Titahari ka joda aur samudra : टिटिहरी का जोड़ा और समुद्र का अभिमान – पंचतंत्र

Titahari ka joda aur samudra: किसी देश में समुन्द्र के किनारे टिटिहरी नाम के दो पक्षियों का जोड़ा रहता था. किसी समय मादा पक्षी का गर्भधारण हुआ था. वह अपने प्रसव के समय अंडा देने के लिए उनको एक सुरक्षित स्थान की जरुरत थी.

तभी मादा पक्षी ने नर पक्षी से कहा कि मेरे लिए एक अछी जगह तालाश करो जिससे मैं अंडे दूं तो मेरे अंडे सुरक्षित रह सकें. नर पक्षी ने कहा कि यह समुन्द्र किनारा कितना अच्छा है. इससे और बेहत्तर जगह कहां हो सकता है.

उसके ये कहने पर मादा पक्षी को गुस्सा आ गया और कहा कि यहां पूर्णिमा के समय ज्वार आते हैं. जो हमारे घोसलों सहित अंडे को बहा ले जायेंगी.

यह सुनते ही नर पक्षी हसने लगा और कहा नहीं हमारे अंडे को कुछ नहीं होगा यह समुन्द्र हमारे अंडे को कुछ नहीं कर सकता.

यह सब बात समुन्द्र सुन रहा था और घमंडवश सोचने लगा कि इतना सा छोटा पक्षी मेरे जैसे विशाल समुन्द्र को डरता भी नहीं और कहता है. कि मैं कुछ नहीं कर सकता अब इसके सारे अंडे को खा जाऊंगा या तो इसके बच्चे को निगल जाऊंगा तभी इसको मेरे शक्ति का आभास होगा की मैं इस संसार में कितना बड़ा शक्तिशाली हूँ.

उसके बाद पक्षी अपने घोसलों को उसी समुन्द्र के किनारे बनाये और मादा पक्षी उसमें अंडे देने लगी. रोज वह एक-एक अंडे देती रही. कुछ दिन बाद अंडे में से छोटा-छोटा सा नन्हां चिड़िया निकला और चूं-चूं करके रोने लगे उनको भूख भी लग रही थी.

तभी दोनों पक्षी नर और मादा अपने और अपने  बच्चों के लिए खाने की तालाश में उन बच्चों को घोसलों में ही छोड़कर कही चले गए. इसी पल का इंतज़ार वह समुन्द्र कर रहा था. अब उसने सोचा कि यही सही समय है. उनके बच्चों को निगलने में. वह समुंद अपनी विशाल लहरें तैयार की इतना बड़ा की उसमें बड़ा-से-बड़ा हांथी भी आसानी से बह जाए. अपनी विशाल सी लहरें लेकर तेज गति से उस पक्षियों के बच्चों की ओर आई और अपने साथ बहा ले गई.

शाम होते ही जब दोनों पक्षिया आते हैं. और देखते है कि उनका घोसला और बच्चा दोनों गायब हैं वहां की पेड़ पत्ते सभी बहकर समुन्द्र में समां गए है. उन्होंने ने समझ लिया कि बड़ी सी लहरें आई और अपने साथ बहाकर ले गयी. वह मादा पक्षी नर पक्षी को गुस्से में आकर बहुत सुनाने लगी अरे मुर्ख तुम्हे कहा था कि यहां पर घोसला नहीं बनायेंगे कहीं सुरक्षित जगह में बनायेंगे मगर तुमने मेरी एक बात भी नहीं सुनी. मेरा बच्चा लाकर दो कहीं से नहीं तो मैं मर जाउंगी.

यह सुनकर नर पक्षी भी गुस्से में आ गया यह समुन्द्र का इतना घमंड की मेरे बच्चे को निगल गया. इसका घमंड तो तोड़ना ही पड़ेगा. उसने कुछ उपाय सोचा और कहा मैं इस समुन्द्र के पानी को ही अपने चोंच से पीकर सुखा दूंगा.

यह कहते सुन मादा पक्षी उसे और सुनाने लगी कि क्या बकवास कह रहे हो तुम इतना छोटे से इस समुन्द्र को सुखाने की बात करते हो तुम्हे शर्म नही आती.

यह सुन नर पक्षी अपने सारे साथियों जैसे कौवा मोर सारस बगुला तोता आदि को बुलाकर कहा  की मेरी मदद करो इस पानी को सुखाने में इसने हमारे बच्चों को निगल गया. वे सारे पक्षियां हसने लगे और बोले कि क्या पागल हो गए हो इस समुन्द्र के पानी को सुखाने की बात करते हो जिसमें गंगा यमुना जैसे बड़े-बड़े नदिया बहती है. वह पक्षी बहुत निराश हुआ मगर अपना विश्वाश नहीं टूटने दिया उसके दुःख को देख सभी पक्षी को दया आ गयी और कहने लगे उदास मत हो हम कुछ करते हैं. वे सारे पक्षी एक साथ पक्षियों के राजा विष्णु वाहन गरुण के पास गए. पक्षियां अपनी सारी  बात गरुण को बताई ठीक उसी समय विष्णु का दूत वहां पर आया था.

भगवान विष्णु का वाहन के लिए. मगर गरुण ने जाने से साफ़-साफ़ मना कर दिया विष्णु दूत को और कहा जाईये और कह दीजिये भगवान विष्णु से कि उनका निवास स्थान समुन्द्र ने हमारे एक पक्षी भाई के बच्चों को निगल लिया है अगर वापिस नहीं करेगा तो हम सब उसी समुन्द्र में अपनी प्राण त्याग देंगे.

यह सुन कर विष्णु दूत विष्णु के पास पहुंचते हैं और सारी बात बताते हैं. उसके बाद स्वयं भगवान विष्णु गरुण के पास जाते हैं उनको देखकर गरुण और सारे पक्षी ‘ उनको प्राणाम करते हैं और अपनी दुःखद घटना सुनाते हैं. और कहते हैं. हे भगवन वह अभिमानी समुन्द्र आज मेरा बच्चा निगला है कल किसी और पक्षी भाई का. ऐसे में तो हम सब पक्षी भाई का विनाश निश्चित है.

तभी भगवान विष्णु सभी को विशवास दिलाते हैं. की अगर यह समुन्द्र ऐसे घमंडी है तो मैं उसको सबक सिखाऊंगा. आपके बच्चों को वापस लाऊंगा.

यह कहकर भगवान विष्णु के साथ सभी पक्षी उस समुन्द्र के किनारे पहुंच गए जहां पक्षियों के बच्चों को निगल गया था. पहुंचते ही भगवान विष्णु अपने अग्निअश्त्र निकालते हैं.और कहते हैं हे समुन्द्र तुमने पक्षियों का बच्चा निगला हैं उसे तुरंत वापिस करो नहीं तो मैं अपने इस बाण से तुम्हारे समुन्द्र के पानी को सुखा दूंगा.

यह सुन समुन्द्र झट से प्रकट हो गए और उनसे क्षमा याचना करने लगे हे भगवन मुझे क्षमा कर दें मैं अहंकारवश इस पक्षी के बच्चों को निगल गया था. ये रहे बच्चे. आज से मैं कभी भी किसी को छोटा समझकर किसी निर्दोष पर अत्याचार नहीं करूंगा.

यह कह कर समुन्द्र समां गया और भगवन भी अपने लोक चले गए.

उसके बाद वे दोनों पक्षी अपने बच्चे पा कर बहुत खुश हुए और वहीं पर अपना घोसला बनाकर रहने लगे.

सिख:- चाहे किसी के जीवन में कितनी ही बड़ी मुसीबत का पहाड़ क्यों न आये. अगर दृणइच्छा शक्ति से ठान लें कि मैं कर सकता हूं तो दुनिया की कोई भी ताकत उसे रोक नहीं सकती.

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