भाई । “
हीरा ने कहा — ” क्या करना चाहते हो ? “
मोती ने कहा — ” एकाध को सींगो पर उठाकर फेंक दूंगा। “
हीरा ने कहा — ” लेकिन जानते हो , वह प्यारी सी लड़की , जो हमें रोज रोटियाँ खिलाती है , उसी की लड़की है , जो इस घर का मालिक है , यह बेचारी
आनाथ हो जायेगी। ” इलसिए मेरा राय मानो ऐसा मत करो। “
मोती ने कहा — ” तो मालकिन को फेंक दूँ तो चलेगा क्या ? वही तो इस लड़की को मारती है। “
हीरा ने कहा — ” लेकिंन औरत जात को मारना मना है, यह भूल जाते हो। “
मोती ने कहा — ” तुम तो किसी तरह निकलने नहीं देते , बताओ , तुड़ाकर भाग चले क्यां ? “
हीरा ने कहा — ” हाँ मैं स्वीकार करता हूं , लेकिन इतनी मोटी सी रस्सी टूटेगी कैसे ? “
मोती ने कहा — ” इसका उपाय है , पहले रस्सी को थोड़ा-थोड़ा करके चबा लो , और फिर जब रस्सी पतला हो जाएगा तो एक ही झटके से रस्सी टूट जाएगा।
दोनों बैल अपनी मूक-भाषा में यह बातें करके रात के समय जब बालिका रोटियाँ खिलाकर चली गई तो दोनों रस्सियाँ चबाने लगे . पर रस्सी इतनी मोटी थी कि मुहं में आती नहीं थी. बेचारे बार-बार जोर लगाकर रह जाते।
छोटी लड़की की मदद से हीरा और मोती गया के घर से भाग निकले
भाग्यवश घर का दरवाजा खुला और वह लड़की निकली. दोनों सर झुकाकर उसका हाथ चाटने लगे. दोनों की पूँछे खड़ी हो गई , उसने माथे को सहलाई
और बोली — ” खोल देती हूँ , चुपके से भाग जाओ . नहीं तो ये मार डालेंगे. आज घर में सलाह हो रही है कि इनकी नाकों में नाथ डाल दी जाए।”
यह कहते हुए लड़की ने उन दोनों बैलों का गराँव खोल दिया , पर दोनों चुप-चाप खड़े रहे।
मोती ने अपनी मूक भाषा में — ” अब चलते क्यों नहीं हो ? “
हीरा ने कहा — ” चलें तो, लेकिन कल इस अनाथ पर आफत आ जायेगी , सब इसी पर संदेह करने लगेंगे।”
वह बालिका चिल्लाई — ” दोनों फूफा वाले बैल भागे जा रहे हैं , ओ दादा , ! दादा ! दोनों बैल भागे जा रहे हैं , ओ दादा ! दादा ! दोनों बैल भागे जा रहें हैं ,
जल्दी दौड़ों।
यह सुनकर गया हडबडाकर भीतर से निकला औए बैलों को पकड़ने चला. वे दोनों भागे. गया ने पीछा किया , और जोर से दौडाने लगा. गया ने शोर मचाया. फिर गाँव के कुछ आदमियों को भी साथ लेने के लिए लौटा. दोनों मित्रो को भगाने का मौका मिल गया. सीधे दौड़ते चले गए. यहाँ तक कि मार्ग का ज्ञान भी न रहा. रास्ता भटक गए थे. जिस रास्ते से दोनों आये थे वह सब भूल गए , नए-नए गाँव मिलने लगा. तभी दोनों जाते-जाते किसी खेत के पास पहुँच गए वहां खड़े होकर सोचने लगे ! अब क्या करना चाहिए ? “
हीरा ने कहा — ” मुझे मालुम होता है , कि हम राह भटक गए हैं।”
मोती ने कहा — ” तुम भी बेतहाशा भागे , वहीँ उसे मार गिरना था।”
हीरा कहता है — ” उसे मार गिराते तो दुनिया क्या कहती ? वह अपने धर्म छोड़ दे , लेकिन हम अपना धर्म क्यों छोड़े ? “
दोनों भूख से व्याकुल हो रहे थे. पास के खेत में मटर लगा हुआ था. वे दोनों उसे देख उस पर टूट पड़े. रह-रहकर आहट लेते रहे थे. कोई आता तो नहीं है।
और जब पेट भर गया , दोनों ने आजादी का अनुभव किया तो मस्त होकर उछलने-कूदने लगे. पहले दोनों ने डकार ली और फिर सींग मिलाकर एक दुसरे को ठोकने लगे. मोती ने हीरा को कई कदम पीछे हटा दिया. यहाँ तक की वह एक खाई में गिरंने वाला था. तब उसे भी क्रोध आ गया और संभलकर उठा और मोती से भीड़ गया।
हीरा और मोती का सांड से भिड़ना
मोती ने देखा कि खेल में झगड़ा हुआ चाहता है तो किनारे हट गया. अरे ! यह क्या ? कोई सांड डौकता हुआ चला आ रहा है. हाँ सांड ही है . वह सामने आ पहुंचा. दोनों मित्र बंगले झाँक रहे थे. सांड पूरा हाथी था. उससे भिड़ना मतलब जान से हाथ धोना है . लेकिन न भिड़ने पर भी जान बचती नज़र नहीं आती. इन्हीं की तरफ आ भी रही है. कितनी भयंकर सूरत है।
मोती ने मुक-भाषा में कहा– ” बुरे फंसे , जान बचे ? ऐसी कोई उपाय सोचो।”
हीरा ने चिंतित स्वर में कहा– ” अपने घमंड में फुला हुआ है , आरजू-विनती न सुनेगा।”
मोती ने कहा — ” भाग क्यों न चले ? “
हीरा ने कहा — ” भागना कायरता है।”
मोती ने कहा — ” तो फिर यहीं मरो. मैं तो यहाँ से भागता हूँ. और जब दौडाए तब उपाय सोच लूँगा।
यह कहकर मोती भागने लगा औए उसके साथ-साथ हीरा भी।
भागते-भागते दोनों ने एक उपाय निकाला कि, उस पर दोनों एक साथ चोट करे. मैं आगे से रेड़ता हूँ और तुम पीछे से. दोहरी मार पड़ेगी तो भाग खड़ा होगा. मेरी ओर झपटे , तुम बगल से उसके पेट में सींग घुसेड देना. जान जोखिम है, पर दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है।
यह निर्णय लेकर दोनों मित्र जान हथेली पर लेकर लपक.| सांड को भी संगठित शत्रुओं से लड़ने का तजुर्बा नहीं था। वह तो एक शत्रु से मलयुद्ध करने का आदि था. और जैसे ही हीरा पर झपटा , मोती ने पीछे से दौडाया. सांड उसकी तरफ मुड़ा तो हीरा ने रगेड़ा. सांड चाहता था , कि एक-एक करके दोनों को गिरा ले , पर ये दोनों भी उस्ताद थे। उसे वह अवसर न देते थे. एक बार सांड झल्लाकर हीरा का अंत कर देने के लिए चला कि मोती ने बगल से आकर उसके पेट में सींग भोंक दिया. सांड क्रोध में आकर पीछे की ओर फिरा तो हीरा ने दुसरे पहलु में सींगे चुभा दिया।
आखिर बेचारा जख्मी होकर भागा और दोनों मित्रों ने दूर तक उसका पीछा किया. यहां तक कि सांड बेदम होकर गिर पड़ा. तब दोनों नें उसे छोड़ दिया. दोनों मित्रों मित्र जीत के नशे में झूमते चले जाते थे।
मोती ने अपनी सांकेतिक भाषा में कहा — ” मेरी जी चाहता था कि सांड को मार ही डालूं। “
हीरा ने तिरस्कार किया और कहा — ” गिरे हुए बैरी पर सींग चलाना नहीं चाहिए ।”
मोती ने कहा — ” यह सब ढोंग है , बैरी को ऐसा मारना चाहिए कि फिर न उठ पाए ।”
और कहा — ” अब घर कैसे पहुंचेगे वह सोचो ! “
मोती ने कहा — ” पहले कुछ खा ले , तो सोचें !”
सामने मटर का खेत था ही , मोती उसमें गुस गया. हीरा मना करता रहा , पर उसने एक न सुनी. अभी दो-चार ही मटर खाए थे कि नहीं सामने से कुछ लोग लाठियां लेकर दौड़ाने लगे. और दोनों मित्र को घेर लिया , हीरा तो मेड पर था निकल गया था. मोती अभी तक मटर के खेत में ही था. उसके खुर कीचड़ में धंसने लगे. न भाग सकता था और न ही वहां रह सकता था. बेचारा पकड़ा गया. हीरा ने देखा , मित्र संकट में है तो लौट पड़ा. फसेंगे तो दोनों फसेंगे. रखवालों ने भी उसे पकड़ लिया।
हीरा और मोती का कांजी हौस में बंद होना
प्रातः काल दोनो को कांजी हौस में बंद कर दिया।
दोनों मित्रों को जीवन में पहली बार ऐसा सबक पड़ा कि था सारा दिन बीत गया और खाने को एक तिनका भी नशीब न रहा. उन्हें समझ में नहीं आता था कि ,यह कैसा स्वामी है , इससे तो गया फिर भी अच्छा था. सूखा-सूखा घास तो देता था।
यहाँ कई भैंसे थी, कई बकरियां , कई घोड़े , कई गधे , पर किसी के सामने चारा नहीं था , सब जमीन पर मुर्दों की तरह पड़े थे. कई तो इतने कमजोर हो गए थे कि खड़े होने की शक्ति न बची थी. सारा दिन दोनों मित्र दरवाजे की ओर टकटकी लगाए रहते , पर कोई चारा न लेकर आता
दिखाई दिया. तब दोनों ने दीवार की नमकीन मिटटी चटनी शुरू कर दी. पर इससे क्या तृप्ति होती।
रात को भी जब कुछ भोजन न मिला तो हीरा के दिल में विद्रोह की ज्वाला दाहक उठी।
मोती से बोला — ” अब नहीं रहा जाता मोती।”
मोती ने सर लटकाए हुए जवाब दिया — ” मुझे मालुम होता है कि प्राण निकल रहे हैं।”
हीरा कहने लगा — ” आओ दिवार तोड़ डालें ।”
मोती ने कहा — ” मुझसे भी तो अब कुछ नहीं होगा।”
हीरा ने कहा — ” बस इसी बूत पर अकड़ते थे , सारी अकड़ निकल गई ! “
बाड़े की दीवार कच्ची थी. हीरा मजबूत तो था ही . अपने नुकीले सींग दीवार में गड़ा दिया और जोर मारा तो मिटटी का एक चिप्पड निकल गया।
फिर तो उसका साहस और बढ़ने लगा और उसने दौड़-दौड़कर दीवार पर चोट में थोड़ी-थोड़ी मिटटी गिराने लगा।
उसी समय कांजी हौस का चौकीदार लालटेन लेकर जानवरों की हाजरी लेने आ पहुंचा. हीरा का उद्दंड्डपन देखकर उसे कई कोड़ों से मरवाया और एक मोटी सी रस्सी से बाँध दिया।
मोती ने पड़े-पड़े कहा– ” आखिर मार खाई , क्या मिला ? “
हीरा ने कहा — ” अपने बूते-भर जोर मार तो दिया। “
मोती –” ऐसा जोर मारना किस काम का कि और बंधन में पड़ गए। “
हीरा — ” जोर तो मारता ही जाऊँगा , चाहे कितने ही बंधन पड़ते जाएँ। “
मोती — ” जान से हाथ धोना पड़ेगा। “
हीरा — ” कुछ परवाह नहीं , यों भी तो मरना ही है ” सोचो दीवार खुद जाती तो कितनी जाने बच जाती. इतने भाई यहाँ बंद है. किसी की देह में जान नहीं है. दो-चार दिन यही हालात रही तो मर जायेंगे। “
मोती — ” हाँ , यह बात तो है. अच्छा , तो ला फिर मैं भी जोर लगाता हूँ। “
मोती ने भी दीवार में सींग मारना शुरू कर दिया. ” थोड़ी-सी मिटटी गिरी जिससे हिमत और बढ़ गई. फिर तो वह दीवार में सींग लगाकर इस तरह जोर करने लगा, मानो किसी युद्ध के मैदान में जंग लड़ रहा हो. आखिर कुछ समय पश्चात दीवार ऊपर से एक तिहाई गिर गया. उसने अपनी शक्ति दुगुनी ताकत से बड़ाई और दूसरा धक्का मारा तो आधी दीवार ही गिर गई। “
जैसे ही दीवार गिरा देख वहां पड़े अधमरे जानवर खड़े हो उठे , पहले घोड़े सरपट जोर से भागे और फिर बकरियां , इसके बाद भैंस भी भाग गई , पर गधे
अभी भी ज्यों का त्यों खड़े रहे।
यह देख हीरा ने पूछा — ” तुम दोनों क्यों नहीं भाग जाते ? “
उसमें से एक गधे ने कहा — ” जो कहीं फिर पकड़ लिए गए तो। “
हीरा — ” तो क्या हरज , अभी तो भागने का अवसर है। “
गधे– ” हमें तो डर लगता है, हम यहीं पड़े रहेंगे। “
आधी रात से ऊपर हो चुका था. दोनों गधे अभी तक खड़े सोच रहे थे कि भागें , या न भागें , और मोती अपने मित्र की रस्सी तोड़ने में लगा हुआ था ।
जब वह हार गया तो हीरा ने कहा — ” तुम जाओ , मुझे यहीं पड़ा रहने दो , शायद कहीं भेट हो जाए। “
मोती ने आँखों में आंसू लाकर कहा — ” तुम मुझे इतना स्वार्थी सामझते हो , हम और तुम इतने दिनों एक साथ रहे हैं. आज तुम विपत्ति में पड़ गए हो तो मैं तुम्हें छोड़कर कैसे अलग हो जाऊं ? “
हीरा ने कहा — ” बहुत मार पड़ेगी , लोग समझ जायेंगे कि , यह तुम्हारी शरारत है। “
मोती ने गर्व से बोला — ” जिस अपराध के लिए तुम्हारे गले में बंधना पड़ा , उसके लिए अगर मार पड़े , तो क्या चिंता. इतना तो हो ही गया कि हमारे बहुत से साथियों की जान बच गई , वे सब तो दुवाएं करेंगे हमारे लिए। “
यह कहते हुए मोती ने दोनों गधों को सींगो से मार-मार कर बाड़े से बाहर निकाला, बहुत प्रयास के बाद गधे भागे. यह सब शोर सुनते ही मुंशी और चौकीदार तथा अन्य कर्मचारियों में कैसी खलबली मची , या कह नहीं सकते . बस, इतना ही काफी है कि मोती की खूब मरम्मत हुई और उसे एक मोटी सी रस्सी से बांध दिया. एक सप्ताह तक दोनों मित्र वहां बंधे रहे. किसी ने चारे का एक तिनका भी न दिया. हां एक बार पानी दिखा दिया जाता था. ताकि जान बचा रहे।
दोनों इतने दुर्बल हो गए कि उठा तक नही जाता था , ठठरियां निकल आई थी।
हीरा और मोती की नीलामी
एक दिन बाड़े के सामने झुग्गी बजने लगी और दोपहर होते-होते वहां पचास-साठ लोग जमा हो गए. तब दोनों मित्र निकाले गए और लोग आकर उनकी सूरत देखते और मन फीका करके चले जाते. ऐसे अधमरा जैसे बैलों का कौन खरीददार होता ? तभी एक दढ़ियल आदमी , जिसकी आँखे लाल थी और मुद्रा अत्यंत कठोर , आया और दोनों मित्र के कूल्हों में ऊँगली गोदकर मुंशीजी से बातें करने लगा. चेहरा देखकर अंतर्ज्ञान से दोनों मित्र का ह्रदय काँप उठा . वह क्यों है और क्यों टटोल रहा है. इस विषय में उन्हें कोई संदेह न हुआ. दोनों ने एक-दुसरे को भीत नेत्रों से देखा और सर झुका लिया।
हीरा ने कहा — ” गया के घर से बेकार भागे , अब तो जान न बचेगा। “
मोती ने दुखी मन से कहा — ” कहते है , भगवान सबके ऊपर दया करते हैं , उन्हें हमारे ऊपर दया क्यों नहीं आती ? ” शायद भगवान् के लिए हमारा जीवन मरना दोनों बराबर है. चलो, अच्छा ही है , कुछ दिन उसके पास तो रहेंगे. एक बार उस भगवान् ने उस लड़की के रूप में हमें बचाया था. क्या अब न बचाएंगे ? ” यह आदमी छुरी चलाएगा , देख लेना। “
हीरा — ” तो क्या चिंता ? मांस , खाल , सींग , हड्डी सब किसी के काम आ जाएगा।”
नीलाम हो जाने के बाद दोनों मित्र उस दढ़ियल के साथ चले गए. दोनों की बोटी-बोटी काँप रही थी. बेचारे पांव तक न उठा सकते थे , पर भय के मारे गिरते-पड़ते भागे जाते थे , क्योंकि वह ज़रा भी चाल धीमी हो जाने पर कोड़ों की बरसात कर देता था।
रास्ते में गाय-बैल का एक झुण्ड हरे-भरे घांस में चरता नज़र आया. सभी जानवर बहुत प्रसन्न थे. चिकने , चपल जैसे — !
कोई उछलता था , कोई आनंद से बैठा पागुर करता था कितना सुखी जीवन था ,
यह सब देख मोती मन ही मन कहता — ” कितने स्वार्थी हैं सब , किसी को चिंता नहीं है कि दो भाई बधिक के हाथ पड़े कैसे हैं।
जाने किस तरह से हीरा और मोती अपने असली मालिक झूरी के पास पहुंचे ?
भाग्यवश दोनों को ऐसा लगा कि परिचित मार्ग है , हाँ , इसी रास्ते से गया उन्हें ले गया था. वही खेत , वही बाग़, वही गाँव मिलने लगे , प्रतिक्षण उनकी चाल में बदलाव आया और थोड़ा तेज चलने लगे. उनकी सारी थकान , सारी दुर्बलता गायब हो गई।
और सोचने लगे — ” अरे ! यह लो ! ये तो अपना ही गाँव आ गए , इसी कुंवे पर हम पुर चलाने आया करते थे. यह यही कुवां है. “
उसके बाद मोती ने कहा — ” हमारा घर नजदीक आ गया है। “
मोती बोला — ” भगवान की दया है ! मैं अब तो घर जाता हूँ। “
हीरा बोला — ” यह जाने देगा तभी तो…। “
मोती — ” इसे मैं अभी मार गिराता हूँ। “
हीरा — ” नहीं-नहीं , दौड़कर थान पर चलते है , वहां से आगे हम न जायेंगे।”
दोनों उन्मत होकर बछड़ों की भांति कुलेंले करते हुए घर की ओर दौड़े. वह हमारा थान है | दोनों दौड़कर अपने स्थान पर आये और खड़े हो गए. दढ़ियल भी पीछे-पीछे दौड़ा चला जाता था. झूरी द्वार पर बैठा धुप खा रहा था. बैलों को देखते ही दौड़ा और उन्हें बारी-बारी से गले लगाने लगा.
दोनों ( हीरा और मोती ) मित्रों की आँखों से आनंद के आंसू बहने लगे. और दोनों बैल झुरी के हाथ चाटने लगे. दढ़ियल दौड़ते हुए बैलों के पास पहुँच गया और उनकी रस्सियाँ को पकड़ कर ले जाने लगा।
इस पर झूरी ने कहा — ” मेरे बैल हैं ! “
दढ़ियल ने कहा — ” तुम्हारे बैल कैसे ? मैं मवेसीखाने से नीलाम में लाया हूँ। “
झूरी — ” मुझे लगता है तुमने बैलों को चुरा कर ले रहे हो ! चुप-चाप चले जाओ , यह मेरे बैल हैं. मैं बेचूंगा तो बिकेंगे. नहीं तो थाने में जाकर रपट का दूंगा। “
दढ़ियल — ” मेरे बैल है , इसका सबूत है मेरे पास।”
फिर दढ़ियल झल्लाकर बैलों को जबरदस्ती पकड़ ले जाने के लिए बड़ा. उसी वक्त मोती ने उस दढ़ियल पर जोर से सींग मारी जिससे दढ़ियल कहीं दूर जाकर गिर पड़ा।
और भागने लगा. मोती ने उसका पीछा किया. दढ़ियल और तेजी से भागने लगा. मोती ने उसका पीछा तब तक किया , जब तक वह दढ़ियल गाँव से बाहर नहीं निकला. दढ़ियल दूर जाकर धमकी देने लगा , गालियाँ देने लगा और पत्थर मारने लगा ,
कुछ समय बाद वहां से चला गया. और मोती गाँव के द्वार पर खड़ा उस दढ़ियल को ताक रहा था ताकि अन्दर न आ पाए. यह सब गाँव वाले देख रहे थे. और जब वह दढ़ियल हार कर भाग गया तो मोती अकड़ता हुआ वापिस घर लौटा।
हीरा ने कहा — ” मैं तो डर गया था कि कहीं गुस्से में आकर उस दढ़ियल को मार न बैठे। “
मोती — ” अब नहीं आ पायेगा ! आएगा तो दूर से ही खबर लूंगा , देखूं कैसे ले जाता है. गोली मरवा दे पर उसके काम न आऊंगा। “
“ हमारी जान का कोई जान नहीं समझता “
“ इसलिए कि हम इतने सीधे हैं “
जरा सी भी देर किये नांदो में कहली भूसा , चोकर और दाना भर दिया गया और दोनों मित्र काफी चाव से खाने लगे।
झूरी खड़ा होकर दोनों को सहला रहा था | वह उनसे प्रेम-भाव युक्त रोते हुए लिपट गया।
झूरी की पत्नी भी भीतर से दौड़ी-दौड़ी चली आई. उसने आकर दोनों बैलों के माथे को चूम लिया।
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